बोझ कम कीजिए, बोझा मत लादिए

बोझ कम कीजिए, बोझा मत लादिए

एक दशक पहले का आँकड़ा कहता है कि भारत में उत्तर प्रदेश की जनसंख्या सर्वाधिक यानी 200 मिलियन है। अभी-अभी ख़बर आती है कि अब जाकर वहाँ जनसंख्या ड्राफ्ट तैयार हुआ है और दो से ज़्यादा बच्चे होने पर सरकारी नौकरी नहीं मिलेगी। हालाँकि यह चर्चा का अलग विषय हो सकता है कि निजीकरण के दौर में कितनी सरकारी नौकरियाँ बची हैं और कितनी सरकारी नौकरियों का सृजन हो रहा है।

लेकिन चलिए कहीं न कहीं, कुछ न कुछ बंधन तो लगा है। अब वहाँ ऐसे लोगों को सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिलेगा, वे चुनाव में खड़े नहीं हो पाएँगे, राशन कार्ड पर चार से अधिक लोगों का नाम नहीं होगा। विधि आयोग का दावा है कि अनियंत्रित जनसंख्या के कारण पूरी व्यवस्था प्रभावित हो रही है।

ताज़ा आँकड़े

बिल्कुल इसे समझना बहुत मुश्किल नहीं है। विश्व की वर्तमान जनसंख्या 7.69 अरब है। यदि 10 जुलाई 2021 के ताज़ा आँकड़े देखें तो विश्व के 223 देशों में चीन की जनसंख्या विश्व की जनसंख्या का सबसे अधिक प्रतिशत है। यहाँ 18.37 प्रतिशत जनसंख्या है। उसके बाद भारत का स्थान है, जहाँ विश्व की 17.56 प्रतिशत जनसंख्या रहती है तो अमेरिका में मात्र 4.44 प्रतिशत

समझ सकते हैं कि अमेरिका की संपन्नता का कारण वहाँ जनसंख्या कम होना भी है। दूसरी ओर यह भी सच है कि पाकिस्तान में विश्व की जनसंख्या का मात्र 2.78 प्रतिशत रहता है। तब भी वहाँ गरीबी है, तो उसकी दूसरी कई वजहों को नकारा नहीं जा सकता है।

विश्व जनसंख्या दिवस

हर साल 11 जुलाई को विश्व जनसंख्या दिवस मनाया जाता है। उससे ठीक एक दिन पहले के ये आँकड़े हैं। संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम की आम सभा ने इसे मनाने की पहली घोषणा 11 जुलाई 1989 को यह गणना की गई थी, उससे पहले 1987 में विश्व की जनसंख्या का आँकड़ा 5 अरब था

जनसंख्या वृद्धि के खतरों से हम सभी वाकिफ़ हैं और हम जानते हैं कि संतुलन बैठाने के लिए प्रकृति के अपने औजार हैं, उसमें से एक औजार का वार अभी भी पूरी तरह टला नहीं है। हम इतनी गज़ब की दुनिया में रहते हैं, हमारे पास विज्ञान और तकनीक के बेहतरीन उपकरण हैं और हम नित नई प्रगति भी कर रहे हैं।

बौद्धिक प्रगति के बावजूद हम इतनी सी बात नहीं समझ पा रहे हैं, जो हमें बहुत समय से पढ़ाई-सिखाई जा रही है। स्कूली निबंधों में यह विषय हमेशा से रहा कि जनसंख्या विस्फ़ोट के ख़तरे, लेकिन जैसे हम पढ़कर भी अनदेखा कर देते हैं। बहुत साधारण नियम है कि एक घर में चार लोग रहते हैं और उसी घर में यदि आठ लोग रहने लगेंगे तो उसका बोझ आर्थिक, शारीरिक, मानसिक, व्यावहारिक हर तरह से पड़ेगा, अच्छा-बुरा दोनों

आप बढ़ती जनसंख्या को अपनी ताकत समझ सकते हैं लेकिन यह बिल्कुल उस किसी निरक्षर की तरह होगा, जो सोचता है कि घर-परिवार में ज़्यादा कमाने वाले हाथ हों तो अधिक कमाई हो सकती है। वह भूल जाता है कि ज़्यादा कमाने वाले हाथों की लालसा में बच्चे जनते हुए कौर तोड़ने वाले निवाले भी बढ़ेंगे

अधकचरा ज्ञान

भारतीय मानसिकता में अभी भी स्वर्ग प्राप्ति के लिए पुत्र का मोह बच्चों को जन्म दिलवाता है। यह अधकचरा विवेक, अधकचरा ज्ञान है, जो आगे नहीं बढ़ने देता। पुराणों में ‘पुं’ नामक नर्क का उल्लेख है जिससे तारने वाला पुत्र होता है। थोड़ा भी तार्किक होकर सोचा जाए तो लड़की के लिए पुत्री शब्द भी यहीं से आता है। मातृ-पितृ ऋण से उऋण होने के लिए भी बच्चे के जन्म को महत्व दिया जाता है। लेकिन इन सबके पीछे तत्कालीन समाज की आवश्यकता, अवधारणा को समझना ज़रूरी है।

उपहार की कीमत

बच्चे ईश्वर का उपहार है और उन्हें दुनिया में आने से नहीं रोका जाना चाहिए। यह कल्पना बहुत सुंदर है लेकिन उसे हम बदसूरत बना देने पर आमादा हो जाते हैं। तोहफ़ा भी कम मिले तो उसका महत्व रहता है, अति हो जाने पर उस उपहार की कीमत वैसी नहीं रह जाती, हम उसे ‘टेकन फ़ॉर ग्रांटेड’ की तरह लेने लगते हैं

बच्चों के मोह में बालहठ न करें, जनसंख्या को रोकने में अपनी ओर से भी । बच्चा होना ही चाहिए, यह कोई नियम नहीं है। आप किसी बच्चे को गोद भी ले सकते हैं। माना कि स्त्री, माँ बनकर पूर्ण होती है लेकिन वह किसी को ममता देकर भी माँ हो सकती है। धरती माता पर दया कीजिए, उसके बोझ को कम कीजिए, उस पर और बोझा मत लादिए।