‘मत चूको चौहान!’

‘मत चूको चौहान!’

क्या आपने कभी संकल्प शक्ति को महसूस किया है? आप कहेंगे क्या बहकी-बहकी-सी बातें कर रही हूँ। सेलिब्रेटी फ़िटनेस ऐक्सपर्ट ऋजुता दिवेकर का कहना है ‘हमारी दादी या नानी जो बातें हमें स्थानीय भाषा में समझाती हैं, वे हमें वैज्ञानिक नहीं लगतीं।’ यह भी उसी तरह की बात है, हम उसे संकल्प या प्रण कह लें तो हमें वह अतार्किक लगने लगता है लेकिन पारस पत्थर को आप किसी भी भाषा में कुछ भी कहिए क्या उसकी तासीर बदल जाएगी? जैसे महान् लेखक शेक्सपियर कहते हैं कि ‘नाम में क्या रखा है, गुलाब को गुलाब न कह, कुछ और कह लीजिए।’

छोटा-सा कदम

तो एक छोटा-सा कदम बढ़ाकर देखिए। कहिए कि ‘मैं जानता/ती हूँ कि मुझमें पारस पत्थर-सी ताकत है और मैं लोहे को भी सोने में बदल सकता/ती हूँ। मैं अपना जीवन उस तरह ढालने का सामर्थ्य रखता/ती हूँ, जैसा मैं चाहता/ती हूँ।’ आप कहेंगे कि ऐसा कहने भर से क्या होगा, होना तो वही है, जो किस्मत में लिखा हो। किस्मत में जो लिखा है, उसे होने से कोई नहीं टाल सकता लेकिन पुरुषार्थ जैसा शब्द आपने कभी सुना होगा, कि हम अपनी किस्मत को फिर लिख सकते हैं। आपको केवल उन छोटी-छोटी बातों की ओर ध्यान देना है, जो आपको कोई ख़ास संकेत या इशारा दे रही होती हैं।

आपने भी वो कहानी सुनी होगी कि एक व्यक्ति गहरे बवंडर में डूब रहा था और उसे विश्वास था कि उसका ईश्वर उसे बचाने आएगा। पहले एक गोताखोर आया, फिर नाविक, फिर बड़ा जहाज और उसके बाद हवाई जहाज भी लेकिन उसने कहा कि ईश्वर ही बचाएगा और वह डूब गया। जब वह ईश्वर के द्वार पर पहुँचा और शिकायत करने लगा कि मैं डूब रहा था और आप मुझे बचाने नहीं आए, तो ईश्वर ने कहा ‘मैं ही तो नाना रूपों में तुझे बचाने आया था, तूने ध्यान ही नहीं दिया।

संकल्प सिद्धि

देखिए कई बार हम भी ऐसी ही ग़लतियाँ कर रहे होते हैं। हमें प्रेरित होकर जिन बातों की ओर ध्यान देना चाहिए और जो कार्य करने चाहिए, वे हम नहीं करते। पहले संकल्प लेने और संकल्प सिद्धि पर इसीलिए ज़ोर दिया जाता था कि आप हर कार्य को उद्देश्य या लक्ष्य निर्धारित करके करें और तब तक न रूकें, जब तक कि उसे पूरा न कर लें। यदि आप संकल्प लिए बिना काम करते हैं तो आपका रवैया चल जाएगा, वाला कैजुअल हो जाता है लेकिन यदि संकल्प लिया तो आप दृढ़ निश्चय से काम पूरा करने में जुट जाते हैं। अपने सपनों पर विश्वास रखिए और उन्हें पूरा करने की जुगत करते रहिए।

सदा-सर्वदा कहिए

आप किसी और से जीवन के लक्ष्यों के बारे में पूछने क्यों जाते हैं? अपने आप से पूछिए न कि आप क्या करना चाहते हैं और उसे कैसे करेंगे! दरअसल आप किसी और से, चाहे वह आपका भाई-मित्र या माता-पिता, सहेली या पंडित, ज्योतिषी कोई भी हो, आप यह सुनना चाहते हैं कि आपका भविष्य अच्छा होगा या आप कुछ कर सकते हैं। तो यह किसी दूसरे से क्यों सुनना चाहते हैं? अपने आप से कहिए, सदा-सर्वदा कहिए, ज़ोर-ज़ोर से कहिए कि- ‘हाँ मैं यह कर सकता/सकती हूँ। मैं यह कर पाने में समर्थ हूँ।’ आपमें जादूगर बन जाने की ताकत है। आप अपने लिए नई शुरुआत कर सकते हैं, नए अवसर तलाश सकते हैं।

जादूगर

जादूगर क्या करता है? वो भौतिक जगत् और पदार्थ के बीच जादू रचता है इसके लिए कई बार वह सम्मोहन शक्ति का प्रयोग करता है। वह अपने श्रोता-दर्शकों को सम्मोहित कर यह सोचने पर मजबूर कर देता है कि वह जो दिखा रहा है वह सच है, मतलब आड़ा इंसान हवा में झूलता हुआ दिख सकता है और तीन-चार गेंदों से वो जगलिंग कर हैरान करता है। एक ओर सम्मोहन है, दूसरी ओर उसकी ग़ज़ब की एकाग्रचित्त वृत्ति की वह जगलिंग करते हुए एक भी गेंद को नीचे गिरने नहीं देता।

क्या आप इतनी एकाग्रता से कोई काम कर पाते हैं? क्या आप अपने लिए सम्मोहन का ऐसा विश्व रच सकते हैं? जादू भी क्या है? कई वैज्ञानिक प्रयोगों ने सिद्ध कर दिया है कि जादू या तो हाथ की सफ़ाई होता है या शुद्ध विज्ञान। बावजूद आप विश्वास करते हैं कि जो दिखाया जा रहा है, वही सत्य है। तो यह सत्य खुद के बारे में सोचकर देखिए। जादू होना मतलब किसी पदार्थ का एक अवस्था से दूसरी अवस्था में जाना, जैसे बर्फ़ का पानी होना या पानी का भाप बन उड़ जाना। अपने बारे में यह बदलाव इस तरह लाइए कि अपने लक्ष्य को वास्तविकता में ढाल दीजिए, गीतकार शैलेंद्र की पंक्तियों को दोहराते रहिए कि ‘अगर कहीं स्वर्ग है तो उतार ला ज़मीन पर!’

अविश्वसनीय सामर्थ्य

तो उन संसाधनों को खोजिए जिनसे आपके लक्ष्य पूरे होंगे। अपनी आत्मिक ताकत को जगाइए, उससे प्रेरित होकर कार्य कीजिए ताकि अपने लक्ष्य को पा सकें। विश्वास कीजिए कि आपमें अविश्वसनीय सामर्थ्य है। बस आपको उस दिशा में काम करने की ज़रूरत है। यदि आप कोई बीड़ा उठाने को तैयार हैं तो आपको उसका पुरस्कार भी अवश्य मिलेगा। अपने सपनों को अपनी आँखों के सामने पुष्पित-पल्लवित होने दीजिए। पृथ्वीराज चौहान के राजकवि चंद्र बरदाई की पंक्तियों को याद कर लीजिए कि ‘चार बाँस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण, ता ऊपर सुल्तान है, मत चूको चौहान।’ याद रखिए इतना ही और अमल में ले आइए कि ‘मत चूको चौहान!’