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मुनिया की दुनिया
किस्सा 18
उसने मुँह में लॉलीपॉप पकड़ी थी और दोनों हाथों से ताली बजा रही थी। मैं उत्साहित हो गई और कह बैठी-‘चलो, मैं भी ऐसा ही करती हूँ’।
मुनिया ने तुरंत मना कर दिया…कह दिया मैं ऐसा नहीं कर पाऊँगी।
मैं- ‘क्यों नहीं कर पाऊँगी?’ (मुझे लगा वह फिर अपना तर्क देगी कि फ्रॉक पहनकर ही ऐसा कर सकते हैं, जैसा उसने कहा था कि फ्रॉक पहनकर ही गोल घूम सकते हैं, वरना नहीं)
मुनिया- ‘नहीं कर सकती!’
मैं- ‘अरे! पर तुम्हें देखकर मेरा भी ऐसा करने का मन कर रहा है’
मुनिया- ‘अरे, आप बड़ी हैं न, इसलिए आप ऐसा नहीं कर सकती। बड़े लोग ऐसा नहीं करते’।
...मैं सकते में आ गई। हम मुनिया को जाने-अनजाने क्या सिखा रहे हैं। हम बच्चों से ऐसा नहीं कहते कि तुम बड़े हो गए हो तो ‘यह’भी कर सकते हो और ‘वह’ भी। हम उनकी काबिलियत को बढ़ाने के नाम पर उन पर पाबंदियाँ बढ़ाते हैं …क्या करना/ क्या नहीं करना … मन में बिठाए जा रहे हैं।
…कल को मुनिया भी बड़ी हो जाएगी, और हम (समाज) उससे भी कहेंगे ‘तुम बड़ी हो गई हो, ऐसा मत करो, वैसा मत करो’।
क्या बड़े होने का मतलब खुशियों से दूर बोझिल जीवन जीना है?
मेरी मुनिया, बड़ी हो जाओ पर तब भी तुम ऐसे ही लॉलीपॉप खाना, चटकारे लेना, फिसलपट्टी पर चढ़ना-उतरना, झूले में बैठ अपने बालों को उड़ाना-इतराना..इठलाना और पानी में वो धम्म से ‘छssपाssक’ भी करना…
मेरी मुनिया…बड़ी होना पर ऐसे नहीं कि बड़की बन जाओ… भीतर से छुटकी ही रहना, चुलबुली, शरारती, प्यारी।
(क्रमशः)
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#MKD। #Kissa 1। कैसे मुनिया ने आते ही सवालों की झड़ी लगा दी