एक किताब के बहाने….

एक किताब के बहाने….

इन दिनों कोई ‘पॉज़िटिव’ है, यह सुनते ही निराशा भर जाती है और लगता है भगवान् कब ‘नेगेटिव’ रिपोर्ट आएगी। लेकिन ऐसा नहीं है कि हम इन्हीं दिनों पॉज़िटिव होने से डरने लगे हैं, हम बहुत पहले से पॉज़िटिव होने से डरते हैं, पॉज़िटिविटी से डरते हैं। ज़रा आप सकारात्मक सोचिए, आपके आसपास के सारे लोग कहेंगे कैसी बहकी-बहकी बातें कर रहे हो, ऐसा कभी होता है, ऐसा कभी नहीं हो सकता।

आप नकारात्मक विचार रखिए, नकारात्मक बातें कीजिए, देखिए सब कैसे सम दुःखी होने का भाव रख आपके साथ शामिल हो जाते हैं। नकारात्मकता अधिक पसंद की जाती है, वो अधिक सामान्य बात लगती है। लेकिन क्या आपको नहीं लगता कि नकारात्मकता ही डिप्रेशन या अवसाद, तनाव बढ़ाती है? इस महामारी के साथ छाया की तरह डिप्रेशन की बीमारी भी लोगों को ग्रस्त कर रही है। उससे निकलने का क्या तरीका है? सकारात्मक रहना होगा, चाहे कोई भी आपसे कुछ भी बोले, आपको हमेशा सकारात्मक रहना होगा।

परमानंद की अवस्था

डेविड आर हॉकिंस की किताब ‘पॉवर वर्सेस फ़ोर्स’ में उन्होंने एक चार्ट दिया है। इस चार्ट में आपकी हर भावना को कुछ अंक दिए गए हैं। इसमें कॉन्शंसनेस के अंक सबसे ज़्यादा हैं कि आप कितने सचेत हैं। आप सचेत कैसे रह सकते हैं तो जैसे श्रीमद्भवद्गीता में कहा गया है ‘सुख-दुःखे समेकृत्वा’ रहना होगा, भले ही सुख आए या दुःख आए यदि आप तटस्थ रहें तो धीरे-धीरे आप परमानंद की अवस्था में पहुँच सकते हैं

सचेत रहने का दूसरा औजार आपकी इच्छाशक्ति है। दुष्यंत कुमार का प्रसिद्ध शेर है- ‘कौन कहता है आसमान में सूराग नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो’। आप यदि पूरी इच्छाशक्ति से कुछ करना चाहें, तो क्या नहीं हो सकता। आपने भी किताबों-कहानियों- फ़िल्मों और अब तो सोशल मीडिया से भी यह सुना ही होगा कि पूरी कायनात आपकी इच्छा पूरी करने में लग जाती है।

स्वीकार कीजिए

उसके बाद आती है स्वीकार करने की भावना। जो है उसे स्वीकार कीजिए और आगे बढ़िए। हम स्वीकार तो करते हैं लेकिन आगे नहीं बढ़ पाते। हमारी अपनी छवि दूसरों की वजह से बनती है और उस छवि को हम स्वीकार करते हैं और उसी में कैद हो जाते हैं। यह कैद इन वाक्यों की परिधि है जैसे, ‘अरे अब तो हमारी उम्र हो गई’, या ‘मेरा कद कम है’ या ‘मेरा कद ज़्यादा है’ या ‘पैसा ही पैसे को खींचता है, पैसा नहीं है तो पैसा नहीं मिलेगा’। स्वीकार करने से आगे बढ़ने का पायदान हम चढ़ ही नहीं पाते।

स्वीकार कीजिए, उसे दीवार न समझ अपना भय समझिए और भय को जीत लीजिए। उन कारणों को खोजिए जो आपको बढ़ने से रोक रहे हैं। आप शांत दिमाग से कारणों की पड़ताल कर पाएँगे। तर्क की पराकाष्ठा आपको सकारात्मकता की ओर ले जाएगी।

असीम शांति

जानते हैं आप सचेत रहते हैं तो सबसे ज्यादा खुश रहते हैं। जो खुश रहता है वह सबसे ज़्यादा खुशनसीब भी होता है। खुश रहने के बाद ही आप शांति की अवस्था में पहुँच पाएँगे। क्या आप भीतर-बाहर असीम शांति का अनुभव नहीं करना चाहेंगे? प्यार की श्रेणी इससे भी ऊपर की है। प्रेम कीजिए। केवल स्त्री-पुरुष की मर्यादा में न बाँधकर सबसे प्रेम करके देखिए, सभी लोगों से, पशु-पक्षियों से, हर उस चीज़ से जो आपके घेरे में और आपके घेरे से बाहर है।

चलते समय भी बहुत धीमे पग धरिए। सोचिए जिस पर आप पैर दे रहे हैं उसे ऋषि-मुनियों ने धरती माता कहा है। अपनी हर गतिविधि में स्नेह, अपनापा ले आइए। देखिए आप प्रकाश की अवस्था तक पहुँचते हैं या नहीं। निश्चित ही आप इनलाइटमेंट को पा लेंगे।

फ़्लो का चार्ट

जिस तटस्थता से हम चले थे उससे नीचे के सारे भाव हमें दुःख, तकलीफ़, परेशानी में डालते हैं। साहस को भी तटस्थता से कम आँका गया है। इच्छा, गर्व, क्रोध, डर, दुःख, संकुचित मानसिकता, गिल्ट और शर्म वे भाव हैं जो आपको ऊँचा उठने से रोकते हैं। इन्हें खुद पर हावी मत होने दीजिए।

आप देखेंगे कि फ़्लो का चार्ट कैसे चलता है। इस चार्ट में सफ़रिंग का मूल कारण शर्म है। जिस काम को करने में आप अपनी नज़रों में गिर जाएँगे, वो काम कभी मत कीजिए। हमेशा नकारात्मकता कायम रखी है एक बार सकारात्मकता की ओर भी चलकर देखिए। आपको फिर किसी रिपोर्ट की कोई चिंता नहीं रहेगी।