क्यों न हिप्पोक्रेसी को हटा दें

क्यों न हिप्पोक्रेसी को हटा दें

हिप्पोक्रेसी की जब भी बात होती है तो हमेशा छल, कपट, बनावट का संसार याद आता है और इसे हम राजनीति की दुनिया से जोड़ देते हैं लेकिन हिप्पोक्रेसी उससे भी बढ़कर रोज़मर्रा के जीवन का हिस्सा बनने लगी है। हर दूसरा व्यक्ति हर तीसरे के बारे में यही कहता है कि फलाँ व्यक्ति बहुत हिप्पोक्रेट है।

इससे यह भी साफ़ होता है कि हम एक-दूसरे को बहुत अच्छे तरीके से जानते हैं। यदि कोई सोचता है कि वह दुनिया को बेवकूफ़ बना सकता है तो उसे यह भी समझना चाहिए कि सारी दुनिया बेवकूफ़ नहीं बन सकती और लोग सच को जानते हैं।

झूठ,फरेब की गंध

एक हिप्पोक्रेट दूसरे हिप्पोक्रेट को पहचान लेता है। दोनों ओर से झूठी हँसी के साथ नाटकीय बातें होती हैं। दोनों को लगता है कि उसने दूसरे को अपने झाँसे में ले लिया। पर दोनों ओर से पूरी कोशिश झाँसे में लेने की होती है और यह भी ध्यान रखना चाहिए कि सच्चे लोग हिप्पोक्रेसी को तुरंत पहचान लेते हैं और दूर से ही भाँप लेते हैं कि कौन कितना बनावटी है

सच को सूँघ लेने वाले जानते हैं कि झूठ,फरेब की गंध कैसे आती है इसलिए सच्चे लोग झूठों से दूर ही रहते हैं। मतलब एक पूरी दुनिया सच्चाई का समर्थन करने वालों की है और दूसरी दुनिया झूठों की है। सच में जीने वालों को कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि झूठे लोग किस झूठी शान में जीते हैं या क्या दिखाना,शो-ऑफ़ करना चाहते हैं। दूसरी ओर झूठे लोग जानते ही नहीं कि सच में जीना कैसे होता है और झूठे लोग, झूठे लोगों के साथ, झूठी दुनिया में एक-दूसरे को नीचा दिखाने में ही जीते रहते हैं

झूठ का छलावा

साँच को आँच नहीं होती वैसे ही सच्चे लोगों को किसी बात का पछतावा नहीं होता। वे अपनी ग़लतियों को मानने की हिम्मत रखते हैं। वे झूठ के छलावे में अपनी ग़लती न मानने की मूर्खता नहीं करते।

पेरेंटिंग में कई बार बच्चों के सामने झूठ बोला जाता है और तब बच्चों को अपने माता-पिता हिप्पोक्रेट लगते हैं, उन्हें अपने शिक्षक भी झूठे लगते हैं और धीरे-धीरे उन्हें सारी दुनिया झूठी लगने लगती है। वे बड़े होने के साथ झूठ को ही जीना मानने लगते हैं।

ऐसे में माता-पिता का परम कर्तव्य है कि बच्चों के सामने सच रखा जाए ताकि बच्चे भी सच में जीना और सच को समझना, सच को सहन करना सीख पाएँ। झूठ में जीना आसान होता है लेकिन झूठ में जीना सही नहीं होता

साइड इफैक्ट्स

मन से जितने सरल होंगे और जितनी पारदर्शिता रखेंगे उतना जीना आसान हो जाएगा। झूठ का बोझ धीरे-धीरे मन पर चढ़ता जाता है जो शरीर की कई बीमारियों के रूप में सामने आता है। हृदय से जुड़ी बीमारियाँ, उच्च रक्तचाप, मानसिक क्लेश, याद्दाश्त कमज़ोर होना, तंत्रिका तंत्र संबंधी बीमारियाँ आदि कई इसी हिप्पोक्रेसी के साइड इफैक्ट्स हैं

यदि मन साफ़ होगा तो मन पर, हृदय और बुद्धि पर कोई तनाव नहीं होगा। उलझनों से भरी दुनिया में इतनी उलझनें क्यों हैं? तो समझना होगा कि उसमें कहीं न कहीं हम भी योगदान कर रहे हैं। सरल बन जाएँ। यदि हर व्यक्ति सरल हो जाएगा तो सारी दुनिया में इतनी उलझनें, इतने तनाव और इतनी जद्दोजहद नहीं होगी

खतरे का लक्षण

हिप्पोक्रेसी के सबसे बड़े खतरे का लक्षण इस वैश्विक विपदा में देखने को मिल गया जब लगने लगा कि मानव ही लुप्तप्राय प्रजाति में शुमार हो जाएगा। ऐसा क्यों हुआ? सबने स्वीकारा कि कहीं न कहीं धरती ने खुद अपने हाथ में कमान ले ली। झूठी शान में जीने वाले इंसान ने पृथ्वी का जितना दोहन किया था उसके बाद धरती को अपनी मिट्टी, जल, वायु और वन तथा वन्य जीवन को सुरक्षित रखने के लिए यह कदम उठाना पड़ा।

यदि इसके बाद भी हमने सबक नहीं लिया तो हमसे बड़ा मूर्ख कोई नहीं होगा। यह समय है कि अब हम अपना जीवन सरल बना लें। भीतर-बाहर के भेद को हटा दें। जैसे हम हैं, वैसे ही प्रस्तुत हों बिना किसी कॉस्मेटिक रूप-रंग के। लोग ऑर्गेनिक की ओर लौट रहे हैं लेकिन उसे केवल सौंदर्य प्रसाधनों, फलों, सब्जियों, खाद्यान्नों, तेल-तिलहन तक सीमित न रखते हुए अपने जीवन में भी उतार लें। सच में जीना सीखें। सच को जीना सीख लें।