
मुनिया की दुनिया
किस्सा 16
हम लौट रहे थे…अहाते तक आते ही मुनिया ने घोषणा कर दी कि ‘यह स्टेशन (/प्लेटफार्म) है और हम ट्रेन के लिए रुके हैं’।
लिफ़्ट आई तो मैंने भी उसके सुर में सुर मिलाते हुए कहा ‘चलो जल्दी, ट्रेन आ गई’।
लिफ़्ट के अंदर जाकर मैं वांछित मंज़िल के लिए बटन दबाने लगी तो मुनिया ने बताया वह तो टिकट लेने का प्वॉइंट है।
मैं भी राजी हो गई, मैंने पूछा बताओ ‘कहाँ का टिकट निकालें!’
मुनिया- घर का
मैं- पर किस शहर का?
मुनिया- जिस शहर में मेरा घर है, उस शहर का
मैं- तुम्हारा घर किस शहर में है?
मुनिया- जहाँ मैं रहती हूँ उस शहर में
मैं- पर जगह तो बताओ?
मुनिया- घर
मैं- अरे जगह, प्लेस, तुम जहाँ रहती हो वो कौन-सी जगह है?
मुनिया- घर
…खैर टिकट मतलब बटन दबा दिया और गाड़ी मतलब लिफ़्ट चल पड़ी।
लिफ़्ट रूकी, हम दोनों उस लिफ़्ट सह ट्रेन से बाहर आ गए।
अब मुनिया साहिबा को अपने घर जाना चाहिए था न। पर मुनिया के लिए घर, घर जैसा होता है, इसका-उसका क्या और तेरा-मेरा क्या।
वह न अपने घर गई, न मेरे..तीसरे ही घर का दरवाज़ा खुला था, वहाँ चिंकी-मिंकी खेल रहे थे, बस मुनिया भी वहाँ चली गई, और क्या
मुनिया से मिल सकते हैं यहाँ
(क्रमशः)
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