‘व’ के वसंत पर ‘वारी-वारी’...

‘व’ के वसंत पर ‘वारी-वारी’...

वह जो वहीं पर है न, ‘वही’ बता सकता है कि कब ‘वहीं’ इस्तेमाल करना है और कब ‘वही’। जब किसी स्थान का उल्लेख हो तो ‘वहीं’ कहा-लिखा जाता है और यदि इस वजह से कहना हो तो ‘वही’ आता है। वर्तन और वर्तनी, वदन और वादन, वस्तु और वास्तु, वाद-विवाद और वादे करवाने वाले ‘व’ के विविध विटामिन ‘वाह! वाह!!’ कहलवाते हैं। वर्णमाला के वर्णादिक वर्णक्रम में इस वर्ण को लिए बिना आगे वर्णन करना वर्जित है। अंग्रेज़ी का वॉट पॉवर मुंबइयाँ वाचालता में वाट लगा देने के संदर्भ में आए तो लुटिया डुबो देता है। तो किसी वर्ष वार-त्योहार पर ऐसा वश में कर लेता है कि वार्तालाप करने लगो कि इस वसंत पर ‘वारी-वारी जाऊँ!’

वर्ग विशेष

विवेक से विवेचन कीजिए तो वर्ग विशेष के लिए यह वेद-पुराण का ‘व’ है, तो वे भौतिकी पढ़ने वाले इसे वेग में खोजते हैं, विज्ञान के छात्रों के लिए मानव की तरह यह भी वानर का वारिस है। वर्चुअल काम करने वालों के लिए वह वेब से जुड़ा है, तो देश-दुनिया की वार्ता सही वक्त पर देने वालों के लिए वह ख़बरों में वास करता है। विश्वभर की वकालत करते सत्ता के कुछ वरिष्ठ वज़ीर कई बार वोट पाने के लिए विष वमन कर वापस अपने वाहनों में चले जाते हैं तब वाकई समझ नहीं आता है कि ऐसा वर्णन क्यों कर रहे हैं? वादी-प्रतिवादी के उनके वजूद पर कोई विद्वान् वकील ही विधान समझा दिखा सकता है।

विकल्प नहीं

‘विधि का विधान’ कहें तो हम सब वाकिफ़ है कि ‘प्राण जाए पर वचन न जाए’ की परंपरा के श्रीराम के वल्कल वसनों में वनवास के दौरान पुष्पक विमान में ले जाई गई सीता की व्यथा को कोई वामा ही समझ सकती है। सीता मैया को अशोक वाटिका में रहना पड़ा था। भले ही विजयादशमी मना लें, लेकिन राम की विराट विजय भी उस वाकये को भुलवा नहीं पाती। वरमाला डाल विवाह के वस्त्राभुषणों में विवाहित वयस्क वर-वधू को राम-सीता की जोड़ी का वरदान दिया जाता है, उनकी तरह व्रतस्थ रहने के लिए कहा जाता है। वैसे तो राम को सीता से विभक्त समझना वहम है। उनमें विछोह था ही नहीं। वस्तुस्थिति है कि ‘व’ का कोई विकल्प नहीं है। वास्तविकता है कि यह पलभर में वाष्पित हो जाएगा वह सोचना भी विकट वाहियात है।

‘व’ का वायरस

‘व’ की वाणिज्यिक वसीयत में विकास के विकेंद्रीकरण का विक्रम है, वातानुकूलन है तो विकृत विक्षिप्त विकलांग वहशीपन और वसूली की ताकत भी। किसी वेबसाइट पर ‘व’ का वायरस आ जाए तो वफ़ादारी वगैरह भूलकर वह किसी विधानसभा क्षेत्र भर में नहीं, पूरे वर्ल्ड में ऐसा विख्यात वातावरण बना देता है कि उससे स्पैम के विशेषण को विलगित नहीं किया जा सकता है। अब आप दक्षिणपंथी हों या वामपंथी, वह कोई विखंडन/विभाजन नहीं करता। विशेषकर कोई विज्ञापन भी नहीं देता, बस विशालकाय विश्वासघात कर देता है। व्यवस्था की वर्षा ही वायरस के व्यापक व्यवहार को रोक सकती है। विकसित देश किसी तरह विजयगाथा गा लेते हैं पर विडम्बना यह है कि विकासशील देशों में तब तक व्यापार-व्यवसाय ठप्प हो जाता है।

वक्र चाल

‘व’ की वक्र चाल और वक्र दृष्टि से बचें तो इसका अपना वजन है और वटवृक्ष की छाँह भी है। इसके वजीफ़े का अपना वजूद है। वज्रासन में बैठिए, वज्रधर बनिए और वज्रदंती हो जाइए तो यह वज्रपाणि हो वज्रपात के विघ्न से मुक्ति देने के लिए आपका वर्धन कर वज्रधर बना देगा। करुणा के वायु वरुण-सा वत्सल ‘व’ जैसे विष्णु का वामन अवतार है, जिसके अपने वलय का वर्चस्व है। विद्यमान में विचार कीजिए कि वानिकी में विचरण करने से वानप्रस्थ तक इससे ही वसुंधरा/वसुधा का वर्तुल पूरा होता है।

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वस्तुतः आगे...