एक ‘मैं’ और एक ‘तू’ नहीं, बल्कि ‘हम’

एक ‘मैं’ और एक ‘तू’ नहीं, बल्कि ‘हम’

एक मित्र ने बताया 14 फरवरी को उसे किसी शादी में मुंबई जाना है। एक सहेली ने कहा कि उसे भी किसी शादी में उसी दिन उदयपुर जाना है और एक अन्य सहेली को देवास। प्रेम के दिवस को इस तरह अविस्मरणीय बनाते हुए कई युगल इस दिन परिणय सूत्र में बँधना तय करते हैं। वैलेंटाइन मनाने का चलन बीते 20 सालों में अधिक परवान चढ़ा है और इस तरह इस बीच एक पूरी पीढ़ी वैवाहिक आयु तक पहुँच गई है, जिनके लिए शादी करने का यह सबसे सुयोग्य दिन बन गया है।

ईथर की तरह

यूँ तो संत वैलेंटाइन रोम के पादरी थे। ईसाइयों के उत्पीड़न के दौरान उनकी हत्या की गई थी। वैसे तो यह उनकी शहादत का दिन है। उत्तर मध्य युग में संत दिवस को यूरोप में प्रेम की परंपरा से जोड़ा गया और बाज़ारवाद के चलते आधुनिक काल में यह पूरे विश्व में प्रेमियों के दिन की तरह मनाया जाने लगा। हर रूमानी कहानी की तरह हर प्यार की परिणति विवाह में मानी जाती है लेकिन देखा जाता है कि विवाह होते ही प्यार ईथर की तरह उड़ जाता है। लोग इसे बहुत स्वाभाविक मानते हुए कहते हैं कि समय के साथ प्यार का नयापन अपने आप पुराना पड़ जाता है। प्यार क्या लोहा है, जिस पर दुनियावी हवा और पानी से जंग लग जाता है?

प्यार तो हीरा

प्यार तो हीरे की तरह होना चाहिए, जो हमेशा चमकता रहे। न तो उसकी चमक कभी कम हो, न उसकी कीमत। फिर क्या वजह होती है कि प्यार महज़ औपरचारिकता बन जाता है? सपनों की उड़ान जब यथार्थ के धरातल को छूती है, तो वह चकनाचूर हो जाती है क्योंकि वह धरातल के लिए तैयार ही नहीं होती। छोटा बच्चा भी जब स्कूल जाता है तो कहीं न कहीं वह अपने से बड़ों को देखकर इस बात के लिए तैयार होता है कि स्कूल जाकर उसे पढ़ना पड़ेगा, होमवर्क करना होगा, परीक्षा देनी होगी।

लेकिन शादी को लेकर इतने रेशमी सपने बुने जाते हैं कि कोई तैयार ही नहीं होता कि शादी के लिए भी अध्ययन किया जाना चाहिए, अध्ययन एक-दूसरे की मानसिक, शारीरिक, बौद्धिक, भावनात्मक और आर्थिक आवश्यकताओं का। किसी भी घरेलू टास्क को दोनों को होमवर्क की तरह पूरा करना चाहिए, उससे बचाव का कोई रास्ता न खोजते हुए और जब परीक्षा की घड़ी आए तो दोनों को डटे रहना चाहिए।

यह टूटन

भारतीय लड़िकयों के साथ तो यह टूटन इसलिए भी अधिक होती है कि अभी भी उनकी कई इच्छाओं को मुल्तवी किया जाता है कि ‘शादी के बाद जो मर्जी करना’ या ‘अपने घर जाओगी, तब जैसा चाहे रहना’ या कोई शौक/ इच्छा पूरी करना हो तो ‘पति से मनवा लेना’। उन्हें लगता है जैसे शादी हो जाएगी तो वे आज़ाद हो जाएँगी जबकि वे सूत्र में बँध रही हैं, यह भूल जाती हैं

लड़कों पर दूसरे तरह का दबाव डाला जाता है- ‘देखना! शादी के बाद जोरू का गुलाम हो जाएगा’ या ‘पत्नी आएगी तो सारी अक्ल ठिकाने आ जाएगी’ या ‘शादी के बाद बीबी की चाकरी करोगे’। इस मानसिकता के दबाव में तैयार हुआ लड़का मन ही मन इसके विपरीत बनने के लिए तैयार होता चला जाता है कि बीवी की बात मानना मतलब गुलामी करना होगा, पत्नी के लिए कुछ काम करना मतलब उसकी चाकरी करना कहलाएगा या पत्नी की अक्ल ठिकाने लगाई जानी चाहिए।

वह पहले से ‘टग ऑफ़ वार’ या रस्साकशी खेलने को तैयार हो जाता है। जबकि सहजीवन, साहचर्य में रस्साकशी की बात ही कहाँ सेआती है, दोनों की रज़ामंदी, दोनों की आपसी सहमति यानी ‘मियाँ-बीवी राज़ी’ बस इतना ही होना चाहिए

मायके की याद

तीसरा अलग प्रभाव यह होता है कि शादी के बाद लड़कियों को मायका अधिक याद आने लगता है। उन्हें लगता है कि मायके में तो हम नाज़ों में पले-बड़े थे। वे बिसर जाती हैं कि मायके में उन पर जवाबदारी वैसी नहीं थी। फिर वे तपाक से कहेंगी क्यों क्या हम वहाँ काम नहीं करते थे? वे वहाँ भी काम करती थीं लेकिन उस काम की जवाबदारी उनकी नहीं होती थी। किसी दिन काम न करने का मन हुआ, नहीं किया, खाना उलजलूल बन गया तो परिवार की किसी बड़ी महिला ने सँभाल लिया। नहीं भी सँभाला तो पिता या भाई ने स्नेह के चलते वह निवाला हलक से नीचे उतार लिया।

ससुराल में तो उससे पहली अपेक्षा ही है कि वह खाना ठीक-ठाक बना ले। कितने लड़कों की शादी यह सोचकर कर दी जाती है कि अकेला रहता है, बहू आ जाएगी तो उसके खाने-पीने की चिंता ख़त्म हो जाएगी। लड़का भटक रहा हो तो उसकी शादी करवा दो। हमारे यहाँ हर समस्या का समाधान शादी से जोड़ा जाता है। अब पति बना लड़का भी सोचता है, उसने तो शादी ही इसलिए की थी कि यह मेरी देखभाल करेगी और यदि नहीं कर रही है तो उसका अंतर्मन उसे उकसाता है कि झगड़ ले, गुस्सा कर,तेरा अधिकार है। अब उसे कौन समझाए कि अरे बावले! तेरे से कम उम्र की तेरी ब्याहता है (अधिकतर मामलों में), तू उसे सँभाल ले।

शादी करते समय जो इस बात को समझ जाते हैं कि दोनों को एक-दूसरे को सँभालना है और वे दोनों एक ‘मैं’ और एक ‘तू’ नहीं, बल्कि ‘हम’ हैं, उनका पूरा जीवन हनीमून पीरियड हो सकता है,नहीं तो अधिकांश दंपत्तियों की तरह लग सकता है- चार दिन की चाँदनी, फिर अँधेरी रात।