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मुनिया की दुनिया
किस्सा 25
मुनिया आई…सामने काका (अंकल) थे…काका ने उसे गोदी में उठा लिया। गोदी उठाकर हवा में उछाला, मुनिया खिलखिला दी…मैं यह सुनकर बाहर आई।
अंकल ने बड़ी शान से कहा- ‘देखो मैं सोफे के ऊपर उछाल रहा हूँ, वैसे तो मुनिया नहीं गिरेगी पर गिर भी गई तो सोफे पर गिरेगी, उसे चोट नहीं लगेगी।‘
मैंने कहा- ‘बढ़िया, पंखा भी बंद कर दो’
इस तरह मुनिया की सेफ्टी हो गई।
अंकल ने मुनिया को चार-पाँच बार हवा में उछाला, झेला…और मुनिया से कहा – ‘काका है कि नहीं सुपरमैन’
और ऐसा कहते हुए मेरी ओर देखा, मैं मुस्कुरा दी…उन्हें लगा मैं मुग्ध भाव से मुस्कुरा रही हूँ पर मुझे मुनिया की आँखों में तैरती शरारत साफ़ दिख गई थी…और मेरी मुस्कान का इशारा अंकल नहीं समझे कि … ‘बंदा तू समझा है क्या, आगे-आगे देखिए होता है क्या’
मुनिया ने फ़रमाइश की..दीदी के सामने भी एक बार करो…
आज के सुपरमैन अंकल ने मुनिया की दीदी को आवाज़ लगाई
दीदी आई…दीदी के सामने एक बार यह खेल हुआ
दीदी के पीछे-पीछे उसके दीदी के कमरे में ही बैठी उसकी सहेली भी आई…तो उसके सामने एक बार और दिखाने की फ़रमाइश मुनिया ने की…वह भी हो गया..
बाहर का दरवाज़ा खुला था तो मुनिया की दीदिया भी आ गई
अब दीदिया को चिढ़ाने के लिए तो एक बार और यह खेला होना बनता ही था..वह भी हुआ,
फिर एक बार दीदिया के पीछे-पीछे आई चिंकी के सामने, फिर मिंकी के सामने भी ….
इस तरह पहले चार बार और उसके बाद…पाँच बार और…मतलब नौ बार झेला-झेली का खेल हो चुका था…अंकल के चेहरे पर थकान दिख रही थी
मुनिया के चेहरे पर शरारत थी…
अंकल बोल पड़े -‘भई मैं तो थक गया’
मुनिया- ‘सुपर मैन नहीं थकता…’
अंकल- ‘--’
मुनिया- ‘सुपरमैन…सुपरमैन..’
सारे बच्चे भी उसकी आवाज़ में आवाज़ मिला बोलने लगे ‘सुपर मैन’‘सुपर मैन’
सब चाह रहे थे सुपर मैन उन्हें भी एक बार इस तरह उछाले
अंकल ने कहा- ‘अरे कोई इन बच्चों से कह दो मैं हूँ सिंपल मैन’
मैं अपनी हँसी न रोक पाई..
तो बोलो आज की कहानी से क्या शिक्षा मिली…
‘किसी भी लड़की को बित्ते भर की समझने की भूल कभी मत करना’ हाहाहा…
(क्रमशः)
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