‘प’ की पटरी

‘प’ की पटरी

‘पके पेड़ पर पका पपीता, पका पेड़ या पका पपीता, पके पेड़ को पकड़े पिंकू, पिंकू पकड़े पका पपीता’...यह जो पढ़वाया जा रहा है, उससे देवनागरी वर्णमाला के ‘प’ वर्ग के पहले व्यंजन को पकाया जा रहा है। भाषा विज्ञान इसे द्वि-ओष्ठ्य, स्पर्श, अघोष और अल्पप्राण कहता है। पल भर में यह बड़ा कठिन लग सकता है पर यह तो पोता-पोती की पम-पम में बैठने जैसा है। पिता से दादा और परदादा से पड़पोते तक ‘प’ के इस परम आनंद को पहुँचाइए।

किंतु-परंतु

पोते (बोरे) भर के पक्ष को समझना पट-पट और चटपट सब जान लेने जैसा है। इसके पिरामिड को रचते हैं। पग धरते-धरते पैरों में पस पड़ जाए तो वह पदाघात कुछ घातक हो सकता है तुरंत डॉक्टर के पथ पर जाने के लिए पत्र लिख लीजिए ताकि कोई किंतु-परंतु न रहे और वे पर्ची लिख दें। पत्रक और पत्रकार और पत्रकारिता, पत्रचाप, पत्र-पेटिका, पत्रपेटी, पत्रभाग, पत्रवाहक, पत्रविहीन, पत्र व्यवहार, पत्रहीन, पत्रा और पतरा, पत्रांग, पत्राचार, पत्रालय, पत्रिका, पत्री, पत्रावली.. इसी तरह यदि पथ की बात कहें तो पथकनी, पथगामी, पथदर्शक पथदर्शिका, पथ प्रदर्शक, पद प्रदर्शन, पथभ्रमित, पथभ्रष्ट, पथरी, पथरीला, पथहीन, पथिकशाला, पथिका से लेकर पथ्य तक अनगिनत शब्द याद आ जाएँगे।

प्रसाद और प्रासाद

‘प’ की पटरी बैठ जाए तो पच्चीसों इसके प्यार में पड़ जाएँ और पतन न होकर पतंग की तरह प्रेम का पृष्ठ उड़ने लगें। पर यदि पोषक वातावरण नहीं मिला तो ‘प’ का पलड़ा पंद्रह मिनट में हिलने लगेगा। पचासों पतीले भर पत्थर भी तराजू के एक ओर रख दिए तब भी इस परीक्षा में पास होने के लिए पोपटपंची नहीं चलेगी, पलक झपकते कोई पंडित ही इसके पार जा सकेगा। इसका कोई पेपर नहीं है, न कोई पुजारी इस बारे में बता सकता है जो पात्र होगा उसे पगार मिलेगी वैसा ही कुछ है जो पालन करने के लिए प्रस्तुत होगा उसकी प्यास बुझेगी।

इसका कोई पूरक प्रकाश नहीं है,जो उस पार से दिखाई दे...इस परावर्तन को महसूस कीजिए, केवल प्रार्थना ही प्रीतम को पास ला सकती है और पराग से लदे पुष्पों और पलाशों को पल्लवित कर सकती है। पारस पत्थर की प्रणाली पुलिस के प्रारूप पर नहीं चलती बल्कि यह तो प्रसाद है जो प्रासाद में बैठकर नहीं मिल सकता। ‘प’ का पता-ठिकाना सही मिल जाए तो प्रेम की परिणति पतित पावन परिणय में हो परिणीता से पति-पत्नी के पवित्र पुण्य संबंध बन सकते हैं। पल्लू में बढ़ते परिवार के नए परिवर्तनों का स्वागत कीजिए।

पॉज़िटिव पॉइंट्स

‘प’ कहता है जो परिश्रम करेगा वहीं पूँजी के पॉज़िटिव पॉइंट्स लेगा अन्यथा प्रियजनों के पालनहार होने तक की पहचान नसीब नहीं होगी। प्रजातंत्र में पनवाड़ी के पास भी प्रधानमंत्री पद प्रदान करने का प्राप्तांक है। यह कहता है पतलून पहने किसी के परिधान या पहनावे से उसकी पहचान मत कीजिए और कोई कितना भी प्रख्यात क्यों न हो, परकाया प्रवेश कर देखिए वह क्या प्रसारित कर रहा है, उस पर गौर कीजिए। पर्यटक की तरह इस संसार में प्रारंभिक भ्रमण कीजिए, पूर्व से पश्चिम तक की यात्रा कीजिए लेकिन प्लास्टिक का कूड़ा कचरा मत फैलाइए, परानुभूति को महसूस कीजिए और जानिए कि यह कितना प्राणघातक है। प्रासंगिक होगा कि ऐसा कचरा फैलाने वालों को प्राणदंड तक दे दिया जाए।

पारा-पारी

पूरी तरह से यह बात अप्रासंगिक लग सकती है लेकिन इतनी भी नहीं कि आप पूड़ी को पानी में तल लें। पूड़ी की पारी (लोई) बनाइए पर ‘प’ के पदार्थों का पारा गर्म मत होने दीजिए, अपनी पारी आने का इंतज़ार कीजिए। इसके पास बैठिए, जैसे पिता के पास बैठते हैं।

पटकथा

प्राचीन काल से प्याज की परतों की तरह ‘प’ को परत-दर-परत समझा जाता रहा है। इसकी धर-पकड़ का आनंद लीजिए, इसके पकवानों का लुत्फ़ उठाइए। पकी-पकाई पक्की रसोई तो किसी को नहीं मिलती, अपने हिस्से का परिश्रम सबको करना पड़ता है, तब नसीब से पराँठा मिलेगा। इसकी कोई पक्षधरता नहीं है, यह कोई पक्षपात नहीं करता। ‘प’ का पक्षी तो हर पखवाड़े ऊँची उड़ान भरता है, यह पखेरू पखारने रखे चावल चुगता है। जैसे पखावज पर कुछ बजता है तो पगडंडी पर चलने वाला भी पगला जाता है।

‘प’ का पाँच गुना आनंद पचनाग्नि को बढ़ाता पंच तत्वों का मिश्रण है। यही इसकी पटकथा का सारांश है। जो पंजाब से पठानकोट और पटना तक हर जगह समान है। पटिया पर बैठकर भी पटरानी का ठाट इसके पास है और वाक् पटुता भी। पट्टी लेकर बैठने और पठन-पाठन में रुचि रखने वालों ने खत के पुर्जे उड़ाने के किस्से तो सुने ही होंगे, नहीं सुने तो इसके पड़ोस में बैठकर अच्छी तरह से जाँच-पड़ताल कर लीजिए फिर देखिए। पतंगा बन खलास मत हो जाइए, याद रखिए पतझड़ के बाद वसंत भी आता है।

परिश्रम से परिशोधन

ज्ञान के क्षीर को इतना पतला मत होने दीजिए कि पनीला हो जाए। परखनली से जाँचिए। खर-पतवार अलग कर देखिए इसकी पताका कैसे फहराने लगती है। ‘प’ का दोना-पत्तल और पत्ता-पत्ती और पत्तागोभी, पनीर-पुलाव...आनंद लेते चलिए। पर तीन पत्ती मत खेलिए वरना आप पत्तेबाज कहलाएँगे। ‘प’ का पद लीजिए, पदक कमाइए, पदचर न बनिए, पदचाप महसूस कीजिए। पदचिह्नों पर चलिए, पदत्याग न कीजिए, पदत्राण पहनिए, पशुतम पद्दलित न बनिए, पदबंध के साथ ‘प’ का पदभार स्वीकार कीजिए और इसके पदन्यास पर थिरक उठिए

पलंगतोड़ आराम मत कीजिए, परिश्रम से परिशोधन कर परिस्थिति को बदलिए। यदि थक जाएँ तो पद्मासन लगा लीजिए और ‘प’ के पद्य का परिच्छेद पढ़ने लगिए। पनडुब्बी में बैठकर ‘प’ के यहाँ पधारिए पान मुँह में डालिए फिर देखिए कोई पनौती आप पर हावी नहीं होगी। इसे पन्ने की तरह धारण कीजिए और पब्लिकली पपीहे की तरह चहक उठिए। परःदुख के पर्वत-पहाड़ को पहचानिए। परंपरा का परंपरागत परांदा लिये निकल पड़िए।

‘प’ का पर्याय

अपनी परछाई को भी अपनी पहचान बनाइए, परजीवी न बनिए,परनिंदा न कीजिए। अच्छे परफ़ॉर्मर बनिए और परब्रह्म तक पहुँचिए, परमाणु ऊर्जा का संचार कीजिए, परमानेंट परमार्थ कीजिए। परमेश्वर को पाने के लिए किसी परमिट की ज़रूरत नहीं पड़ती। परवरदिगार की चाह के लिए परराष्ट्र या परलोक ही जाने की ज़रूरत नहीं, अपने भीतर उसे पा लीजिए, परवशता की ज़रूरत नहीं होगी। वक्त आने पर परशुराम की तरह पराक्रम करने के लिए शस्त्र उठाने में परहेज न कीजिए, पराकाष्ठा तक परांगद, पारंगत हो जाइए। पराजय न हो इसलिए परायेपन के बिना यह परामर्श रख लीजिए ताकि परावलंबित न होना पड़े।

यह ‘प’ का पारस है जो परास्त के परिंदे को पर भी फड़फड़ाने नहीं देगा। इस परिकथा का आनंद लीजिए, शेष का परिग्रह कीजिए और अपने परिचय से नए सिरे से परिचित हो जाइए और परिणाम देखिए। प्रमाद का परित्याग कर परितोष और पारितोषिक लीजिए। अपनी परिधि का विस्तार कर नए प्रमेय की नई परिपाटी की परिभाषा का परिमार्जन कीजिए। परदे में मत रहिए, पुराने पलस्तर हटाइए, पलायन न कीजिए, पर्याप्त हास-परिहास भी कर लीजिए। पर्सनली ‘प’ का पर्याय खोजना हो तो यहाँ से पलटिए, नहीं तो पालथी जमा इसके पर्व को मनाना पसंद कीजिए। अब बिना किसी पशोपेश के पसीजते हुए इस पसारे को समेटते हैं ताकि प की पहलवानी के पहलू का पहले-पहल पसीना न निकले। ‘प’ का पहाड़ा है, ‘प’ का पाहुनाचार है जो प की पहेली के हल तक पहुँचाता है।