लार्जर दैन लाइफ

लार्जर दैन लाइफ

आनंद से भरा जीवन, हँसते हुए मौत

मार्च ठीक से शुरू भी नहीं हुआ था कि एक ख़बर ने सबको चौंका दिया। एक लड़की ने मरते समय अपना वीडियो बनाते हुए अपना नाम आयशा आरिफ़ ख़ान कहा था, जिसने कहा कि उसका जीवन आनंद से भरा रहा है और अब वह मरने जा रही है

लार्जर दैन लाइफ़

आनंद से भरा जीवन, हँसते हुए मौत...ऐसा तो फ़िल्मों में होता है। असली ज़िंदगी में ऐसा कब से होने लगा? हमने फ़िल्मों को हमेशा लार्जर दैन लाइफ़ माना, हमने माना कि सिनेमा में जो दिखाया जाता है, उसे असली ज़िंदगी में किया नहीं जा सकता। जो हम नहीं कर पाते उसे बड़े पर्दे के नायक या नायिका को करते देख खुश होते हैं। मूवी ख़त्म होने के बाद कहते हैं-क्या सॉलिड मूवी थी, क्या ग़ज़ब ऐंड था।

कूद जाओगे क्या?

तो क्या आयशा को ऐसा ग़ज़ब ऐंड चाहिए था? उसने बताया पति ने कहा मर जाओ और मरते हुए वीडियो बनाना तभी तसल्ली होगी, तो यह मर गई। स्कूल के दिनों में टीचर कहती थीं-दोस्त कुएँ में कूदने को कहेगा, तो कूद जाओगे क्या? और उस वक्त के दस-ग्यारह साल के बच्चे भी ‘ना’ में गर्दन हिलाते थे

आज की पीढ़ी अधिक ज़हीन, समझदार है। वे अपने जीवन के अच्छे-बुरे के बारे में जानती है। आयशा का यह वीडियो वायरल होकर कई युवाओं और बच्चों यानी कि युवतियों और बच्चियों तक भी पहुँचा होगा। क्या सीखेंगे वे इससे? लार्जर दैन लाइफ़ की बात...

जीवन मतलब जीना

लार्जन दैन लाइफ़ कुछ नहीं होता, लाइफ़ अपने आपमें लार्जर होता है, विराट होता है। जीवन मतलब किसी के कहने पर मर जाना नहीं होता, जीवन मतलब किसी के लिए जीना होता है। किसी के लिए मरना चाहते हैं तो फौज में जाइए, देश के लिए मरने का जज़्बा रखिए तब तो उसे उदात्त या लार्जर दैन लाइफ़ माना जा सकता है

यह क्या बात हुई कि मरते हुए कहा कि मुझे जीवन में अच्छे माता-पिता मिले, अच्छे दोस्त मिले और किसी ने कहा इसलिए मर गई। मरना तो बहुत आसान है। जीना ही मुश्किल होता है। ज़िंदगी रोज का संघर्ष है और हर कोई अपनी स्टोरी का खुद नायक या नायिका है। किसी के भी जीवन के पन्ने पलटकर देख लीजिए, कहाँ-कहाँ से जीवन चला गया दिख जाएगा।

अलग गाथा, अलग संघर्ष

एक परिचित बर्मा में जन्मे थे। फिर पश्चिम बंगाल में पूरा जीवन बीता, कोलकाता में बड़ा सा घर था लेकिन मृत्यु हुई तो मध्यप्रदेश के इंदौर के एक किराए के मकान में। बर्मा देश में जन्म लेते हुए उन्होंने सोचा भी नहीं होगा कि मरने के लिए कितनी दूर की यात्रा तय करना पड़ जाएगी। क्या उनके जीवन पर फ़िल्म बने तो वह लार्जर दैन लाइफ़ नहीं होगी? हर मोड़ पर एक अलग गाथा, अलग संघर्ष, अलग माटी, अलग लोग। हमने अपने आसपास के चेहरों को देखना छोड़ दिया है

विषय भटक सकता है लेकिन सोचकर देखिए जब राशन-पानी की लाइन में लगते थे तो कितने लोग, कितने चेहरों से मिलते थे और कितने दु:ख बातों-बातों में सुख में बदल जाया करते थे। अब सारा सामान ऑनलाइन, ऐट योर डोर स्टैप आ रहा है। आपको कहीं जाना नहीं है, स्क्रीन के ज़रिए जो ग्लैमरस चिकना जीवन दिख रहा है वही आपको सच लग रहा है। उस ग्लैमर लाइफ़ की इच्छा में ज़रा व्यवधान पड़ा तो लगता है इससे मरना आसान और मरते हुए भी वीडियो बनाकर मरना...कितना अजीब।

मातमपुर्सी

कुछ साल पहले तक लोग किसी के यहाँ मातमपुर्सी में जाते थे तो सेल्फ़ी निकाला करते थे। मरने वाले के साथ अंतिम चित्र, वह भी एक अलग तरह का पागलपन था लेकिन यह पागलपन का अगला चरण है। क्या सब लोग लूनेटिक होते जा रहे हैं? मतलब एक सनक सबके सिर पर सवार है, यह करना मतलब यह करना। उस सनक को अच्छे किसी कार्य में लगाकर देखिए न।

किसी के जीवन से गुम हो जाना मतलब मरना नहीं होता, दूरी बना लेना, उस रिश्ते को मार देने जैसा होता है। जो आपको नहीं चाहता, उसके जीवन से हट जाइए। बिल्कुल उसकी खुशी के लिए हट जाइए लेकिन उसकी खुशी के लिए मरकर आप अपने साथ आपसे जुड़े दूसरे कई लोगों का जीवन क्यों तबाह कर रहे हैं?