एक पॉज़ का बटन ले आइए

एक पॉज़ का बटन ले आइए

कई बार हमें लगता है हमारे साथ सही समय पर कुछ भी सही नहीं होता लेकिन तब हम यह नहीं सोच पाते कि सही समय तय करने वाले हम कौन होते हैं? इस पूरी दुनिया में यदि खुद का अस्तित्व तलाशने जाएँगे तो देखेंगे एक परमाणु के एक दशांश इतनी भी हमारी बिसात नहीं लेकिन हमें लगता है हम ही सर्वेसर्वा हैं। जब हमारा अस्तित्व इतना नगण्य है तो हम कैसे तय कर सकते हैं कि क्या सही है और क्या ग़लत!

लघुतम पुर्जा

एक परिचित ने एक किस्सा बताया था कि हिंदुस्तान के बाहर जब सारी दुनिया के लोग आपस में मिलते हैं तो चीन के लोग चीन की बात करते हैं, जापान के जापानी संस्कृति की, लेकिन भारत के लोग अपने देश की बात नहीं करते, वे अमेरिका और जर्मनी और चीन और जापान की बात करते हैं। उन परिचित से उनके विदेशी मित्र ने पूछ ही लिया कि आप भारतीय आपस में मिलते हैं तो काशी-बनारस की या होली-दीवाली की बात क्यों नहीं करते? भारतीयों की मानसिकता का विश्लेषण करना यहाँ हमारा विषय नहीं है।

विषय यह है कि जब आप अपने घर में होते हैं तो केवल परिवार के प्रति जिम्मेदार होते हैं, सोसाइटी में उस समुदाय के प्रति, मोहल्ले में अपने मोहल्ले की पहचान आपके व्यवहार से होती है, फिर शहर, प्रदेश और देश और फिर महाद्वीप का तौर-तरीका भी आपके होने से जाना जाता है तो आपकी जिम्मेदारी कितनी बढ़ जाती है और आपका अस्तित्व कितना छोटा हो जाता है। दुनिया में विचरते हुए आपका देश आपके साथ चलता है। तो बताइए आपके मन के हिसाब से होगा या पूरे देश के हिसाब से या पूरी दुनिया के हिसाब से, जिसका एक लघुतम पुर्जा भर आप हैं, तो दुनिया की मशीन किसी पुर्जे के हिसाब से चलेगी या मशीन के हिसाब से पुर्जे को चलना होगा?

अवश्य होगा

धीरज रखिए और ईश्वरीय समय पर विश्वास कीजिए। भरोसा रखिए कि आपके जीवन में ‘जब-जब, जो-जो होना है, तब-तब, सो-सो होकर रहेगा’ या ‘वही होई जो राम रचि राखा’। अमुक कालखंड या अमुक समय में ही अमुक काम हो जाना चाहिए इस भ्रम से बाहर निकलिए। अपने जीवन की चाबी प्रकृति के हाथों में सौंप दीजिए कि जब जो होना योग्य और उचित होगा, जो होने से सबका भला होगा, वो जब होना होगा, अवश्य हो जाएगा। चिंता छोड़ दीजिए।

मीठे फल

चीज़ों को देखने का तरीका बदलिए। यदि आप शीर्षासन कर दुनिया को देखेंगे तो दुनिया उल्टी दिखेगी, सीधे हो जाइए, दुनिया भी सीधी नज़र आने लगेगी। यदि किसी क्षण आपको समझ नहीं आता कि क्या करना चाहिए, तो उस समय पर शांत हो जाइए, ज़िंदगी में भी एक पॉज़ का बटन ले आइए और पॉज़ कर दीजिए। जो जैसा है, उसे यथावत् रहने दीजिए। समय के साथ सब ठीक हो जाएगा, इस लोकोक्ति को ध्यान में रखिए

कोई बीज मिट्टी में दबाकर रखने पर बार-बार मिट्टी पलटकर देखेंगे तो बीज कभी नहीं फलेगा, उसे अपने समय के हिसाब से पल्लवित होने, अंकुर में बदलने का अवसर दीजिए। अँधेरे में बीज की एकाकी तपस्या है, उस बीज को वह तपस्या करने दीजिए, तभी अंकुरित होने पर उसे रोशनी और धूप का जायका मीठा लगेगा और वह आगे चलकर मीठे फल देगा।

युद्ध विराम

इसका अर्थ है कि किसी काम को होने में थोड़ा वक्त लगता है, तो लगने दीजिए। यदि समय से पहले छेड़ दिया तो आपको कई दिक्कतों और रुकावटों का सामना करना पड़ सकता है और काम तो तभी होगा, जब उसे होना होगा। यहाँ अकर्मण्यता पर बल नहीं दिया जा रहा बल्कि अधीरता पर लगाम कसने के लिए कहा जा रहा है। बेचैनी छोड़ दीजिए। जीवन संग्राम है लेकिन कभी-कभी युद्ध में भी थोड़ी विश्रांति लेना ज़रूरी हो जाता है ताकि अपनी ऊर्जा को फिर जुटाया जा सके और फिर दुगुने साहस से लड़ा जा सके

यदि आपके शस्त्र काम नहीं कर रहे तो उन्हें चलाते रहकर वक्त और श्रम जाया करने के बजाय वह समय अपने औजारों को नुकीला बनाने में लगाइए। धार करने में जो समय लगता है, वह समय दीजिए। भले ही उस वक्त युद्ध विराम-सा मँजर लगे लेकिन भोथरे हथियारों को लेकर लड़ने से अच्छा है, थोड़ा समय अपने तीर-कमान की मरम्मत पर खर्च किया जाए। उसके बाद जब आपको वार करने का मौका मिलेगा, पूरी ताकत से खुद को झोंक दीजिएगा।

लंबी छलाँग

एक ही ढर्रे पर काम करते रहने की आदत पड़ गई हो तो इस आदत को भी बदलिए। कुछ समय प्रकृति के साथ बिताइए। कुछ समय अकेले में शांति से अपने साथ रहिए। प्राकृतिक ऊर्जा को प्राणवायु की तरह अपने में समाहित कीजिए। शांत होकर सोचिए क्या है जो आपको जीवन में पीछे खींच रहा है या कहीं ऐसा तो नहीं आप खुद ही अपने आपको पीछे खींच रहे हैं? सजग होकर विचार कीजिए। चीज़ों को देखने का अंदाज़ बदलिए, कभी-कभी ब्रेक लेना भी ज़रूरी होता है ताकि आप फिर ताज़ा होकर काम में जुट सकें

शेर भी जब एक कदम पीछे लेता है तो उसके माने होते हैं उसके बाद वह लंबी छलाँग लगाने वाला है, है न!