‘न’ का निन्यानवे का फेर, है न!

‘न’ का निन्यानवे का फेर, है न!

नानी तेरी मोरनी को मोर ले गए’...नानी और नाबालिग नवासी के बीच के इस संवाद गीत को सुन ठिठक गए क्या? नवासी मतलब बेटी की बेटी और अंक गणित का अस्सी के बाद और नब्बे के पहले आने वाला अक्षर भी है, है न? यहाँ न का प्रयोग ना कहने के लिए नहीं, बल्कि उस बात पर ज़ोर देकर लगभग हामी भरवाने के लिए है, किसी से जब किसी बात के लिए चिरौरी की जाती है तो त वर्ग का यह पाँचवा व्यंजन बड़े प्यार से इस्तेमाल होता है, कर दो न, खा लो न, जाओ न, आओ न, हटो न... अब इसे उलट कर पढ़िए तो न नकारात्मक अभिव्यक्ति करा देता है, न दो, न खाओ, न जाओ, न आओ, न हटो... पहले लग गया तो कहा गया मत करो और अंत में लग गया तो कह पड़ा कर दो न...

कहो न...

भाषा विज्ञान कहता है कि यह दंत्य, नासिक्य, स्पर्श, घोष और अल्पप्राण है पर बॉलीवुड के गीतों में हिंदी के इंटोनेशन में तो यह इतना मोहक है जैसे ‘कहो न प्यार है, कहा न प्यार है’....दोनों ओर से ‘न’ का ही आदान-प्रदान है। यह वर्ण शब्दों के आदि, मध्य और अंत सभी जगह आ सकता है। कहीं-कहीं जहाँ ‘न’ की मर्जी हो वह ना भी बन जाता है- ना कर देना, मतलब ना में जवाब देना। ना शोर न मचाओ, में दोनों तरीके से नकार दिया गया है और कहा जाता है यदि नाभि से आवाज़ निकालकर बोले तो इतना शोर नहीं होता, जितना गला फाड़कर चिल्लाने पर होता है। नाच-नाचकर नाभिकीय कचरा फैलाने वाले इस नाद विद्या की नाड़ी नहीं पकड़ पाएँगे। नतीजन जिन्हें समझ नहीं आता उन्हें नाग और नागफनी का अर्थ बताना नादानी है, वे तो नागरी और नागरिक को भी एक मान लेंगे और नाई की दुकान पर बैठ इसे नाइंसाफ़ी मान अपने नागरिक अधिकारों की दुहाई देने लगेंगे।

नाक,नाकाबंदी और नाकाम

यह नाइट्रोजन गैस थोड़े हैं, इसे तो बड़े नाज़ो-अंदाज़ से बरतना होता है। पर हर बात में अपनी नाक अड़ाने वाले, इस नाज़ुक बात को कैसे समझेंगे भला। उन्हें नाक और नाकाबंदी का अर्थ बताने तक में आप नाकाम हो सकते हैं। तब वे आपको नककटा कह आपकी नाकामयाबी पर हँसने लगेंगे। नकद-नारायण जिन्हें प्रिय हो वे नकदी का नकाब ही ओढ़े रहेंगे न। वे असली-नकली का भेद तक नकार देंगे। उनकी नाक में नकेल कौन कसेगा, यह तो नक्कारखाने में तूती बजाने जैसा है। वे आपको ही नाकारा साबित कर देंगे। न की नक्काशी तो उन्हें समझाई जानी चाहिए जो नैन-नक्श से परे और नक्सलवाद के नक्शों के अलावा बिना नथुने फुलाए भी कोई बात समझ पाते हों।

नगीना और नागिन

इसके नक्शेकदम पर चलकर इस नक्षत्र तक पहुँचने का आनंद ले सकते हैं। इसके नखरे उठाने का भी अपना मज़ा है जैसे उससे नखरीला है, नखरेबाज़ है, नखरेबाज़ी है, नख-शिख नखरेवाला है। एक से बढ़कर एक नग इसके पास हैं। आप इसे नगण्य मत समझिएगा, इसके नज़दीक जाइए, नहीं तो, यह नगाड़ा बजाकर बता देगा कि वह नगीना है और आपको नागिन डांस पर नचवा लेगा। फिर आप इसे कैसे नज़रअंदाज़ कर सकते हैं। इसकी नज़ाकत पर नज़र डालिए फिर आपके मन में इससे निज़ात पाने का विचार नहीं आएगा। इसका नज़ारा ही ऐसा नूरानी है कि आप इसकी नज़्म को किसी को नज़ीर करना चाहेंगे।

नॉट और नाट

नतमस्तक हो जाइए क्योंकि इससे नटराज है, नटलीला करता नटवर है, नटवरी नृत्य का नर्तन है, नटी-नटिनी है, नटकर्म है, नाटक है, नौटंकी है और नाट भी है। अंग्रेज़ी का नॉट वाला नहीं, नहीं, खालिस देशी भाषा में जिसे नाट लगाना कहते हैं वह अंग्रेज़ी की नॉट की तरह कई लोग नत्थी बाँध लेते हैं। आपको यह बड़ा नटखट लग रहा है क्या? बिल्कुल आपके देखते ही देखते यह नदिया को पारकर नदारद हो जाएगा। नदी के तट पर खड़ी ननद-भौजाई भी फिर इसे ढूँढ नहीं पाएँगे। नपा-तुला जीने वाले इसकी गहराई नाप नहीं पाएँगे। नफ़रत और मोहब्बत भी जो नफ़ा-नुक़सान देखकर करते हों वे इसकी नब्ज़ नहीं पकड़ सकते।

नमित होने का भाव

नभ तक ऊँचा उड़ने वाले, नभोवाणी सुनने वाले नमक हलाल ही इसकी नमी पहचान सकते हैं, नमक हराम नहीं। नमनशील होकर नमस्कार कीजिए या नमाज़ पढ़िए, भाव तो नमित होने का ही है, चाहे तो नम्रतापूर्व अपने नयनों से नयनाभिराम नमूना देख लीजिए। नारद मुनि की तरह इधर-उधर डोलते मत रहिए। एक नहर बनाइए जो आपको नवसृजित करती रहे। आप-हम नरभक्षी तो हैं नहीं कि एक-दूसरे को काट खाए, थोड़ा नरम बनिए। नरमाई की नरमाहट को नरमी बरतकर ही देखा जा सकता है। वरना अल्लामा इकबाल का वह शे’र तो आपने भी सुना होगा- ‘हज़ारों साल नरगिस अपनी बेनूरी पर रोती है, बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदा-वर पैदा’। खूबसूरती की तारीफ़ कीजिए और दुष्टों के नाश के लिए नरसिंह भी बन जाइए।

नव्य नवोत्थान

नरेंद्र बनना है, नराश्म बनती नस्ल नहीं। कोई नवयुवती नवोढ़ा हुई फिर जब नवप्रसूता हो किसी नवांकुर की तरह आपको नर्सिंग होम से घर लाई थी तो नवागंतुक का स्वागत केवल नर्सरी की पढ़ाई करवाने या जीवन भर नर्वस बने रहने के लिए नहीं किया गया था। नवपल्लवित होने के लिए आप जन्मे हैं, जैसे नवंबर के बाद दिसंबर और फिर नवजागरण का गीत गाता जनवरी आता है वैसी नलिका जीवन की भी रखिए कि मलिन नहीं, नलिन होना है, नवनिर्माण करना है। मंथन करने से ही नवनीत निकलता है यह मत भूलिएगा। नौ के फेर में मत पड़े रहिए, नवमी के बाद दशमी की ओर बढ़िए। आप अपने आपमें नवल नवरत्नों में से एक हैं। नवीनतम नवाबज़ादे की तरह पुराने नवाबी ठाट-बाट में याकि नशे में धुत मत रहिए बल्कि नवीनीकरण को अपनाइए, नववीनीकृत होते रहिए। नवोदय का नव्य नवोत्थान हमारा नारा होना चाहिए। नश्तर से चुभते जीवन को नष्ट मत होने दीजिए बल्कि नश्वर जीवन की नस पकड़ अपना नसीब खुद लिखने की इसे नसीहत मान लीजिए।