मुनिया की दुनिया

मुनिया की दुनिया

मैं काम कर रही थी..किचन का काम था, फिर ऑफ़िस का…

मुनिया को खेलना था…

मैंने मुनिया से कहा अभी नहीं, बाद में खेलेंगे

वह बोली तीन बजे

मैंने हाँ कह दिया तीन बजे

उसने यह कब कहा था कि कब, कौन-से दिन तीन बजे।

वह अपने वादे को भूल गई होगी, पर मुझे कचोटता रहा कि इसी तरह हम तमाम ज़रूरी-गैर ज़रूरी कामों में उलझे रहते हैं और हम खेलना ही भूल जाते हैं..खेलना..बेवजह हँसना…खिलखिलाना…

जबकि परमानंद है मुनिया

(क्रमशः)

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