इंटरनेट ऐटिकेट्स यानि 'नेटिकेट्स'

इंटरनेट ऐटिकेट्स यानि 'नेटिकेट्स'

आइए ‘नेटिकेट्स’ के बारे में बात करते हैं

एक दौर था, जब काशी करने जाना कहावत हुआ करती थी। लोग काशी या चारधाम की यात्रा करने जब निकलते, तो सारे नाते-रिश्तेदारों, कुनबे से मिलकर जाते थे कि अब गए तो लौटना संभव नहीं और संपर्क तो लगभग दुर्भर ही। उस दौर से इस दौर का लंबा फ़ासला तय हो गया है अब लोग तीर्थयात्रा करने जाते हैं और प्रसाद लेकर लौटते हैं और संपर्क हीनता तभी मानी जाती है जब नेटवर्क की समस्या हो।

इंटरनेट ने दुनिया को करीब ला खड़ा किया है। सोशल मीडिया पर नौनिहालों से लेकर बुजुर्ग तक सभी आ गए हैं और जैसे आभासी दुनिया ही असली दुनिया बन गई है। असली दुनिया के तौर-तरीकों से हम वाकिफ़ रहते हैं लेकिन क्या हम इंटरनेट की रवायतों से परिचित हैं? यदि हम उन आदतों से वाकिफ़ नहीं हैं, तो जानना होगा कि इंटरनेट से जुड़े ऐटिकेट्स या ‘नेटिकेट्स’ क्या है?

राई का पहाड़

अधिकतर युवा और बच्चे इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं और जैसी उनकी आयु होती है, वैसा बेधड़कपन उनके व्यवहार में होता है और वह यहाँ भी दिखता है। बिना सोचे-समझे धड़ाधड़ कुछ भी पोस्ट करना, फॉरवर्ड और शेयर करना, लाइक या ट्रोल करना यह सब बहुत हद तक भीड़ तंत्र के हिस्से की तरह होता है।

कितनी बार सरकारी-प्रशासनिक तौर पर हिदायत दी जाती है कि अफवाहों का प्रसार न करें, धर्म-महज़ब संबंधी ऐसी कोई बात न करें, जिससे किसी की भावनाएँ आहत हों लेकिन आदत से बाज न आते हुए, आए दिन यह सब ऐसे ही होते रहता है। पुलिस की साइबर ब्रांच के पास रोज़ ऐसे सैकड़ों मामले आते हैं जिसकी तह तक पहुँचने पर पता चलता है कि ‘राई का पहाड़’ बना दिया गया था। किसी भी ख़बर की सत्यता की पुष्टि होने पर ही उसे आगे बढ़ाए वरना ऐसी ख़बरों से दूरी बनाए रखें।

डोंट फीड द ट्रोल्स

यही बात ट्रोलिंग के संबंध में भी है। इस बारे में एक कहावत बहुत प्रचलित है कि ‘डोंट फीड द ट्रोल्स’, मतलब जवाब न दें और बचे रहें। सबसे पहली नसीहत तो यही दी जाती है कि किसी को भी बिना जाने-पहचाने अपना दोस्त न बना लें। अपरिचित को पूरी प्रोफ़ाइल विज़िट करने या फोटो डाउनलोड करने का अधिकार न दें। साइबर बुलिंग ऐसे ही शुरू होती है और कानून में साइबर बुलिंग या ट्रोलिंग को ऑफ़ेंसिव नहीं माना जाता इसलिए उन्हें सज़ा देना मुश्किल होता है।

कुछ आँकड़े

एक सर्वे बताता है-

  • भारत में 12 से 17 वर्ष के बीच के लगभग 37% युवाओं को ऑनलाइन तंग किया जाता है।
  • इनमें से 23 % छात्रों ने माना कि उन्होंने ऑनलाइन कभी न कभी किसी न किसी के बारे में कुछ ग़लत कह दिया था।
  • इसी तरह इंस्टाग्राम सोशल मीडिया पर साइबर बुलिंग का सामना 42 % युवाओं को करना पड़ा।
  • दु:खद है लेकिन 10 में से केवल एक किशोर अपने साथ हुई साइबर बुलिंग के बारे में पैरेंट्स को बताता है।

हमें क्या करना चाहिए?

हमें अपनी नैतिक जवाबदारी निभानी चाहिए। जैसे अफ़वाहों से दूर रहें, सभी धर्मों के प्रति संवेदनशील रहे, सही शब्दों और सही भाषा का प्रयोग करें। साइबर बुलिंग और ट्रोलिंग न खुद करें न किसी और को करने दें, न किसी के द्वारा ऐसे किए जाने को बर्दाश्त करें। यदि आपका परिचित न हो तो उसके जन्मदिन पर विश करने, उसकी पोस्ट पर कमेंट करने या उसे मैसेज करने से बचे। किसी को बिना इज़ाजत टैग न करें। कोई पर्सनल बात करनी हो तो किसी की टाइमलाइन पर न करें।

कई बार पर्सनल चैट ही उठाकर टाइमलाइन या वॉल पर पोस्ट कर देते हैं। ऐसा कदापि न करें। यदि रोमन लिपि में लिख रहे हैं तो कैपिटल लैटर्स का अनावश्यक प्रयोग न करें, यह दर्शाता है कि आप उस बात पर ज़ोर देकर अपनी बात कह रहे हैं या आप नाराज़ है। इमोजी का इस्तेमाल भी सोच-समझकर करें कि आप किसे, कैसी इमोजी भेज रहे हैं

और यह भी

फ़ेसबुक पर अपनी ही पोस्ट को लाइक न कर दें। आपका फ़ोटो जिसने लिया है, उसे क्रेडिट अवश्य दें। किसी दोस्त की पोस्ट शेयर कर रहे हैं तो उसे थैंक्स कहें। किसी की रचना उठाकर पोस्ट कर रहे हैं तो सही रचनाकार का नाम लिखे और नाम न पता हो तो अज्ञात कहें।

हैशटैग कर रहे हैं तो ध्यान दे कि जिस मसले पर बात है, उसी से जुड़ा हैशटैग होट्विटर यूज़र्स पूरे 140 कैरेक्टर्स का इस्तेमाल खुद ही न कर बैठें। ऐसा करने से दूसरे किसी को रिट्वीट करते वक्त कुछ लिखने की जगह नहीं रह पाती।

ये बहुत छोटी-छोटी बातें हैं लेकिन इन्हें अपने व्यवहार में लाकर आप भी आभासी दुनिया की सभ्यता को विकसित कर सकते हैं। आभासी दुनिया को भी सभ्य समाज की आवश्यकता है।