गैट अप एंड गो, बढ़े चलो…

गैट अप एंड गो, बढ़े चलो…

‘काम-काम, काम-काम, मम्मी को कितना काम’…तकरीबन दस साल पहले यह विज्ञापन चलता था, तबसे आज तक परिस्थितियाँ ज़रा भी नहीं बदली हैं। तब भी माताएँ कामों में उलझी हुई थीं और आज भी हैं। घर का काम और ऑफ़िस का काम करते हुए किसी तीसरी बात के लिए समय भी नहीं मिल पाता। तब ऑफ़िस के सहकर्मी ही सहेलियाँ-दोस्त हो जाते हैं और उन्हीं से ज़िंदगी के किस्से बाँट लिए जाते हैं।

‘वर्क फ्रॉम होम’ की अपनी दिक्कतें थीं और लाभ भी। अब धीरे-धीरे ऑफ़िस खुलने लगे हैं। जिंदगी पटरी पर तो आने लगी है लेकिन माताओं की भागदौड़ जैसे और ज़्यादा बढ़ गई है। ऑफ़िस जाना मतलब ‘अप-टु-डेट’ बने रहना और साथ में घर को भी चकाचक रखना, ‘अप-टु-द मार्क’ रखना, कभी किसी हैल्पिंग हैंड की तलाश में जुटना या फिर सब अकेले के बूते पर ही करना, ये सारा दिमाग भी अकेली महिला को खपाना पड़ता है।

आत्मविश्वास और हिम्मत

कम से कम भारत में तो यही हालात हैं। हालात कुछ-कुछ बदल रहे हैं, लेकिन ये बदलाव भूसे के ढेर में सुई मिलने जितने कम हैं। तब भी हम मानकर चलते हैं कि एक आदर्श स्थिति है, जिसमें पति-पत्नी दोनों मिलकर घर-परिवार का काम कर रहे हैं, जैसे, ‘चल सब्जी मैं बनाता हूँ, तुम रोटी बनाओ’, या ‘वॉशिंग मशीन में कपड़े मैं लगा देती हूँ, तुम बच्चों को नाश्ता कराओ’। यदि कहीं यह आदर्श स्थिति भी है तो वहाँ भी दोनों को अपने जीवन में क्लैरिटी रखनी होगी।

यह स्पष्टता विचारों को लेकर होनी चाहिए कि आप जीवन से क्या चाहते हैं? आपको जीवन में जो चाहिए उसे हाईलाइट कीजिए, मसलन दो सालों का यह लक्ष्य है और दस सालों का यह, जिसे अल्पावधि और दीर्घावधि योजना कहते हैं। भविष्य की योजना बनाने के लिए आत्मविश्वास और हिम्मत रखिए। यदि ये दोनों बातें आपके पास हैं, तो आप स्त्री हैं या पुरुष, अपने काम और जीवन में संतुलन बना सकते हैं।

बढ़े चलो

यदि फिर महिलाओं की बात करें और उन्होंने काम पर जाने का चयन किया है तो केवल ‘गैट अप ऐंड गो’ नहीं होना है बल्कि मन को भी ‘बढ़े चलो’ के लिए तैयार रखना है। एकदम पहले ही दिन आप कोई बड़ा निर्णय नहीं ले सकते। पहला बड़ा निर्णय तो आपने अपने काम को चुनकर ले लिया है।

अब दूसरे बड़े निर्णयों के लिए योजना बनाने का समय है। उन निर्णयों तक आप बहुत जल्दी पहुँच सकते हैं यदि आपकी योजना सही तरीके से बन गई हो। कल सुबह नाश्ते में क्या बनेगा, इसकी योजना जैसे एक रात पहले हो जाती है, नाश्ते के साथ लंच की और लंच के बाद ही रात के खाने का मेनु दिमाग में आ जाता है, ये कुछ-कुछ वैसा ही है। पहले आपको रणनीति बनानी होगी।

एक्साइटमेंट

आपको काम करने का उत्साह कहाँ से आएगा? तो उसके लिए आपको ऊर्जावान् बने रहना होगा। आप जो भी काम करें उसे पूरे जुनून और जज़्बे के साथ करें। आज जिस उमंग से काम शुरू किया, कल भी उसी उमंग से करें और परसों भी उस उमंग को बरकरार रखें। हो सकता है कभी-कभी आपको लगेगा सब कुछ एक ढर्रे पर चल रहा है और जीवन रुक गया है।

ठीक तभी आपको अपने साथियों मतलब ‘उत्साह’, ‘जज़्बा’ और ‘जुनून’ को बुला लेना है कि ‘भई आओ, बड़ी उकताहट हो रही है’। यदि आप सोचेंगे बोर हो रहे हैं, तो लगातार आप बोर होते जाएँगे, फिर आपका न घर पर न ऑफ़िस में, कहीं मन नहीं लगेगा।

दूसरी तरह से सोचिए। सोचिए कि आज आप अपने काम में क्या एक्साइटमेंट लाने वाले हैं, नाश्ते में कुछ नया बना लीजिए। किसी अलग तरीके से तैयार होकर ऑफ़िस जाइए, काम को अलग तरीके से करके देखिए। खुद को और दूसरों को सरप्राइज़ देते रहिए। भला बताइए सरप्राइज़ेस किसे नहीं पसंद? खुद को सरप्राइज़ कीजिए, दूसरों को सरप्राइज़ कीजिए, देखिए आप अपने आपको ही कल से कुछ और अधिक ऐक्स्टेंड कर लेंगे, कुछ अधिक काम, कुछ अधिक बेहतर तरीके से कर लेंगे।

दिमाग की सुनिए

अपने सामने कुछ विकल्प हमेशा खुले रखिए। जीवन की इस नई जैस्ट को अपनी रणनीति से आकार दीजिए। अपनी खुद की व्यावहारिक सोच पर अधिक भरोसा कीजिए। जो आप देख रहे हैं, छू रहे हैं, महसूस कर रहे हैं, सुन रहे हैं और योजना बना रहे हैं उसे अधिक व्यावहारिक होकर कीजिए, देखिए, महसूस कीजिए, सुनिए।

काम करते समय दिमाग का इस्तेमाल कीजिए, दिल को एक तरफ़ रखिए। ‘काम करने का मूड नहीं हो रहा’, यह बहाना है आपके अपने मन का, आपको काम से दूर रखने का। मन की नहीं, काम करते समय दिमाग की सुनिए।

भावनाएँ

जब व्यावाहारिक होना होता है तो अपनी भावनाओं को काबू में रखना सीखिए। इसका यह मतलब नहीं कि आप अपनी भावनाओं को पूरी तरह अनदेखा कर दें। आखिरकार पैशन, इमोशन, जज़्बा, जुनून, उत्साह, उमंग आदि सब भी भावनाएँ ही हैं।

ध्यान दीजिए भावनाएँ आपकी ऊर्जा को चलायमान रखने वाली होनी चाहिए। आपको ठंडे बस्ते में बंद कर देने वाली नहीं। आप क्या सार्थक कर रहे हैं, उस पर केंद्रित रहिए। अपने प्लैनर को थोड़ा टटोलिए, उसे अधिक वास्तविक बनाइए। आप अपना अगला बड़ा कदम किस तरह उठा सकते हैं, उसके प्रति वास्तविक बने रहिए। वास्तविक रहेंगे तो बड़े लक्ष्य भी आसानी से पा लेंगे, वे ऑफ़िस से जुड़े टारगेट्स हों, डैड लाइंस हों या घर से जुड़े लक्ष्य और काम।