लैट गो....

लैट गो....

छुट्टी की खुशगवार सुबह थी, प्रिया तसल्ली से बालकनी में बैठी अख़बार पढ़ रही थी। तभी बैल बजी...इस वक्त कौन होगा, प्रिया सोचने लगी, पेपर वाला, कचरे वाला, दूध वाला ...इन्हीं ख़्यालों में उसने दरवाज़ा खोला....सामने प्राजक्ता खड़ी थी...इतनी सुबह! प्रिया का चौंक जाना, उसकी आवाज़ में भी झलका...उसने पूछा ‘प्राजू!, इतनी सुबह!!..क्या बात!!!’

प्रिया के दरवाज़ा खोलते ही प्राजक्ता धड़धड़ाते हुए भीतर आ गई और भड़भड़ाकर बोल पड़ी- ‘मैंने घर छोड़ दिया ...घर से निकली तो समझ नहीं पाई कहाँ जाऊँ, इसलिए तुम्हारे यहाँ चली आई। शाम की बस पकड़कर अपने शहर चली जाऊँगी।’

प्रिया ने दरवाज़ा बंद करते हुए कहा- ‘अरे लेकिन ऐसा भी क्या हुआ...और नन्हा शैतान संजय वह कहाँ है?’

‘वह घर पर ही है। मैं अकेली ही निकल आई। अब वहाँ रहा नहीं जाता। सुबह से रात तक खटते रहो, लेकिन किसी को अहमियत नहीं।’

उतनी देर में प्रिया पानी का गिलास ले आई। प्राजक्ता को पानी देते हुए उसने पूछा- ‘चाय-नाश्ता हो गया, या वैसे ही निकल आई हो?’

प्राजक्ता फफक उठी – ‘उसी बात पर तो झगड़ा हो गया। आज नाश्ते में मैंने मैगी बना दी तो तुरंत सास-ससुर, पति सबकी नाक-भौं चढ़ गई। एकाध दिन भी एडजस्ट नहीं कर सकते। कभी-कभी लगता है इन्हें केवल खाना बनाने वाली चाहिए थी, तो शादी क्यों की...कोई खाना बनाने वाली रख लेते। पर उसे तो वेतन देना पड़ता न। बिना वेतन दिए काम वाली बाई मिल सकती हो तो कौन नहीं चाहेगा!’

प्रिया समझ गई थी कि इस वक्त प्राजक्ता को कुछ भी समझाना मुश्किल था। वह अपने आपे में नहीं थी। प्रिया के मन में उधेड़बुन चल रही थी। हो सकता है उसके घरवाले चिंता कर रहे हों... संजय केवल आठ साल का है। पति निखिल भी परेशान हो रहा होगा। प्राजक्ता की शादी के बाद प्रिया और निखिल भी मित्र हो गए थे। प्रिया ने ऊपर से शांत बने रहकर पूछा- ‘प्राजू ब्रेड-बटर दूँ, चाय के साथ?’ फिर सोचते हैं कुछ अच्छा-सा बनाएँगे। आज छुट्टी भी है।’

प्राजक्ता ने कहा- ‘हाँ चलेगा।’ गुस्से-गुस्से में वह निकल तो आई थी लेकिन अब उसे भूख भी लग रही थी और संजय की भी याद आ रही थी। प्राजक्ता ने कहा- ‘सुन न, निखिल को फोन लगाकर पूछ न, संजू उठ गया क्या,उसने दूध पीया या नहीं? मुझे घर पर न पाकर वह रो तो नहीं रहा।’

प्रिया के हाथ जैसे मौका ही लग गया। उसने कहा- ‘अरे यदि ऐसे मैं फोन करूँगी तो निखिल समझ जाएगा कि तुम मेरे यहाँ आई हो...तुम तो गुस्से में निकली हो न, और बिल्कुल नहीं चाहती होगी कि निखिल यहाँ आकर, तुम्‌हें मनाकर ले जाए।’

‘हाँ...मैं बिल्कुल नहीं चाहती कि मैं वापस जाऊँ। मुझे उस घर में अब नहीं जाना, जहाँ मेरी इज़्ज़त नहीं। पर संजू की चिंता हो रही है।’ प्राजक्ता के ऐसा कहते ही प्रिया ने नहले पर दहला मारा- ‘ठीक है, मैं निखिल को किसी बहाने से फोन करती हूँ। लेकिन जब मैं उससे बात करूँगी, तो तुम बीच में बिल्कुल दखलअंदाज़ी मत करना। तुम चाहती हो न संजू की खबर तुम्हें मिल जाए, वह तुम्हें मिल जाएगी, लेकिन खबर मैं कैसे निकालती हूँ, यह मुझ पर छोड़ दो।’

संजू के बारे में पता लग सकेगा इस आशा से ही प्राजक्ता के चेहरे पर मुस्कान आ गई।

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निखिल बेचैन था। तैश-तैश में वह प्राजक्ता से झगड़ा तो कर चुका था लेकिन अब उसे अफसोस हो रहा था। प्राजक्ता के बिना घर बिल्कुल खाली-खाली लग रहा था। माँ रसोईघर में काम कर रही थी, बाबूजी पेपर पढ़ रहे थे। घर में अजीब शांति छाई हुई थी। वह सोच रहा था यह तो अच्छा है कि संजू अभी तक सो रहा है। संजू उठते ही ‘मम्मी-मम्मी’ की पुकार लगाएगा फिर वह क्या जवाब देगा, क्या बताएगा कि मम्मी कहाँ चली गई। उसे भी नहीं पता कि प्राजक्ता कहाँ निकल गई है। वह फ़ोन भी नहीं उठा रही थी। उसने प्राजक्ता को फोन लगाने के लिए फिर से मोबाइल अपने हाथ में लिया कि तभी उस पर प्रिया का नाम फ्लैश होने लगा। प्रिया का फ़ोन था। निखिल को तसल्ली-सी हुई। उसके मन ने कहा कि मतलब प्राजक्ता इस समय प्रिया के यहाँ है। उसने बड़े उत्साह से ‘हैलो’ कहा।

प्रिया ने भी ‘हैलो’ जवाब दिया और सारी बातों से खुद को अनजान दिखाते हुए पूछा- ‘और क्या चल रहा है?’

निखिल मन मसोस कर रह गया। तो क्या प्राजक्ता इसके यहाँ नहीं है। निखिल ने बड़े ठंडे स्वर में जवाब दिया ‘सब ठीक है’।

प्रिया ने चहकते हुए कहा- ‘प्राजू तो रसोई में होगी, कहेगी अभी बात नहीं कर सकती,इसलिए तुम्हें फ़ोन लगा लिया। आज मेरी छुट्टी है। सोच रही हूँ, चलो कहीं बाहर चलते हैं। हाँ मतलब यदि तुम लोगों का और कोई प्लान न हो तो...क्यों न आज पूरा दिन आउटिंग की जाए। प्राजू से पूछकर बताना, मैं राह देख रही और हमारा संजू बाबा क्या कर रहा है?’

निखिल को विश्वास हो गया कि प्रिया को आज सुबह की घटना के बारे में कुछ पता नहीं है, उसने भी सामान्य बने रहने की कोशिश करते हुए कहा- ‘संजू तो अभी सो रहा है और तुम खुद ही प्राजक्ता को फ़ोन लगाकर पूछ लो न...तुम लोगों की गॉसिपिंग भी हो जाएगी...नहीं तो मैं हाँ कहूँगा और वो ना कह देगी’...निखिल ने झूठी हँसी लाते हुए कहा।

प्रिया ने ‘ओके’ कहकर फ़ोन काट दिया। निखिल फिर सोच में पड़ गया कि यदि प्राजक्ता इसके यहाँ नहीं गई तो कहाँ गई। उसके शहर जाने वाली सारी बसें तो शाम से शुरू होती हैं। लेकिन उसे विश्वास था कि प्राजक्ता कम से कम प्रिया का फोन तो उठा ही लेगी और प्रिया से उसे प्राजक्ता के बारे में पता चल सकेगा कि वह अभी कहाँ है।

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प्राजक्ता को प्रिया का घूमने जाने का कहना अच्छा नहीं लगा। उससे रहा नहीं गया। वो पूछ ही बैठी- ‘तुमने आउटिंग की बात क्यों की? मुझे कहीं नहीं जाना।’

‘तुम आज शाम अपने शहर जाना तय कर चुकी हो। मैं तुम्हें नहीं रोकूँगी। लेकिन क्या अपने घर जाकर सामान नहीं लाओगी? संजू से एक बार मिलना नहीं चाहोगी? एक मौका निखिल को भी देकर देख लो। कहीं बाहर निकलेंगे तो शायद चीज़ें सुलझ जाएँगी।’ प्रिया ने समझाते हुए कहा।

प्राजक्ता अब भी तैयार नहीं थी। लेकिन प्रिया भी अड़ी थी और प्राजक्ता जानती थी कि प्रिया ने तय कर लिया है तो वह नहीं मानेगी। प्राजक्ता ने कुछ देर ख़ामोश रहकर जवाब दिया – तुम निखिल को कह दो कि मुझसे बात हो गई है और मैं तुम्हारे यहाँ हूँ।

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संजू ‘मम्मी..मम्मा’ कहते हुए उठा था। निखिल ने यह कहकर टाल दिया था कि मम्मी बाहर गई है लेकिन ऐसे उसे कब तक टाल सकता था। चिंता तो उसे भी हो रही थी कि प्राजक्ता कहाँ गई होगी। वह कयास लगा रहा था। इस शहर में प्राजक्ता की जान-पहचान के ऐसे बहुत कम लोग थे, जिनके यहाँ इस तरह वह वक्त-बेवक्त जा सकती थी। एक प्रिया का ही घर था। प्रिया और प्राजक्ता कॉलेज की सहेलियाँ थीं। नौकरी के चलते प्रिया इस शहर आई और पुरानी सहेलियाँ फिर मिल पाई थीं। प्रिया खुले मिज़ाज़ की थी और निखिल की भी अच्छी दोस्त बन गई थी। कई बार वे तीनों भी घूमने जाने का प्लान बना लेते थे। संजू छोटा था तो दादा-दादी के साथ रह लेता था लेकिन अब वह भी साथ आने की जिद करता और उनकी तिकड़ी में वह भी शामिल हो गया था। प्रिया ने हमेशा की तरह ही आज फ़ोन किया था। उसके फ़ोन से नहीं लग रहा था कि प्राजक्ता उसके यहाँ है।

तभी प्रिया का फ़ोन आया और निखिल ने एकदम उठा लिया- ‘हाँ प्रिया बोलो...प्राजक्ता से बात हो गई क्या? क्या कहा उसने?’

-‘हाँ, हाँ उससे बात हो गई है। वो कह रही थी, तुम्हें कुछ काम है इसलिए तुम थोड़ी देर से आओगे। वो मेरे यहाँ पहले आ रही है।’

निखिल ने ‘ओके’ कह फ़ोन रख दिया। निखिल को तसल्ली थी कि प्राजक्ता ने प्रिया को सुबह की घटना के बारे में कुछ नहीं बताया था और वो प्रिया के यहाँ पहुँच रही है। निखिल ने संजू से कहा कि फटाफट तैयार हो जाएँ, प्रिया मौसी के यहाँ चलना है...हम लोग आज कहीं घूमने जाने वाले हैं। उसने माँ-बाबूजी को भी बताया कि प्राजक्ता, प्रिया के यहाँ है।

जैसे पूरे घर ने ही राहत की साँस ली।

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प्राजक्ता उधेड़बुन में थी कि निखिल का सामना कैसे करेगी...प्रिया उसे सामान्य बने रहने के लिए कह रही थी। प्रिया ने उसे कहा कि निखिल ने संजू को कुछ नहीं बताया है, तुम भी कुछ मत कहो। देखेंगे आगे...

प्राजक्ता सिहर गई थी...संजू को कैसे बताएगी कि वह उसे छोड़कर जा रही है। संजू के बिना वह कैसे रह पाएगी? सोच-सोचकर उसका सिर दुखने लगा था। उसने प्रिया से पूछा ‘एक और कप चाय मिल सकती है क्या?’ प्रिया ने कहा ‘यह भी कोई पूछने की बात है।’ प्रिया ने चाय की पतीली गैस पर रख कुछ ज़्यादा ही चाय चढ़ा दी, जैसे उसे यकीन था कि चाय उबलते-उबलते तक निखिल भी आ जाएगा और ऐसा ही हुआ। प्रिया रसोईघर में थी। दरवाज़े की बेल बजी। प्राजक्ता को ही दरवाज़ा खोलना पड़ा। निखिल को देख वह फिर असामान्य हो गई। संजू को देख उसका मन भर आया। संजू मम्मा कहते हुए प्राजक्ता से लिपट गया। उसने संजू को गोदी में उठा लिया और किचन में आ गई। चाय भी बन चुकी थी। प्रिया चाय लेकर बाहर आई लेकिन प्राजक्ता अंदर ही थी, जैसे वह बाहर आना ही नहीं चाह रही थी। प्रिया ने ही उसे आवाज़ दी – ‘प्राजू तुम्हारी भी चाय बाहर ही ले आई हूँ, आ जाओ।’ प्रिया ने तनाव को कम करते हुए कहा- ‘जल्दी तय करो,कहाँ चलना है, आज लंच भी बाहर ही करने वाले हैं। लेक व्यू चलें, मौसम भी अच्छा हो रहा है और बारिश के मौसम में वहाँ का नज़ारा भी बहुत अच्छा होता है।’ संजू तो कहीं भी जाने को तैयार था। प्राजक्ता और निखिल के बीच का तनाव उन्हें कुछ और सोचने ही नहीं दे रहा था। निखिल की ही गाड़ी में जाने वाले थे। वे लोग चल पड़े...हालाँकि अभी यह बताना मुश्किल था कि किसकी मंज़िल थी...