दहलीज़ से बँधी भारतीय महिलाएँ

दहलीज़ से बँधी भारतीय महिलाएँ

दहलीज़ से बँधी भारतीय महिलाएँ

ये भी क्या बात है, लेकिन बात है और बात में सच्चाई भी है। भारत की पचास प्रतिशत शहरी महिलाएँ दिनभर में एक बार भी बाहर नहीं निकलती हैं।

भारत में कार्यबल में महिलाओं की हिस्सेदारी अपेक्षाकृत कम है, इससे देश कई मामलों में लिंग अनुपात में पिछड़ा भी दिखाई देता है। औद्योगिक एवं निर्माण क्षेत्र के कार्यों में महिलाओं की अनुपस्थिति अधिक है, जबकि यह हमारी अर्थव्यवस्था के रीढ़ के क्षेत्र हैं। यदि महिलाएँ कार्यस्थलों पर नहीं हैं, तो वे कहाँ हैं? वे घर पर हैं, वे अब भी दहलीज़ के बाहर नहीं आ पा रही हैं।

भारत की महिला श्रम बल भागीदारी दर (LFPR- Labor Force Participation Rate) जो उन महिलाओं को संदर्भित करती हैं जो या तो काम कर रही हैं या नौकरी की तलाश में हैं, न केवल कई वर्षों से 47 प्रतिशत के वैश्विक औसत से काफ़ी नीचे स्थिर हैं बल्कि इसमें गिरावट भी देखी जा रही है। विश्व बैंक के अनुमान के अनुसार भारत में महिला श्रम भागीदारी दर वर्ष 2019 में गिरकर 20.3 प्रतिशत हो गई थी। आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS- Periodic Labor Force Survey) 2019-20 बताता है कि भारत में महिला श्रम बल की भागीदारी पुरुषों की तुलना में बहुत कम है।

वित्त वर्ष 2020 में जबकि पुरुष भागीदारी दर 56.8 प्रतिशत थी, महिलाओं के लिए यह अनुपात केवल 22.2 प्रतिशत था। उसके अगले साल 2021 में यह 16.9 प्रतिशत तक गिर गया था। यह भी विचारणीय है कि ग्रामीण महिला कार्यबल की भागीदारी 24.7 प्रतिशत रही जबकि शहरी दर 18.5 प्रतिशत देखी गई। पुरुषों के संदर्भ में यह अंतर उतना नहीं है। पुरुषों की भागीदारी क्रमशः ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में 56.3 प्रतिशत एवं 57.8 प्रतिशत थी।

एक ओर कार्यस्थल की दुनिया में समानता –वर्ष 2030 तक महिला-पुरुष अनुपात 50-50 करने का लक्ष्य केंद्रित किया जा रहा है,फिर भी लगता है मंज़िल अभी बहुत दूर है। महिलाओं का वेतन, अवकाश, ख़ासकर भुगतान सहित मातृत्व एवं शिशु देखभाल अवकाश, परिवार एवं बुजुर्गों की देखभाल हेतु विशेष अवकाश, गर्भावस्था के दौरान संरक्षण, स्तनपान कराने वाली महिलाओं की स्थिति के प्रति संवदेनशीलता और कार्यस्थल पर होने वाले यौन शोषण के क्षेत्र में महिलाओं के लिए पूर्ण समानता की ओर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है।

Mckinsey और Leanln.org की रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रबंधक के रूप में पदोन्नत किए गए हर 100 पुरुषों के मुकाबले केवल 79 महिलाओं को पदोन्नत किया जाता है। KelpHR को वर्ष 2013 में संगठनों को सर्वोत्तम मानव संसाधन समाधान प्रदान करने और कार्य स्थल संस्कृति में सुधार के लिए नियुक्त किया गया था। कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न की रोकथाम, विविधता एवं समावेश के क्षेत्रों में इस संस्था ने काम किया।

कोविड के दौरान हुई राष्ट्रीय तालाबंदी में महिलाओं के काम खोने की दर सात गुना अधिक थी और उसके बाद काम पर वापिस न लौटने की आशंका ग्यारह गुना अधिक हो गई थी। हालाँकि कोविड के बाद हाइब्रिड वर्क मॉडल कई महिलाओं के लिए गेम चेंजर बन सकता है, जो लचीले और अधिक नए कार्य विकल्पों को सामने रखता है।

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