रिश्तों में दरार आने के 5 कारण

रिश्तों में दरार आने के 5 कारण

सांझ की बेला, कॉफ़ी मग और जगजीत सिंह की ग़जल... ‘रिश्तों में दरार आई...साहिल पे नज़र आए,कितने ही तमाशाई’...और अचानक लगा कि रिश्तों में दरार आती ही क्यों है? ऐसा क्यों होता है कि कोई डूबता है तो जिन पर भरोसा हो, वे सारे रिश्ते ही तमाशा देखते किनारे पर खड़े नज़र आते हैं। डूबते को तो तिनके का सहारा भी बहुत होता है, फिर हम इंसान होकर भावनाशून्य कैसे हो जाते हैं? रिश्ते इतने खोखले कैसे हो जाते हैं?

1. औपचारिकता का दीमक

रिश्ते यकायक खोखले नहीं होते। पहले औपचारिकता का दीमक उसे धीरे-धीरे लीलता है और एक दिन कोई रिश्ता टूटकर बिखर जाता है। रिश्तों में औपचारिकताओं से बचना चाहिए। कभी ग्रीटिंग कार्ड कंपनियों ने रिश्तों का बाज़ार खड़ा कर दिया था, अब वही काम कुछ हद तक सोशल मीडिया कर रहा है।

गुड मॉर्निंग, गुड इवनिंग या इसी तरह के औपचारिक संदेशों से रिश्ते टिकते हों तो वे रिश्ते नहीं, ढकोसले हैं। आपके गुड मॉर्निंग न कहने पर भी यदि यह विश्वास हो कि हमारी न केवल भोर, बल्कि दोपहर और संध्या भी किसी के आशीष से नहाई हुई है तो वह रिश्ता अधिक मज़बूत है।

2. छननी से छने रिश्ते

यह सही है कि रिश्तों की कद्र दोनों ओर से होनी चाहिए लेकिन यदि दोनों में से किसी एक पक्ष को भी लगता है कि यह रिश्ता टिकना चाहिए, तो उसे बिना किसी अपेक्षा के रिश्ते को टिकाए रखना चाहिए। हमारे यहाँ रिश्ते निभाने की बात होती है। जो रिश्ता हर कसौटी पर खरा उतर जाता है, वह टिक जाता है

सुख में साथ हँसने वाले कई होते हैं लेकिन विपदा आन पड़े तब जो काम आए वह रिश्ता, सच्चा रिश्ता होता है। यह वक्त की छननी से छने रिश्ते होते हैं और इन्हें हमेशा अपने दिल से लगाकर रखना चाहिए।

3. कोई अर्थ नहीं

रिश्तेदारी और रिश्ता दो अलग बातें हैं। कई बार रिश्तेदारी होती है लेकिन रिश्ता नहीं होता है, कई बार इससे उल्टा होता है। दुनियावी रिश्तेदारी नहीं होती, लेकिन रिश्ता होता है और ऐसा रिश्ता ही मज़बूत होता है, जिसे निभाने का बंधन नहीं होता, जिसे निभाने का दिखावा नहीं होता।

‘मुझे तुम्हारी परवाह है’, यह ज़ुबान से कहने के बजाय, जब क्रिया के रूप में फलीभूत होता है और भले ही कहा न गया हो लेकिन वह परवाह ही परवाह होती है। औपचारिक तौर पर तो मुँह से कुछ भी कह सकते हैं, लेकिन उस कहने का कोई अर्थ तब तक नहीं है, जब तक उसे करके न दिखाया जाए।

4. आपसी जुड़ाव

रिश्ता जिद से नहीं, समर्पण से चलता है। शरण में जाना...बहुत बड़ा वाक्य लग सकता है लेकिन रिश्ता शरणागत होना होता ही है। कुछ रिश्ते ऐसे ही होते हैं, उन्हें प्रवाह के साथ बहने देना चाहिए। बाँधकर रखने से रिश्ता सड़ने लगता है। रिश्तेदारी से ज़रूरी है, आपसी जुड़ाव। यदि जुड़ाव है तो चीज़ों को छोड़ दीजिए।

नियंत्रण में रखने से रिश्ता बँध जाता है। हमेशा कहा जाता रहा है कि छोड़ दीजिए यदि रिश्ता आपका है तो आपकी ओर लौटकर आएगा ही, नहीं लौटता तो वो आपका था ही नहीं। यह समझ लिया तो पुरसुकून हो जाएगा।

5. मतभेद हो, मनभेद नहीं

जुनून चाहिए तो उसे अपने काम में लगाइए, रिश्ते में नहीं। अपेक्षाएँ जुनून से आती है, आपको लगता है कि रिश्ते में वैसा ही होना चाहिए, जैसा आप चाहते हैं, पर याद रखिए पकड़कर रखने से कोफ़्त बढ़ती है, रिश्ता मज़बूत नहीं होता। अपने रिश्ते में विश्वास रखिए। ‘कुछ तो मजबूरियाँ रही होंगी, यूँ ही कोई बेवफ़ा नहीं होता’..इस बात को समझ लीजिए। झगड़कर रिश्ते हासिल नहीं होते, झगड़ने से बैर बढ़ता है।

मतभेद हो सकते हैं, मनभेद नहीं होना चाहिए। मतभेद तो सुलझा लिए जा सकते हैं लेकिन मनभेद हुआ तो कैसे सुलझा पाएँगे। इस गज़ल के आख़री अशरार भी यही है कि ‘ख्वाबों पे यकीं हो तो, कैसे न मिले मंज़िल, वो देख तेरी मंज़िल, बाँहों में सिमट आई’...फिर मलाल न होगा कि रिश्तों में दरार आई।