‘त’ का तजुर्बा

‘त’ का तजुर्बा

‘तुम्हें’ हिंदी सीखनी हो तो बॉलीवुड फ़िल्मों से बेहतर और कोई ज़रिया नहीं....अरे पर ‘तुम’ क्यों कह रहे हो...ऐसे ही ‘आप से तुम, तुम से तू होने लगी’...को आज़माते हुए। अब देखिए न तू, तुम, तुझे, तुम्हें से ही कितने गीत हैं, दिमाग में पक्का बैठ सकता है कि आप की जगह इसे कब बोला जा सकता है..जैसे ‘तुम पास आए, यूँ मुस्कुराए’ है या ‘तेरे जैसा यार कहाँ’ या ‘तेरी अदाओं पे मरता हूँ’ ...जब और करीब हो जाए तो ‘तू मेरी ज़िंदगी है’, गीत है, फिर ‘तुझे देखा तो ये जाना सनम’, ‘तू मुझे कबूल’ है या ‘तू प्यार है किसी और का’ है या ‘तेरी उम्मीद, तेरा इंतज़ार करते हैं’, ‘तुझे याद न मेरी आए किसी से अब क्या कहना’, ‘तेरे-मेरे सपने अब एक रंग हैं’, ‘तुझे सूरज कहूँ या चँदा’, ‘तूने दिल मेरा तोड़ा’, ‘तेरा साथ है तो मुझे क्या कमी है’, ‘तेरे नैना बड़े कातिल’, ‘तुझे ना देखूँ तो चैन’...को ही देखिए।

माँ भी हमें करीब होती है तो माँ के लिए भी ‘तू कितनी अच्छी है’ गाया गया है। और ‘तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो’ या ‘तू ही रे’ या ‘तेरे बिना ज़िंदगी से कोई शिकवा’ जैसे सदाबहार गीतों को ही ले लीजिए या कितने ही सिनेमा हैं जैसे ‘तेरे-मेरे बीच में’, ‘तेरे-मेरे सपने’, ‘तक्षक’, ‘तेज़ाब’ या ‘ताकतवर’।

‘त’ से ‘त’ का मिलना

ये सारे गीत देवनागरी वर्णमाला के ‘त’ वर्ग के इस पहले व्यंजन का वाक्य प्रयोग भली-भाँति बता देते हैं। भाषा विज्ञान इसे दंत्य, स्पर्श, अघोष और अल्पप्राण कहता है। बॉलीवुड के उक्त गीत गाते हुए आपको याद भी नहीं रहता कि आप इसका उच्चारण करते हुए किस तरह का विज्ञान आज़मा रहे हैं। यह जो उक्त शब्द है न यह बताता है कि ‘त’ से पहले आकर मिलने वाले व्यंजनों में ‘क’, ‘ख’, ‘त’, ‘न’, ‘प’, ‘ब’, ‘म’, ‘र’, ‘श’, ‘स’ आदि हैं, जैसे ‘उक्त’ शब्द में ‘क’ आकर मिल गया।

क्या आपको वे शब्द याद आते हैं जैसे ‘सख़्त’ या ‘तख़्त’ या ‘स्मित’ या ‘अस्त’? जब ‘र’ से ‘त’ मिलता है तो ‘त्र’ हो जाता है जैसे कर्ता और यदि ‘त’ आधा ‘र’ से मिले तो ‘त्र’ हो जाता है जैसे मित्र। ‘त’ से ‘त’ का मिलना ‘तत्व’ हो जाता है तो ‘त’ से ‘स’ का मिलना ‘सच्चित’ हो जाता है तो ‘त’ और ‘ज’ के मिलने पर ‘सज्जन’ हो जाता है, विश्वास नहीं होता? संधि विच्छेद कर देखिए सत् + जन = सज्जन और इसी तरह ‘त’ का ‘द’ बन जाना ‘जगद्बंधु’ में या ‘त’ का ‘न’ बन जाना ‘जगन्नाथ’ में भी विस्मित करता है, यकीन न हो तो संधि विच्छेद कर देख लीजिए। ‘त’ के तर्जुबे को तजिए नहीं। ‘ताक में रहिए’ और ‘ताक पर रखें’, ‘त’ को नीचे उतार लीजिए।

तकरीर करें, तकरार नहीं

क्या ‘त’ से तंग होने लगे? ना जी ना तंगदिल न बनिए और तंगहाली में तो बिल्कुल न रहिए, तंगी में दिन काटना बड़ा तंज देता है, एक-एक तंतु हिल जाता है। अपने तंत्र को मजबूत रखिए, तंदुरुस्त बनिए और तंदुरुस्ती के लिए आपको भी पता है कि तंबाकू का सेवन कदापि नहीं करना है। आपको तकलीफ़ हो, ‘त’ तक यह नहीं चाहता। आपकी तकदीर में तंबू में रहना न लिखा हो और वह दिन न आए इसलिए जितनी जल्दी हो सके झूठी तंद्रा तोड़ देनी चाहिए। तरकीब लगाइए, तकरीबन सारी तकनीक आजमाइए। तकरीर कीजिए, तकरार नहीं।

हो सकता है शुरू-शुरू में थोड़ी तकलीफ़ हो लेकिन तकिए में सिर छिपा रोइए नहीं। इसमें कोई ताज्जुब नहीं है आपके अकेले के साथ ऐसा नहीं हो रहा है, वक्त का तकाज़ा है तो राह तकना पड़ जाती है, कभी ‘तलुवे घिस’ जाते हैं तो कभी ‘तलुवे चाटने वाले’ यह कहते हुए आपके पास आ जाते हैं कि इसमें तकल्लुफ़ की क्या बात! ऐसे लोग आपसे तालुक्कात बढ़ाते हुए आपके लिए सब्जी-तकरारी भी खरीद देते हैं और ज़रा कहीं बैठने जाओ तो आपके पीठ पीछे तकिया भी सटा देते हैं। उनके तई बड़े तगड़े तरीकों से वे हर वो काम करते हैं जिससे उनका तंबूरा बजता रहे, भले ही आप उनसे ताल्लुक रखना चाहें या न चाहें। वे आपका तख्त कायम रहे ऐसा तख्ता लेकर घूमते रहते हैं। उनका काम किसी भी तरह हो जाए बस इसका तगादा लगाते रहते हैं। ताबेदारी में लगे रहते हैं। आपके ‘तलुवे धो-धोकर पीते’ रहते हैं।

‘त’ के तत्वावधान में

तजुर्बा कहता है कि किसी चीज़ की तकसीम (बाँटना) करने वाले उसकी तसदीक (पुष्टि) भी करते हैं। तड़ाक से ताँगे में चढ़ केवल तत्काल वाली तड़क-भड़क दिखाकर कुछ नहीं होता तल्लीन होकर काम करने पर ही तज्ञ बना जा सकता है। तात्पर्य यह है कि लगातार चमकाने पर ताँबा भी सोने की तरह चमकने लगता है।

तत्वज्ञान भी यही कहता है कि तटस्थ होकर ताल-तलैया या तालाब के तट पर खड़े रहने से बात नहीं बनती, तलहटी तक जाकर तलाशने की तलब हो जाए। तलैया में खड़े रहने से कुछ हासिल न होगा। ‘गहरे पानी पैठ’ की तड़प जग जाए तो बाहरी तड़के की ज़रूरत नहीं रहती अन्यथा बाकी सब तत्वहीन होता है। ‘त’ के तत्वावधान में तथाकथित कुछ नहीं है तथापि तथैव कार्य करने से तथास्तु ज़रूर हो जाता है। तथ्य तथा तथ्यान्वेषण से तथैव तथ्यसंगत होता है तदनंतर तथ्यों से तदुपरांत तदर्थ तथ्यात्मकता तद्गत होती है।

तनातनी के तनाव

तांत्रिकों के जाल में मत उलझिए, ताकतवर बनिए। ‘त’ की बातें तनहाइयों में दोहराइएगा। अन्यथा तन चलाने के लिए तनख्वाह के पीछे होने वाली तनातनी के तनाव आपको तनिक यह सब सोचने नहीं देंगे। तफ़रीह करने निकलें, यदि इस तरह की तिकड़म लड़ाते दफ्तर जाते रहे तो आपको तर्जनी पर नचाया जाएगा, आपके तबादले होते रहेंगे लेकिन आपका तबका नहीं बदलेगा और तबाही मच जाएगी, तबाह तक हो जाएँगे। तबियत से काम कीजिए, सोना भी तपकर ही निखरता है।

तादृश्य जो दिखता है उसे पारखी नज़र वाले तामझाम को ताड़ लेते हैं इसलिए तपश्चर्या या तपस्या का ताप झेलकर ही कोई तन्वंगी भी तपस्विनी हो सकती है, तब वह तपोमय और तपोमूर्ति कहलाती है। तारकोल और तारपीन की जहालत तज कर जो तब्दीलियाँ आप महसूस करेंगे तभी आप समझ पाएँगे कि तमतमाए न रहें तो जिंदगी तमंचा नहीं तबस्सुम बन जाने की तमन्ना लिए होती है। तमीज़ से जीना सीख लीजिए, तलवारें न खींचिए। तलवारबाजी का तमाशा चल रहा हो और आप तमाशाइयों की तरह तंबाकू थूकते खड़े न रहिए। हर बात तर्क के तराजू में न तौलिए, कुछ तो तरस खाइए।

ताल से ताल मिला

तयशुदा समय पर तमाम बातें होती हैं, इसी तर्ज पर सब चलता है। इस तरंग को जीवन में आने दीजिए। तल्खी मत रखिए। किसी तरुवर की छाँह में खड़े रहिए। तीरंदाजी का शौक हो तो अपने तरकश में तरक्की के बाण तराशिए और जिंदगी की ओर तरेर कर नहीं, किसी तरन्नुम की तरह तानपूरे पर इसकी तान साध लीजिए। फिर आपको ‘त’ की तानाशाही नहीं महसूस नहीं होगी, बल्कि ताल से ताल मिला वह ‘ताता थैइया’ हो जाएगा। तान लीजिए, तानें न दीजिए।

तारीफ़ों के पुल

तात्कालिक तौर पर ताबड़तोड़ तरबूज़ की तमाम तरलता ले आइए, तरावट ले आइए, तरबतर हो जाइए हर तरफ़ आपको तरुण तराने बिखरे दिखेंगे। तरोताज़ा हो जाइए। तवारीख़ या तारीख कहती है कि तश्तरी में सजा किसी को कुछ नहीं मिला। यदि आपको ऐसा लगता है तो तशरीफ़ ले जाइए। ऐसा कुछ नहीं होगा। तसल्ली से देखिए यह आपके जीवन की तस्वीर है, इसके तसव्वुर में आप हैं। इसे अपनी तहज़ीब में ले आइए। इसके तहत तहकीकात कीजिए, तलाशी लेंगे तो तहेदिल से शुक्रिया मानते हुए तह-दर-तह ताज़िंदगी ज़िंदगी के तहखाने में जाते रह पाएँगे। ताराधीश बनिए, तारामंडल में चमकिए फिर आपके बारे में ताम्र लेख पर तराशा जाएगा। आपकी तारीफ़ों के पुल बाँधे जाएँगे।

बेवजह ताव मत मारिए, कोई भी तिथि हो किसी भी तिकोन में एक तालिका बना लीजिए और उस हिसाब से खुद को ढाल लीजिए, देखिएगा आपके लिए तालियाँ बजने लगेंगी। तिब्बती लोगों की कर्मठता को अपना लीजिए, यूँ भी तिनका-तिनका जोड़कर घरौंदा बनता है, तीलियाँ संजोकर कुनबा बनता है। तितर-बितर होने से खुद को बचाइए। किसी भी तिमाही में तिमिर अंधकार छँटते ही तितली के सारे सुंदर रंग आपकी प्रतीक्षा कर रहे हैं। यदि आप तिमंजले मकान में रहते हैं तब भी दूसरों को तिरस्कृत न कीजिए, तिलमिलाकर दूसरों पर तिर्यक् दृष्टि न डालिए। जो कुछ भी दिखता है वह तिलिस्म होता है, उसे तिलांजलि दीजिए। तिस पर भी तिल-तिलकर जलना है तो दीपक बन जाइए। तीव्रगामी हों तीर्थाटन कर लीजिए। अपने आपको बहुत तीसमारखाँ न समझिए। ऐसा कोई काम कीजिए जिससे खुदबखुद आपकी तूती बोले।

उस पर तुर्रा

यह कविता ही रचना हो तो तुकबंदी नहीं कीजिए, कविवर धूमिल की तरह पूछिए कि ‘यह तीसरा आदमी कौन है, मेरे देश की संसद मौन है’। कभी-कभार तीसेक लोग भी जमा हों, तब भी तुरंत इस पर कोई नहीं बोलता है। कई बार कई अहम सवाल भी बहुत तुच्छ मान लिए जाते हैं। यह तो ऐसा ही है कि तुनकमिज़ाजी में हम तुतलाते बच्चे और तुलसीदास जी की तुलना कर बैठते हैं, उस पर तुर्रा यह होता है कि हम किसी बात पर तूल नहीं देना चाहते इसलिए बिगड़ी बात की तुरपाई कर रहे हैं। क्या हम तुर्क हैं, या खुद को उसके तुल्य मान रहे हैं? अपनी बात मनवाने पर तुलें हम कई बार तुष्टीकरण की नीति अपनाते हुए हर बात पर तुषारपात कर देते हैं। तोहमत है ऐसी तूँबी बजाने पर। भला इससे किसे तृप्ति मिलेगी? बल्कि तृष्णा और जगेगी।

तूफ़ान आने से पहले उसे भाँप लेने में समझदारी होती है। कोई कितना भी तेज़ चले उससे कदमताल मिलाते आना चाहिए फिर तेंदुलकर हो जाने से कोई भी किसी को नहीं रोक सकता। त्वचा पर तेल मलकर तैनात रहने की तैयारी रखिए और आपके विरोधियों के इरादे तोड़कर उनकी ऐसी की तैसी कर दीजिए। कसरत करते रहने से आपकी तोंद भी नहीं निकलेगी और कोई आपकी तौहीन भी नहीं करेगा। तोता-मैना के किस्से होने पर ही तोहफ़े दिए जाते हों, ऐसा तो कोई तौर-तरीका नहीं है। त्योरियाँ न चढ़ाइए, त्योहार मनाइए। जो त्यज्य है, त्यों (उसे) त्याग दीजिए। कितनी भी बड़ी त्रासदी हो, त्राहि-त्राहि मत मचाइए। त्वरित त्वेष में न आइए। तिल का ताड़ न बनाइए, तीन तेरह न कीजिए। केवल तारे गिनते मत रहिए, अब तान कर सो भी जाइए। एक दिन आपकी भी तकदीर खुलेगी, तकदीर चमकेगी।