क्यों जरुरी है अपने कंफ़र्ट ज़ोन से बाहर निकलना?

क्यों जरुरी है अपने कंफ़र्ट ज़ोन से बाहर निकलना?

दुःख के बादल छँटते हैं

कभी कभी अपने कंफ़र्ट ज़ोन से बाहर निकल कुछ नया करना काफ़ी कठिन होता है। इसकी एक वजह हमारा डर होता है कि क्या होगा यदि हम ग़लत साबित हो गए तो, क्या होगा यदि हम जो करने जा रहे हैं, वह नहीं कर पाए तो, हमारा बुरा समय हुआ तो या कुछ अच्छा नहीं कर सके तो?

भरोसा रखिए

यदि आप चिंताओं और संदेहों में ही घिरे रहे तो बड़े कदम उठाने के लिए हिम्मत कहाँ से जुटा पाएँगे? आपको लग रहा होगा कि केवल सवाल ही सवाल हैं और इनका कोई जवाब नहीं है, जबकि इनका जवाब पाना कोई बहुत बड़ा रहस्य नहीं है। प्रकृति ने हमें कुछ औजार दिए हैं। प्रकृति प्रदत्त ये औजार हमें अपनी ही ऊर्जाओं से जोड़ते हैं ताकि हम अपने उपहार ले सकें।

इन औजारों को हम पतवार की तरह देख सकते हैं जिससे हम अपनी जीवन रूपी नाव को हर परिस्थिति में खे सकते हैं। आपका अपना औजार, आपका अपना आध्यात्मिक विकास है। सबसे पहले यह विश्वास कीजिए कि आपको जिस वक्त जिस वस्तु की ज़रूरत होगी वह आपको मिल जाएगी। आपको केवल भरोसा रखना है कि दुनिया से आपको वह मिलेगा जिससे आप हमेशा रिफ्रैश और रिकनेक्ट रह सकें।

काले घने बादल

बताइए पिछली बार आपने खुद को कब तरोताज़ा और ऊर्जावान् महसूस किया था? यदि ऐसा नहीं है तो जान लीजिए बिल्कुल अभी वह समय है कि आप अपने आपको नया महसूस कर सकते हैं। अपने आपको शक्तिशाली मानना हर किसी के बस की बात नहीं है। देखिए जैसे वर्षा अपने साथ सब बहाकर ले जाती है, वैसे ही जब प्रकृति आप पर मेहरबान होती है जो आपका तन और मन-मस्तिष्क स्वच्छ होने लगता है ताकि आप अपनी खुद की ताकत से खुद को जोड़ पाएँ

यदि आप खुद को चिंता और निराशा के बादलों से घिरा पा रहे हैं तो इसे संकेत समझिए कि काले घने बादल ही वर्षा करते हैं। जब तक बादल नहीं छाते, वर्षा नहीं होती, हरियाली नहीं आती। संकट के बादलों को देखने की अपनी दृष्टि उस किसान की तरह मान लीजिए जो फसल की चाह में आसमान तकता है। आपको किसी तरह की मदद की दरकार हो तो मदद माँगिए। मदद लेना और मदद देना दोनों ही मानवीय होने का गुण हैं।

कठिन दौर

भारतीय दर्शन में चौमासा बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। चार्तुमास में भजन-कीर्तन होता है और मांगलिक आयोजन स्थगित रहते हैं। मान लीजिए मांगलिक आयोजन मतलब वे अवसर हैं जिनमें आप खुशियाँ मनाते हैं। चातुर्मास में स्थगित हुए आयोजन चार्तुमास बीतने पर फिर शुरू हो जाते हैं और वे चार महीने कितनी ही गरज-बरस वर्षा के हों, तूफ़ानी हो, हम दुःखी नहीं होते क्योंकि हमें अच्छे दिन आने की उम्मीद रहती है

बस जीवन के कठिन दौर को भी चार्तुमास मान लीजिए। अंतर इतना है कि कभी-कभी यह अवधि आपकी अपेक्षा से लंबी हो सकती है लेकिन दुःख के बादल छँटते हैं, इस पर विश्वास रखिए। आपको भी पता है बरसात सबकुछ धुला ले जाती है, बारिश प्राकृतिक तरीका है जिससे सब कुछ फिर चमक उठता है

वर्षा ऋतु में ही नव विकास और नव पल्लवन होता है। आप मानें या न मानें बरसात बहुत कुछ कर जाती है। डरिए नहीं, वर्षा यदि बाढ़ भी लाती है नया कुछ रचने का सामर्थ्य भी देती है। जब-जब प्रलय की बात कही गई है, उसके साथ नए युग की शुरुआत के बारे में भी बताया गया है।

यह नीला

यदि आप किसी दिन सोकर उठते हैं और खिड़की के बाहर बूँदाबाँदी देखते हैं तो अलसाए पड़े मत रहिए, उठ जाइए, फ्रैश स्टार्ट कर लीजिए। आसमान के नीले रंग को महसूस कीजिए, यह नीला शिव का है, राम का है और उस कान्हा का भी है। कान्हा से जुड़ी राधा की गाथा भी है, आप भी अपनी गाथा लिखने के लिए तैयार हो जाइए, कैसे, ऐसे

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