क्या हमारी वैचारिकता पर कतरन लग गई है?

क्या हमारी वैचारिकता पर कतरन लग गई है?

कुछ खबरों की कतरनें हैं, कपड़ों की कतरनों पर बात करने वालों को अब सोचना चाहिए कि हम कहाँ जा रहे हैं? क्या हमारी वैचारिकता पर कतरन लग गई है?

  • मेरठ में एक महिला ने अपने शौहर पर इल्ज़ाम लगाया कि उसका शौहर उसके साथ इसलिए मारपीट करता है क्योंकि वो जींस और छोटे कपड़े पहनने से इनकार करती है। न्यू इस्लामनगर के रहने वाले अमीरूद्दीन ने बेटी का निकाह आठ साल पहले हापुड़ के पिलखुवा के रहने वाले अनस के साथ किया था। अनस दिल्ली में नौकरी करता है। (23 दिसंबर 2020)
  • गुजरात के गिर सोमनाथ विधानसभा क्षेत्र से विधायक विमल चूड़ासमा चर्चा में रहे क्योंकि जींस और टीशर्ट पहनकर विधानसभा पहुँच गए। यह देख विधानसभा अध्यक्ष राजेंद्र त्रिवेदी ने चूड़ासमा को बाहर निकाल दिया। विधायक का कहना है कि जनता ने उन्हें जींस और टीशर्ट में ही पसंद किया है और चुनकर विधानसभा भेजा है। विमल चूड़ासमा ने कहा है कि अगर विधानसभा में ऐसे कपड़े पहनकर आने में कोई रोक हो तो इससे जुड़े कानून के बारे में बताएँ। (15 मार्च 2021)
  • पश्चिमी उत्तरप्रदेश के मुजफ्फरनगर की एक ग्राम पंचायत ने अजीबो-गरीब फ़रमान सुनाया है। ज़िले के पीपलशाह गाँव की पंचायत ने फ़रमान सुनाया कि उन लड़कियों का बहिष्कार किया जाएगा जो पैंट या स्कर्ट पहनती हैं। इसके अलावा शॉर्ट पैंट पहनने वाले लड़कों के बहिष्कार की भी बात कही गई है। (16 मार्च 2021)
  • उत्तराखंड के नए नवेले मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने महिलाओं के कपड़ों को लेकर कहा कि औरतों को फटी हुई जीन्स में देखकर हैरानी होती है। उनके मन में ये सवाल उठता है कि इससे समाज में क्या संदेश जाएगा। (17 मार्च 2021)
  • लखनऊ विश्वविद्यालय के तिलक छात्रावास के बाहर नोटिस चस्पा किया गया है, अंग्रेजी में चिपके नोटिस का हिंदी अर्थ है कि कोई लड़की अपने कमरे और ब्लॉक से बाहर शॉर्ट्स या घुटने के ऊपर के कपड़ों में नहीं निकले। यदि कोई छात्रा ऐसा करते पाई गई तो उस पर 100 रुपए का जुर्माना लगाया जाएगा। ( 17 मार्च 2021)
  • मुख्यमंत्री के बयान के बाद ट्विटर पर #RippedJeansTwitter ट्रेंड कर रहा है। ट्विटर पर टॉर्न जींस ट्रेंड होने के बाद लोगों के बीच मीम्स शेयर करने की होड़ लग गई है। कई लोग कंगना रनौत की रिप्ड जींस में तस्वीरें पोस्ट कर रहे हैं। (18 मार्च 2021)

और एक पुराना गीत याद आ गया- ‘उनको ये शिकायत है कि हम कुछ नहीं कहते’ और एक पुरानी कहावत भी ‘खाओ मन भाया, पहनो जग भाया’।

क्या बदला इतने सालों में, कुछ भी नहीं! क्या भारत भी उसी नई सदी का हिस्सा है जहाँ दुनिया जा रही है या हम अभी भी आदम देश के वासी हैं? मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने कहा कि ''मैं जयपुर में एक कार्यक्रम में था और जब मैं हवाई जहाज में बैठा, तो मेरे बगल में एक बहन जी बैठी थीं। मैंने जब उनकी तरफ़ देखा तो नीचे गमबूट थे। जब और ऊपर देखा तो घुटने फटे थे। हाथ देखे तो कई कड़े थे। उनके साथ में दो बच्चे भी थे। उन्होंने कहा कि मैंने पूछा तो महिला ने बताया कि वो एनजीओ चलाती हैं। मैंने कहा कि समाज के बीच में घुटने फटे दिखते हैं, बच्चे साथ में हैं, क्या संस्कार हैं ये?''

कोई मुख्यमंत्री स्तर का व्यक्ति यदि किसी के कपड़ों से उसके संस्कारों को नाप तौल रहा है तो सोचना होगा कि हम किस दिशा में जा रहे हैं? वह महिला दो बच्चों की माँ है और वह जानती है कि बच्चों को कैसे संस्कार देने हैं। किसी माँ को मत बताइए कि बच्चों को कैसे बड़ा किया जाता है। सलवार-कुर्ती पहनने वाली को बहनजी कहना भी उसी मानसिकता का दूसरा पक्ष है। आपने बिना किसी को जाने-समझे टिप्पणी कर दी। दिसंबर 2020 को मेरठ में तलाक तक बात इसलिए पहुँची क्योंकि उसे भी यही परेशानी थी कि उसे उसके हिसाब के कपड़े नहीं पहनने दिए जा रहे। हम लड़कियों-महिलाओं के कपड़े पहनने पर कब तक आँख ततरेते रहेंगे? और सवाल उससे भी बड़ा है कि कब हम कपड़ों से अलहदा किसी शख्स की शख्सियत को पहचानेंगे।

अभी तो हम बहुत पीछे हैं, हमने महिलाओं को व्यक्ति ही कहाँ माना है? महिलाओं को क्यों हम पुरुषों को भी उनके पहनने-ओढ़ने से जज करते हैं। मुजफ्फरनगर की ग्राम पंचायत ने लड़कों के लिए भी नियम बना दिए हैं और गिर सोमनाथ के विधायक के लिए भी यह नियम है। कोई क्या पहने यह उसकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता होनी चाहिए। किसी के काम पर बात कीजिए, उसकी सोच पर बात कीजिए, उसके आचार-विचार,व्यवहार पर बात कीजिए, वो क्या खाता है, क्या पीता है, कैसा दिखता है, क्या पहनता है यह तो बहुत बाहरी बातें हैं। उनमें कब तक उलझे रहेंगे?

यह उलझाव क्यों है? हमारी विचारधारा से। और विचारधारा किससे बनती है? यह उस प्रोग्रामिंग का हिस्सा होती है, जो आपको बचपन से अपने परिवेश से मिलती है,आपकी शिक्षा, स्कूल, पड़ोसी, रिश्तेदार, परिवार के लोग ये सब मिलकर तय करते हैं कि आप बड़े होकर कैसे बनेंगे? लेकिन वयस्क हो जाने के बाद भी आप अपने स्तर पर कुछ सोच नहीं पाए तो अपने वैचारिक धरातल को परखना होगा।