मुनिया की दुनिया
किस्सा 31
घर पर बढ़ई (कारपेंटर) काम कर रहा था…बढ़ई की सुविधा के लिए बैठक को खाली किया था। बैठक में कोई सामान न होने से गूँज तैयार होने लगी थी। जो बोलो उसकी प्रतिध्वनि सुनाई देती थी।
…
और ऐसे में उस रोज़…
मुनिया के रोने की आवाज़ आई, वह इतना तेज़ रो रही थी कि मन सिहर उठा। मन में बीसियों ख्याल आ गए, क्या वह कहीं से गिर गई, क्या उसकी अँगुली दरवाज़े में आ गई…आखिर उसे हुआ क्या?
ज़्यादा सोचते रहने से अच्छा था उसके घर ही चला जाए, तो मैं उसके यहाँ गई…देखा तो मुनियाजी किसी जिद्द पर अकड़ी थी, और कोहराम मचाए जा रही थीं।
मैंने उसे चुप कराने की कोशिश की तो मैडम और भी तेज़ रोने लगीं…
मैंने उसे गोदी में उठाया और सीधे अपने किचन में ले आई…किचन जहाँ मेरे बाद किसी और का साम्राज्य है तो मुनिया का है..उसे पता है कहाँ, क्या रखा है, क्या उसके मतलब का है और क्या उसके मतलब का नहीं है…
थोड़ी देर उसने अपने राज्य का मुआयना किया..लेकिन फिर उसे ख्याल आया कि अभी उसे यहाँ से कुछ लेना नहीं है, अभी तो वह रो रही थी..उसे रोना जारी रखना है…सो फिर शुरू हो गई गला फाड़…
मैंने उसकी पसंदीदा गिलासी में उसे पानी दिया..दो घूँट पिया पर दिमाग की सुई तो रोने पर अटक गई थी…और वह रोने लगी…
अचानक मेरे दिमाग की बत्ती जली, मैं उसे बैठक में ले गई
अब मुनिया रोए तो खाली बैठक में उसकी आवाज़, दुगुनी कर्कश हो सुनाई दे…मुनिया हठात्…चुप..मैं हौले से मुस्कुराई…मुनिया ने फिर रोना शुरू किया तो फिर उसकी आवाज़ लौटकर उस तक दुगुने वेग से आई…
मुनिया फिर चुप..मैं भी कुछ नहीं बोली..मुझे हँसी आने लगी कि चलो मुनिया को समझ तो आया…
कुछ देर शांति रही, मैंने मुनिया को गोदी से उतारा…मुनिया बैठक-कक्ष का निरीक्षण-परीक्षण करने लगी, मैं रसोईघर की ओर मुखातिब हुई कि तभी सुनाई दिया…लS ललss ललललss
मुनिया कुछ गुनगुना रही थी…
उसकी ध्वनि उस गूँज में ऐसी सुनाई दे रही थी जैसे किसी स्टूडियो से कोई आवाज़ आ रही हो…
अब मुनिया मेरी ओर देख मुस्कुराई..हँसी…
हँसी मैं भी…मुनिया खाली बैठकी में गोल-गोल घूमने लगी, गाने लगी….उसने अपने विध्वंसकारी सुरों को सृजनात्मक सुरों में बदल दिया…
मेरी प्यारी मुनिया…
(क्रमशः)
आगे के किस्से के लिए निचे दी गयी लिंक पर क्लिक करें
https://www.atarman.com/hi/post/muniya-ki-duniya-kissa-32
#MKD। #Kissa 5। मुनिया के लिए तो हर दिन है केवल पिता का…