मुनिया की दुनिया

मुनिया की दुनिया

किस्सा 15

दरवाज़ा बजा। मैं समझ गई कि घंटी तक हाथ न पहुँच पाने वाली यह मुनिया की ही आमद है।

मुनिया ने उधर से कहा- ‘डकी (डक-बत्तख) आया है’

मैंने दरवाज़ा खोलते हुए ‘क्वैक-क्वैक’ (बत्तख की आवाज़) किया। मुनिया एकदम ख़ुश हो गई। मुनिया ऐसे ही कई नाम धरती है। कभी कहती है कि वह ‘सिंड्रेला’ है। कभी खुद को ‘सॉफ़्टी’ कहलवाती है..और जिस दिन वह ‘सॉफ़्टी’ होती है, उस पूरे दिन उसे कोई डाँट नहीं सकता, ऐसा उसका ख़ुद का फ़रमान है। फ़िर जिस दिन वह ‘डकी’ होती है उस दिन भी नहीं, और ‘सिंड्रेला’ होने पर तो बिल्कुल नहीं।

भई हमें तो बचपन में साल का एक ही दिन पता था-जन्मदिन..जिस दिन डाँट खाने से राहत मिलने की कुछ संभावना होती थी। पर हमारी मुनिया तो सयानी है, इस तरह हर दिन कोई नया स्वाँग रच अपने लाड़ लड़वा लेती है।

(क्रमशः)

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