![माटी की गुड़िया](https://www.atarman.com/uploads/images/image_750x_60a50b3fc5c9f.jpg)
माटी की गुड़िया
‘जिज्जी, एक मिनट इसे गोदी में ले लेंगी क्या?’ यह कहते हुए उस महिला ने अपनी गोदी का बच्चा प्रिया को पकड़ा दिया। प्रिया एकदम अप्रत्याशित अपनी गोद में आए इस बच्चे को सँभालने में लग गई। उस महिला ने पैसे दिए और बच्चा फिर अपनी गोद में उठा लिया। इस तरह प्रिया और उस महिला की मुलाकात मेडिकल स्टोर में हुई। प्रिया के दवा खरीदने और कार्ड से पेमेंट करने तक वह रुकी रही। प्रिया और वो महिला साथ में दुकान से बाहर आए।
- मेरे नाम गुड़िया, आपका नाम क्या है?
- मेरा प्रिया।
- आपका नाम बहुत अच्छा है।
- थैंक्यू, वैसे तुम्हारा भी कुछ और नाम होगा न, गुड़िया तो घर में बोलते होंगे।
- यही नाम है। दादी गई थी स्कूल में नाम लिखवाने, उन्होंने गुड़िया लिखवा दिया तो गुड़िया ही पड़ गया।
- वाह, यह भी सही है।
- आइएगा कभी, मैं सामने की बिल्डिंग में ही रहती हूँ। रात बहुत हो गई थी इसलिए ओंकार को लेकर आई। उसने गोद में लिए बच्चे के बारे में बताते हुए कहा।
- प्रिया ने घड़ी देखी। रात के नौ बज रहे थे, क्या इतनी रात हो गई थी? इस विचार को परे रखते हुए उसने कहा - अरे वाह बेटे का नाम तो बहुत अच्छा रखा।
- हाँ मेरा नाम रखने की किसी को सुध नहीं थी इसलिए मैंने अपने दोनों बच्चों के नाम रखने में ज़रा ढील नहीं दी। इससे बड़ी बेटी है, पाँच साल की उसका नाम जागृति है।
- अच्छा, चलो फिर कभी मिलते हैं।
प्रिया अपने रास्ते और गुड़िया अपने रास्ते चल दी।
ब्लॉकेजेस
लगभग पंद्रह-बीस दिन बाद प्रिया घर लौट रही थी कि रास्ते में उसे गुड़िया दिख गई। उसकी गोदी में ओंकार भी था, वह कहीं से पैदल लौट रही थी। प्रिया ने अपनी दुपहिया रोकते हुए पूछा- कहाँ, घर जा रही हो, पीछे बैठ जाओ, मैं भी घर ही जा रही हूँ।
गुड़िया उसके साथ अपनी बिल्डिंग तक आ गई। उसने प्रिया से जिद की कि वो घर चले। प्रिया ना नहीं बोल पाई। गुड़िया ने लैच की चाबी से दरवाज़ा खोला, बाहर के कमरे में ही जागृति खिलौनों के ब्लॉक्स से कुछ बना रही थी, टीवी चल रहा था और सोफ़े पर उसका पति लेटा था। उन दोनों को आया देख, पति ने बमुश्किल उठने की कोशिश की। प्रिया को दिखा कि उसके पैर पर प्लास्टर चढ़ा था। प्रिया ने कहा, कोई बात नहीं, आप आराम कीजिए। गुड़िया ने कहा- जिज्जी अंदर आ जाइए।
प्रिया को पहली बार किसी के घर में अंदर तक जाना अजीब लग रहा था लेकिन बाहर के कमरे में बैठने की कोई गुंजाइश ही नहीं थी। प्रिया ने अंदर आते हुए कहा- सुनो न फिर कभी आती हूँ। अभी निकलती हूँ।
- चले जाइएगा, दो मिनट में चाय बन जाती है, चाय पीकर जाइएगा।
- अरे नहीं, नहीं, बेवजह परेशान मत हो।
- परेशानी कैसी, जागृति के पापा के लिए बनाने ही वाली थी। आप बैठिए न यहाँ।
कहते हुए गुड़िया ने वहाँ रखी कुर्सी की ओर इशारा किया। प्रिया बैठ गई। उसने देखा वहाँ कुछ गेहूँ बिखरे पड़े थे। प्रिया की नज़र गई, वैसे ही गुड़िया ने भी देखा और कह उठी- गेहूँ साफ कर रही थी न, ओंकार ने कुछ बिखेर दिए थे।
मर्द बच्चा
प्रिया को बात करने का बहाना मिल गया, उसने पूछा- पति के चोटिल हो जाने से हर जगह ओंकार को लेकर जाना पड़ता होगा न
- हाँ, नहीं तो बाहर के काम ये ही करते थे। अब कहीं जा-आ नहीं पा रहे न तो मुझे बाहर के काम करने भी जाना पड़ता है। इसे तो इसलिए ले जाती हूँ क्योंकि ये मर्द बच्चा है न।
जिस तरीके से गुड़िया ने मर्द बच्चा कहा, प्रिया को हँसी आ गई। गुड़िया ने कहा- नहीं जिज्जी, मैं मज़ाक नहीं कर रही। ये मुझे कहीं अकेले जाने नहीं देते। इनका कहना है कि औरत का अकेले बाहर जाना सेफ़ नहीं, कोई पुरुष साथ होना चाहिए। अब इनका तो ऐक्सीडेंट हो गया तो हमारे घर में यही पुरुष है, इसलिए इसे लेकर निकलती हूँ।
- पर यह इतना छोटा है, कुछ हो गया तो यह क्या कर सकेगा।
- रोएगा, चिल्लाएगा, कुछ तो करेगा।
- जागृति को लेकर जाओ, वह भी रो सकती है, चिल्ला सकती है, भाग सकती है।
- पर वह तो लड़की है न, उसके साथ कुछ भी हो सकता है।
- हे भगवान्!
- आपको कितने बच्चे हैं?
- एक बेटी है।
अब गुड़िया कह पड़ी- हे भगवान्!
कोई चारा नहीं
अगले कुछ महीने गुड़िया से कोई बात नहीं हुई। एक दिन उसने गुड़िया को दुपहिया पर लौटते देखा, वो अकेली थी। प्रिया को बहुत आश्चर्य हुआ। उसने प्रिया को देखा तो गाड़ी रोक दी।
- जिज्जी कैसी हैं आप?
- मैं तो अच्छी हूँ, तुम कैसी हो? आज मर्द बच्चा कहाँ है?
- मर्द बच्चा उसकी दीदी के साथ घर पर है क्योंकि घर पर वो अकेली थी।
- तो आज तुम अकेली निकल पड़ी।
- हमारी दुकान है। बहुत दिनों से दुकान पर काम करने वाले लड़कों के भरोसे ही चल रही थी, तो इन्होंने जाना शुरू किया लेकिन ये गाड़ी नहीं चला सकते न इसलिए इन्हें छोड़ने जाना पड़ता है, लौटते समय दुकान का एक लड़का उसकी गाड़ी पर छोड़ने आ जाता है।
- यह तो अच्छी बात है।
- हाँ अच्छी बात तो यह है कि वे नहीं चाहते थे कि मैं गाड़ी चलाऊँ, पर इसके अलावा चारा नहीं था। मेरे लिए तो अच्छी ही बात हो गई। आपके पास समय हो तो चलिए न घर पर, आज कोई नहीं है आराम से बातें करेंगे।
- अभी तो मुझे ऑफ़िस जाना है, छुट्टी वाले दिन आती हूँ।
- पर छुट्टी वाले दिन तो ये भी घर पर रहते हैं, आराम से बात नहीं हो पाएगी।
- चिंता मत करो, मेरी छुट्टी शनिवार-रविवार नहीं होती, मैं अख़बार में काम करती हूँ, हमारे यहाँ सबका साप्ताहिक अवकाश अलग-अलग दिन होता है। मेरी छुट्टी बुधवार को रहती है।
- अरे वाह, बुधवार तो कल ही है। कल आइए न कभी भी।
- ठीक है कल शाम की चाय तुम्हारे यहाँ पीते हैं।
- चलेगा, चार बजे आइएगा, मैं चाय तैयार रखूँगी।
प्रिया ने हामी भर दी।
नया गेटअप
प्रिया जब गुड़िया के यहाँ पहुँची तो उसका हॉल का दरवाज़ा खुला ही था। जागृति बाहर खेल रही थी। प्रिया ने बाहर से ही आवाज़ दी- गुड़ियाsss
- हाँ जिज्जी, अंदर आ जाइए।
प्रिया अंदर गई, रसोईघर में गेहूँ पड़े थे, तभी गुड़िया ने फिर कहा- इधर बेडरूम में। और उसने थोड़ी और ज़ोर से आवाज़ लगाकर कहा- जागृति बाहर का दरवाज़ा बंद कर दो।
प्रिया थोड़ी विस्मित सी बेडरूम में गई। गुड़िया एकदम नए गेटअप में थी, प्रिया दंग रह गई। गुड़िया ने शॉर्ट वन पीस पहना था, बाल खुले छोड़े थे। वह कमाल की सुंदर दिख रही थी।
प्रिया ने कहा- अरे वाह, तुम तो पहचान में भी नहीं आ रही।
सुलक्षणा
गुड़िया ने शरारती मुस्कान से कहा- ये घर पर नहीं होते तो मैं अपने सारे शौक पूरे कर लेती हूँ। इन्हें पसंद नहीं स्टाइलिश रहना, मुझे अच्छा लगता है, तो मैं खुद ही बन-ठन लेती हूँ। इनके आने का समय होता है तो फिर साड़ी या सलवार-कमीज़ में आ जाती हूँ।
- तुम भी कमाल करती हो।
- हाँ जिज्जी, अब क्या कोई अपने शौक ही मार ले। इन्हें जैसे पसंद है, वैसे रहती हूँ न, फिर मुझे जैसे पसंद है, वैसे क्यों न रहूँ।
- पहली बार तुम्हें देखकर बिल्कुल नहीं लगा था कि तुम्हारे भीतर कोई और भी बसता है।
- आपने गेहूँ देखे न, उस दिन भी देखे थे। इनके आने का समय होता है तो मैं गेहूँ बिनने बैठ जाती हूँ। इन्हें लगता है घर के काम करने वाली औरत ही सुलक्षणा होती है। इनका कहना है घर की लक्ष्मी के हाथ चलते रहने चाहिए, तभी घर में लक्ष्मी आती है। पर जिज्जी वे तो कंप्यूटर पर भी चल सकते हैं न, घर के काम ही क्यों करना?
- हाँ, तुम बिल्कुल सही कह रही हो। पर तुम अपनी बात पति के सामने क्यों नहीं रखती।
- आपने वो कहावत सुनी होगी न ‘भैंस के आगे कौन बीन बजाए’? इनके जाने के बाद पूरे दिन मेरा राज होता है। मैं अपनी मर्जी से जीती हूँ। अब तो गाड़ी भी चला लेती हूँ तो सब्जी वगैरह लेने जाने के बहाने एकाध चक्कर भी मार आती हूँ।
- और बच्चे?
- वे रहते हैं घर पर। मैं ज्यादा दूर थोड़ी जाती हूँ। ऐेसे ही थोड़ी खुली हवा में निकल जाती हूँ ताकि जब ये घर लौटे तो परदे के भीतर मेरा दम न घुटे।
- लेकिन तुम्हारे पति ने गाड़ी चलाने के लिए तैयार कैसे हो गए?
- उनके पास कोई चारा नहीं था, दुकान कितने दिन नहीं जाते? ज्यादा दिन किसी के भरोसे काम नहीं छोड़ सकते थे। उन्हें पता था शादी के पहले मैं गाड़ी चलाती थी, बस, मेरा भी काम हो गया। मुझे गाड़ी की चाबी मिल गई। ये पीछे बैठे रहते हैं न तो दस हिदायतें देते चलते हैं, मैं सुना-अनसुना कर देती हूँ। कौन अपनी मन की शांति इनके पीछे ख़राब करें।
- तुम तो बहुत पहुँची हुई निकली। कहकर प्रिया हँस दी।
नई जान
- गुड़िया ने कहा- जिज्जी, मैं तो उस घर से आई हूँ जहाँ मेरी माँ, बाबूजी की मर्जी के बगैर घर से बाहर एक कदम तक नहीं रखती, उनका कहना है घर की शांति बनी रहती है। मैं भी ऐसे ही करती हूँ, बस मैंने उसमें थोड़ा संशोधन कर लिया है, मैं इनकी मर्जी के बगैर कोई काम नहीं करती, लेकिन जब वे घर पर होते हैं, तभी। वे घर पर नहीं, तो घर और अपनी मर्जी की मालकिन मैं। इतना तो चलता है न।
प्रिया ने हँसते हुए कहा- हाँ हाँ क्यों नहीं, तुमने तो अपनी माटी की गुड़िया में जान डाल दी है।
दोनों इस बात पर ज़ोर से हँस पड़ी।
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