क्षमता भी और क्षमा भी

क्षमता भी और क्षमा भी

क्षितिज तक जिसकी व्याप्ति क्षय नहीं होती, क्षीण नहीं होती और जिसके पास नीर-क्षीर का विवेक है, ऐसी क्षत्रियता का साहस लिए है क्ष। तत्सम क्षीर का ही तद्भव खीर हो गया और क्षणदा मुँह में पानी दे गया।

यह देवनागरी लिपि का छियालीसवाँ अक्षर है। अक्षर शब्द के मध्य में जो यह क्षणभर का क्ष आता है वह अक्षत है, कहीं से भी क्षणभंगुर नहीं है। क्षत-विक्षत हो जाने पर क्षतिपूर्ति देने की क्षमता भी इसके पास है और क्षमा का भाव भी।

क्षिप्रा की बहती धारा से इस क्ष को कुछ लोग शब्दकोश में अंत में ढूँढने पर क्षोभ करते हैं। उनका कहना है कि क्ष,त्र ज्ञ को ह के बाद नहीं ढूँढना चाहिए बल्कि क्ष् क् और ष का संयुक्त रूप होने से इसे क से शुरू होने वाले शब्दों के समाप्त होने पर ही देखना चाहिए

इसी तरह त्र, त् और र का संयुक्त रूप है इसलिए त के बाद इसे ढूँढें और ज्ञ ज् और ञ का संयुक्त होने से ज के बाद ढूँढें। वैसे तो क्ष का क्षेत्रफल भले ही कम हो लेकिन बोलते हुए जिनकी जीभ अटकती है उन्हें इससे शुरू होने वाले शब्दों को रोज़ाना बोलना चाहिए, कहते हैं उससे लाभ होता है।

क्षणिक आगे…