मुंडेर पर बोल रहा है कागा

मुंडेर पर बोल रहा है कागा

रात को टिटहरी की आवाज़ सुनने पर कुछ अँचलों में इसे अशुभ माना जाता है तो कई स्थानों पर शुभ संकेत। बचपन में कहते सुना था कि टिटहरी की आवाज़ सुनाई दे जाए तो लकड़ी छू लेने पर मीठा खाने को मिलता है, कुछ बड़े हुए तो कहा गया कि दूर बैठा कोई याद करता है तब टिटहरी की आवाज़ सुनाई देती है।

कई संकेत

ऐसे और भी शकुन आपको भी याद होंगे जैसे कौआ मुंडेर पर आकर बैठ जाए तो मेहमान आने का संकेत है, ‘मुंडेर पर बोल रहा है कागा’...याद है वो गीत। उल्लू दिखना लक्ष्मी के आगमन का प्रतीक माना जाता है और सफ़ेद पंख को भी शुभ माना जाता है। आप इन संकेतों पर विश्वास करते हैं या नहीं यह दूसरा विषय होगा लेकिन विश्व के कई देशों में ऐेसे कई संकेत दैवीय संकेतों की तरह माने जाते हैं

पूरे विश्व में कुछ शुभ संकेत बहुत आम माने जाते हैं जैसे तितलियों का दिखना, भँवरे का घर के भीतर आना या पक्षियों का जोड़े में दिखना। आपका वैज्ञानिक मन इन्हें पुराने रस्मो-रिवाज़ मान नकारने का होता है। लेकिन अनायास आपको कहीं से कोई मीठी सुंगध आने लगती है किसी की याद दिलाते किसी ख़ास इत्र, परफ़्यूम, डियोडरंट की या किसी मीठे व्यंजन की और आपको वह व्यक्ति याद आ जाता है। आप कहीं से उसका नंबर तलाशकर उसे फ़ोन लगाते हैं और वह व्यक्ति कह उठता है- अभी तुम्हारी ही याद हो आई थी।

बहुत ऐन्कैश

तब आपको लगता है यह महज़ संयोग होगा लेकिन तब भी बाहर जाते समय कोई छींक दें तो आप दो पल रुक जाते हैं लेकिन दो बार छींक दे तो शुभ संकेत मान चल पड़ते हैं। बाहर जाते समय कोई पूछ ले कहाँ जा रहे हो तो उसे भी अशुभ माना जाता है। बिल्ली रास्ता काट जाए तो आप मुड़ जाते हैं। बाहर जाते समय चाय की टोक या नाट लगाने को खासा अपशकुन समझा जाता है, इसके साथ एक बहुचर्चित किस्सा भारत की पूर्व प्रधानमंत्री के युवा पुत्र के असामायिक निधन से जुड़ा है।

ऐसे ही चप्पल पर चप्पल पड़ जाए तो बाहर जाना हो सकता है, चप्पल उल्टी हो तो झगड़ा हो सकता है या किसी का रुमाल आपके पास रह गया तो माना जाता है उससे दूरी हो जाएगी। कोई खाना बनाने के बर्तन में खाना खा ले तो कहते हैं उसकी शादी में बारिश होगी और विवाह के समय तिलक करते समय यदि अचानक बारिश होने लगे तो उसे अशुभ माना जाता है। जलता दिया बुझ जाना तो ऐसा अशुभ संकेत है जिसे बॉलीवुड फ़िल्मों ने भी बहुत ऐन्कैश किया है।

विश्वास या अंधविश्वास

इन अंधविश्वासों और विश्वास के बीच बड़ी महीन रेखा है। जो वैश्विक रहस्यों का पता लगाने में जुटे हैं ऐसे वैज्ञानिक, चिकित्सक और गणितज्ञ भी इनमें से कुछ संकेतों को सत्य कर दिखाने में लगे हैं। उनका ही कहना है कि दुनिया में कुछ भी आकस्मिक नहीं होता, सब पूर्व नियोजित होता है, इसे ही नियति कहा जाता है। तब भी यह तो लगता ही है कि ये तमाम विश्वास या अंधविश्वास आंचलिक हैं, सार्वदेशिक या सार्वभौमिक नहीं है, जबकि वैज्ञानिक नियम सार्वकालिक, सार्ववेशिक और सार्वभौमिक होते हैं। जातिविशेष या क्षेत्रविशेष में प्रचलित विश्वास पीढ़ी दर पीढ़ी परंपरा से चले आते हैं...जितना प्राचीन, उतना पक्का।

लेखक भी...

जैसे पिछली सदी के कुछ लेखक ऐसे भी थे। चार्ल्स डिकेंस हमेशा एक कम्पास अपने पास रखते थे, उन्हें लगता था वे उत्तर दिशा में सिर रखकर नहीं सोएँगे तो मौत उन्हें ले जाएगी। सॉमरसेट अपने को अंधविश्वासी तो नहीं मानते थे लेकिन अपने लिखने के कागज़ों, पुस्तकों की जिल्दों, घर के प्रवेश द्वार, यहाँ तक की ताश के पत्तों पर भी दुष्ट नेत्र का चिह्न बनाते थे। लिखते समय वे अपने पास एक ताबीज़ रखते थे। फ्रेंच कवि चार्ल्स आउडिलायर हरे रंग की प्रेरणा में लिखते थे, उन्होंने अपने बाल भी हरे रंग के कर लिए थे।

मेहनत पर यकीन

लेखकों के इन किस्सों के साथ ही सदा अम्बावली का शे’र भी है ‘तुम सितारों के भरोसे पे न बैठे रहना, अपनी तक़दीर से तक़दीर बनाते जाओ’, तो ये बातें एक तरफ़ लेकिन आपकी मेहनत दूसरी तरफ़। अपनी मेहनत पर यकीन रखिए, वही काम आती है।