
मुनिया की दुनिया
किस्सा 8
एक खिड़की है और खिड़की के पार एक पेड़…उस पेड़ पर आने वाले कई पक्षी
मुनिया उस दिन आई तो खिड़की की ओर उसकी पीठ थी..मेरा चेहरा खिड़की की तरफ़ था…जाहिर है मुझे खिड़की के पार का दिख रहा था, उसे नहीं।
पत्तियों के खड़खड़ाने की आवाज़ हुई और उसने श्श्श किया
फिर फुसफुसाकर बोली कौन है
मुझे तो दिख रहा था मैंने कहा कौआ है
मुनिया- नहीं कबूतर है
मैं- अरे कौआ है
मुनिया – कबूतर है
… कितना बड़ा पाठ उससे खेलते-खेलते मिल गया। उसकी पीठ थी पर वह मान रही थी कि कबूतर है, मैं देख रही थी, उसे कह रही थी कौआ है..पर वह मानने को तैयार नहीं थी। यही करते हैं न हम..ईश्वर हमारे सामने खड़े हो हमें सत्य बता रहे होते हैं, तब भी हम सत्य की ओर पीठ करे खड़े रहते हैं और चाहते हैं कि ईश्वर वही कहे जो हम चाह रहे हैं..
वाह री मेरी मुनिया..तुम तो ज्ञान दे गई
(क्रमशः)
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