सारे खेल मन के ...

सारे खेल मन के ...

क्या आप अपने तार्किक और तर्कसंगत पक्ष को पहचानते हैं? इस सवाल को अतार्किक कहते हुए सिरे से खारिज मत कीजिए बल्कि इस विचार के साथ अपने स्वयं के तार्किक पहलू को अपनाइए। जैसे ही आप खुद को तर्क की कसौटी पर रखते हैं आपको हर पहलू का तार्किक पक्ष नज़र आने लगता है। तर्क और तार्किकता आपको नेतृत्व का गुण प्रदान करेगी, उसे स्वीकार कीजिए।

सामाजिक-राजनैतिक, भावनात्मक-आर्थिक आप किसी भी पक्ष की बात कर लीजिए, नेतृत्व का सूखा हर जगह दिखता है। नेतृत्व करने के लिए आवश्यक होता है कि आपके पास संबंधित विषय का पूरा ज्ञान हो, तभी आप नेतृत्व कर सकते हैं। ज्ञान परिमार्जित कीजिए और अपने विचारों से दूसरों को भी दिशा दीजिए और उसके बाद पहल करने से डरिए नहीं।

यदि आप चिंतित और डर की वजह से कुछ सोच नहीं पा रहे हैं तो उससे खुद को मुक्त कर दीजिए। हमें कई बार खुद के बारे में ही कई बातें पता नहीं होती हैं। अपने बारे में कई बातें हमसे भी छिपी रहती है। रोशनी की राह पकड़िए और उन चीज़ों को प्रकाश में आने दीजिए। यह दौर जहाँ तीव्र अनिश्चितता का दौर है, वहाँ हमारे आसपास कई लोगों का जमावड़ा दिख सकता है, जिनके हर काम के पीछे अज्ञात डर छिपा है।

डर या भ्रम के संजाल से खुद को निकालकर उजाले में अपने आपको देखिए। डर कई रूपों में आपसे मिलने आता है- कल क्या होगा इसका डर, हम बीमार पड़ सकते हैं यह डर, हमारी सुरक्षा छीन सकती है यह भय और तमाम तरह के अन्य डर हमारी सुरक्षा छीन सकते हैं। अपने डरों को सामने लाइए और उनसे अपना पीछा छुड़ा लीजिए। यदि हम डर में रहकर चुनौतियों और दिक्कतों का सामना करेंगे तो हम कभी अपना सर्वोत्तम नहीं दे पाएँगे। कायर लोग भीड़ का हिस्सा होते हैं, नेता वह होता है जो हिम्मत कर आगे बढ़कर दूसरों को राह दिखाता है।

अतीत के चेतन-अवचेतन मन से जुड़े डरों को निकाल फेंकिए। ये डर आपको नेतृत्व करने से रोकते हैं। यदि आपका दिमाग भ्रम के मकड़जाल में ही उलझा रहा तो आप सही-ग़लत का भेद कैसे कर पाएँगे? आपका दिमाग आपको डराता है और वही डर आपकी सच्चाई बन जाता है। महाकवि तुलसीदास तक अँधेरे में रस्सी को साँप समझ बैठे थे। उनकी पत्नी रत्ना ने उन्हें घुड़की दी और तब वे प्रकाश की राह पर राम नाम की थाह पा सके। आपके जीवन में यदि ऐसा कोई नहीं है तो खुद ही खुद को प्रकाश में लेकर आइए। हमारा दिमाग ऐसा भ्रम पैदा करता है जिससे हमें सच वैसा दिखता है जैसा हमारा मन-मस्तिष्क हमें दिखाना चाहता है। सच को अपने मन मुताबिक कर देने की ताकत मन में होती है, हमें मन की ताकत से ऊपर स्वयं को अधिरोपित करना है।

पिछले एक दशक से क्वांटम भौतिकी में इस चिरस्मरणीय घटनाक्रम को दिखाया जा रहा है कि यदि आप अपने में यह क्षमता विकसित कर लेते हैं तो आप अपने सत्य को बदल सकते हैं। समय बीत जाने से पहले इसे आज़माना शुरू कर दीजिए क्योंकि जो असल में दिख रहा है वैसा वास्तव में तो कुछ है ही नहीं। ‘जगत् मिथ्या’ को जानते हैं न? नए सिरे से समझने लगिए कि मन के जीते जीत है, मन के हारे हार, सारे खेल मन के हैं, कैसे तो

ऐसे –

A Melodious Lyrical Journey।Swaraangi Sane।मन।A Mind https://youtu.be/YQGN2Vy-92w