महिला सशक्तीकरण एक नारा

महिला सशक्तीकरण एक नारा

  • हाल ही में जयपुर साहित्य महोत्सव (जेएलएफ़) के समापन दिवस पर अपनी किताब ‘आई एम मलाला: द स्टोरी ऑफ़ द गर्ल हू स्टूड अप फ़ॉर ऐजुकेशन एंड शॉट बाई द तालिबान’ के संबंध में नोबल शांति पुरस्कार से सम्मानित मलाला यूसुफजई ने डिजिटल तरीके से आयोजित कार्यक्रम में अपने विचार रखे। मलाला वह लड़की है जो खुद पढ़ना चाहती है और दूसरी लड़कियाँ भी स्कूल जा सके ऐसा सपना देखती है।
  • दूसरी ओर एम.ए. तक पढ़ी शबनम ने सात लोगों की एक ही दिन में जान ले ली क्योंकि प्यार के सपनों में वे अड़चन बन गए थे। फाँसी के फंदे पर जाने वाली यह भारत की पहली महिला होगी
  • फिर अमेरिका की पहली महिला उप राष्ट्रपति बनकर इतिहास रचने वाली कमला हैरिस का कहना है भले ही हम पहले यहाँ आकर अपने सपने साकार करने वाले हो सकते हैं, लेकिन हम आखिरी नहीं होंगे
  • इसके साथ एक और युवती है, किसान आंदोलन को लेकर बेंगलुरु की 21 साल की दिशा रवि को गिरफ्तार किया गया है, उस पर बदनाम करने, आपराधिक साजिश रचने और नफ़रत को बढ़ावा देने के आरोप हैं

स्पॉट लाइट

ये आज की मुखर महिलाएँ हैं। आश्चर्यजनक है कि एक ठेठ तालिबानी संघर्ष से लोहा लेती हैं, एक विश्व की महाशक्ति में अपना दबदबा मनवाती हैं तो दो भारत की हैं, जो अलग ही कारणों से चर्चा में हैं।

क्या इसे महज़ संयोग मान लें कि एकदम पिछड़े और पूर्ण विकसित दो परिदृश्यों की महिलाएँ एकदम चमककर सामने आती हैं और भारत की महिलाएँ तय नहीं कर पा रही हैं कि क्या करना है? तो क्या भारत विचारों की दृष्टि से भी अब तक विकासशील ही है? क्या हमारी मानसिकता अब भी पूर्ण रूप से विकसित नहीं हो पाई है?

और यह उलझन महिलाओं के परिप्रेक्ष्य में और अधिक दिखती है। महिलाएँ हमारे समाज का स्पॉट लाइट होती हैं। वे क्या करती हैं, वे क्या सोचती हैं, वे किस तरह और कौन-से काम करती हैं इस पर पूरे समाज का अस्तित्व टिका रहता है। जहाँ अत्यधिक बंदिशें हैं वहाँ महिलाएँ सबसे ज़्यादा लड़ाकू हो जाती हैं।

सत्ता का शंखनाद

ऐसे में अपनी सत्ता का शंखनाद फूँकने वाली दो महिलाएँ सामने आती हैं- एक दस्यु सुंदरी के नाम से जानी जाती फूलन देवी और दूसरी झाँसी की रानी। लेकिन आप किसे महिलाओं का प्रतिनिधित्व करता चेहरा मानेंगे? या किसे मानना चाहेंगे? आपके आदर्शों में कौन-सी महिला होगी?

एकबारगी भूल जाइए कि आप स्त्री हैं या पुरुष...व्यक्ति के रूप में सोचिए कि आप किसी स्त्री के हाथों में मलाला की तरह शिक्षा का हथियार देखना चाहेंगे या शबनम की तरह कुल्हाड़ी का औजार जो एक ही वार में सात लोगों का कत्ल कर दे!

धार-वार-प्रहार

महिलाओं को मुखर होकर आगे आना चाहिए, वे ऐसा कर भी रही हैं। वे अपने आपको आज़मा रही हैं, तौल रही हैं और जो रास्ते में आ रहा है उससे लड़-भिड़ भी रही हैं। लेकिन हम मुखरता के साथ प्रगल्भता भी चाहेंगे। हम चाहेंगे कि आज की स्त्री मुखर हो तो संजीदा भी हो, प्रगल्भ भी हो उसके पास विचारों की धार हो, समाज पर वह वार भी करना चाहे तो उसके प्रहार में समाज का कल्याण छिपा हो केवल अपनी व्यक्तिगत इच्छा-आकांक्षा या महत्वाकांक्षा नहीं।

ज़रूरत पड़ने पर निश्चित ही वह चंडी रूप धारण करे लेकिन आवश्यकता हो तो लास्य कर तांडव की भीषणता को शांत भी करे। उसमें आग है तो उस आग को वह उसे अग्नि का रूप दे जिससे चूल्हा जलता है, यज्ञ होता है न कि ऐसी आग बने जो दावानल हो जंगल को खाक कर दे।

स्त्री होने के तमाम गुणों के साथ जीना भी बहुत सुंदर और बहुत सशक्त है, क्या इसे महिला सशक्तीकरण का नारा लगाने वाले समझ सकेंगे?

जो ग़लत

शबनम ने सलीम के साथ मिलकर अपराध किया, फाँसी दोनों को होगी। पुरुषों से बराबरी करते हुए अपराध में भी उसका साथ दें, यह तो ग़लत है और जो ग़लत है वो ग़लत ही है।