‘उपहास’ में मत लीजिए ‘उ’ को

‘उपहास’ में मत लीजिए ‘उ’ को

‘उडुपी’ रेस्त्रां में कप में ‘उड़ेली’ कॉफ़ी पीते हुए अचानक ‘उचककर’, ‘उछलकर’ बारहखड़ी से ‘उ’ आ गया। यही वर्ण है जो ‘उचक’ सकता है, ‘उचका’ सकता है, ‘उटपटाँग’ हरकतें कर ‘उल्लू बना सकता है’, ‘अपना उल्लू सीधा’ करवा सकता है, वही ‘उन्नति’ भी करवा देता है। ‘उपहास’ में मत लीजिए क्योंकि यही सबसे ज़्यादा विरोधाभासों से भरा हुआ है

उचित उक्तियाँ

‘उकताहट’ हो रही हो, जी ‘उचट’ रहा हो तो कुछ ‘उपाय’ कीजिए। ‘उजाड़’ में नहीं ‘उत्साह’ से ‘उषा’ काल में किसी ‘उद्यान’ या ‘उपवन’ में घूमते हुए, बिना ‘उग्र’ हुए ‘उचित’ होगा कि ऐसी कई ‘उक्तियों’ को बीती स्मृतियों से निकाल ‘उजला’ कर लीजिए। देखिए सूर्य भी ‘उतरायण’ में आ गया है। दुनिया के ‘उतरार्ध’ में अँधेरा हो तब भी कहीं तो ‘उजाला’ हो ही चुका होता है।

पहले तो ‘उक्ति-युक्ति’ ही देखिए। ‘उम्मीद’ रखें। वहाँ ‘उछल-कूद’ करते बच्चों को देख आप भी ‘उच्च माध्यमिक’ के छात्र बन जाएँगे और आपका ‘उच्च रक्तचाप’ सामान्य हो जाएगा। किसी बच्चे को फिसलपट्टी से ‘उतरने’ के लिए मत कहिए बल्कि आप भी किसी झूले पर बैठकर ‘उमंग’ से भर जाइए। आप फिर ‘उड़ते कालीन’, ‘उड़न तश्तरी’, ‘उड़न खटोला’ वाली कहानियों में खो जाएँगे और आप ‘उड़ान’ भर लेंगे।

आपके दिल में जो ‘उतर’ गई है वह एक लहर ज़रूर ‘उछाल मारने’ के लिए ‘उठेगी’। देखिए ‘उत्तर दिशा’ से कोई ‘उड़ता हुआ बादल’ आएगा और आपके ‘तोते नहीं उड़ेंगे’। कोई ‘उड़ती खबर’ आएगी और आप ‘उड़ती चिड़िया का शिकार’ कर पाएँगे, अवसर खोज लेंगे, ‘उत्तर’ पा लेंगे। नित नव के लिए ‘उत्सुक’ रहिए पर सतर्क भी रहिएगा कोई आपके विचार न ‘उड़ा’ ले जाए। ‘उखड़े-उखड़े’ रहे तो ‘उखड़ना-पुखड़ना’ हो जाएगा। फिर तो ‘उखाड़-पखाड़’ और ‘उखाड़-पछाड़’ भी होने लगी।

उछाल

‘उच्च भावना’ रखें। ‘उछाल’ केवल शेयर बाज़ार या सोने के भावों में नहीं आता। जीवन में भी आता है। ‘उच्च प्रौद्योगिकी’ से आप ‘उच्च प्रोफ़ाइल’ पर पहुँचते हैं। कोई ‘उत्पाद’ आपको ‘उच्च मध्यम वर्ग’ में ले जा सकता है। तब कई बार लग सकता है कि आपसे कोई ‘उचक्का’ ‘उगाही’ करने आ जाए आपसे ‘उट्ठक-बैठक’ लगवाने लगे तो उसे ‘उघाड़ कर’ रख दीजिए। पर एकदम से ‘उत्तेजित’ न हो जाइए। ‘उतावली’ मत कीजिए।

‘उच्च कुलीन’ होना मतलब केवल ‘उच्च कुल’ में जन्म लेना नहीं होता बल्कि ‘उच्च कोटि’ का व्यवहार होता है। ‘उच्च श्रेणी’ की ‘उच्च शैली’ की भाषा का प्रयोग कीजिए। बात नहीं बन रही तो किसी ‘उच्च पद’ के अधिकारी के सामने ‘उजागर’ कीजिए, ‘उच्च न्यायालय’ की शरण लें। केवल ‘उच्छवास’ मत छोड़िए। ‘उच्चाभिलाषा’ रख ‘उच्चारित’ कीजिए कि आप क्या चाहते हैं। ज़िंदगी ‘उतरन’ नहीं, ‘उत्सव’ है। ‘उत्साह’ के साथ कुछ पाने की ‘उत्कंठा’ बनाए रखिए।

हो सकता है यहीं आपको जीवन का ‘उद्देश्य’ मिल जाए। आपके भीतर का ‘उद्दंड’ बच्चा जान जाए कि ‘उजड्ड’ या ‘उच्छृंखल’ होकर नहीं, जीवन की परीक्षा में ‘उत्तीर्ण’ होना हो, ‘उन्नति’ करनी हो तो ‘उत्पात’ नहीं करना, बल्कि दूसरों पर ‘उपकार’ कर ही ‘उत्कर्ष’ तक पहुँचा जा सकता है। तब ‘उत्कृष्ट’ की ‘उत्पत्ति’ हो सकती है और ‘उद्धार’ और ‘उत्थान’ भी। प्रकृति के साथ ‘उजर्’ (विरोध) की भूमिका में मत रहिए बल्कि ‘उदार’ बनने का ‘उदाहरण’ ‘उद्धृत’ कीजिए। अपने ‘उर’ से हर तरह का डर निकाल दीजिए।

उंगली पकड़कर चलना

‘उक्त’ बातों पर ध्यान देकर तो देखिए। आपका मन भी आपसे यही ‘उकलवा’ लेगा। न, न ऐसे ‘उखड़’ मत जाइए। आपको ‘उगने’ से कोई नहीं रोक सकता। जो आपको ‘उंगुली’ दिखा रहे हैं उन्हें भी ‘उमगेगा’ कि वे ‘उलटबाँसी’ कर रहे हैं। एक दिन आएगा कि वे ही लोग आपके सामने ‘उकड़ूँ’ बैठकर आपकी बात सुनने लगेंगे। आप ‘उनके’ भी मन पर इन बातों को ‘उकेर’ पाएँगे। ऐसे लोग ‘उंगुली के पोर’ पर गिनने जितने कम होते हैं लेकिन ऐसे लोग मिलते हैं तो लोग ‘उंगली चटकाकर’ नज़र उतारने से नहीं चूकते।

‘उंगुलियाँ नचाकर’ बात करने वालों को आप ‘उंगुली पर नचाएँगे’, उन्हें श्रीकृष्ण का ‘उदाहरण’ दे दीजिए जिसने चींटी उंगुली पर पर्वत उठा लिया था। फिर वे आपके ‘काम में उंगुली’ नहीं करेंगे। वे आपकी ‘उंगली पकड़कर चलने’ को तैयार हो जाएँगे। कड़ी तपस्या करने वाली शिव की ‘उमा’ अपने आपमें उदाहरण है। बताइए फिर क्या सिद्ध नहीं हो सकता? आपकी हर समस्या ‘उड़न छू’ हो जाएगी। आप ‘उत्तोत्तम’ पा लेंगे। नकारात्मकता को ‘उत्सर्जित’ कर दें। स्वामी विवेकानंद के ‘उत्तराधिकारी’ बनने का ‘उत्तुंग’ हौसला रखें। याद है न उन्होंने कहा था ‘उत्तिष्ठत’, जाग्रत, ‘उठ’ जाओ और तब तक चलते रहो, जब तक ध्येय न पा लो!