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इसी समय से तैयार हो जाइए जीने के लिए
कोई काम आप रुचि से शुरू करते हैं तो रुचि ख़त्म होते ही आपका मन उस काम से उचट जाता है लेकिन किसी काम को लेकर आप प्रतिबद्ध हैं, ‘कमिटेड’ हैं, तो वहाँ आपकी रुचि-अरुचि का सवाल ही नहीं रहता। यही वजह है कि बहुत सारे लोग शौकिया तौर पर बहुत कुछ करते हैं लेकिन वास्तव में वे कुछ नहीं कर रहे होते हैं।
एक पायदान ऊपर
किसी काम के प्रति निष्ठा रखना मतलब अपने आपको एक पायदान ऊपर चढ़ाना है। अपने आपसे अधिक कठिन की उम्मीद करना और खुद से अधिक बेहतर कार्य करवाना है। यह ‘प्राण जाय, पर वचन न जाय’, जैसा है। भले ही कुछ भी हो जाए, भले ही सर्दी-गर्मी, बारिश-बुखार कुछ भी हो यदि आपने कोई बात ठान ली कि करना है तो उसे करके रहना ही, आपकी निष्ठा है।
आपका शौक, आपकी ‘हॉबी’ थोड़े दिनों की हो सकती है। जैसे आपको बागवानी का शौक हो तो वह आपके मूड पर निर्भर करेगा, आपकी मर्जी होगी तो आप बागवानी करेंगे, नहीं होगी तो नहीं करेंगे। लेकिन जिस क्षण आपको लगेगा कि आप धरती माता की सेवा कर रहे हैं, जैसे ही आप अपने कार्य की श्रेणी को उच्च दर्जा दे देते हैं, छोटे कार्य के महती प्रयोजन को समझ जाते हैं आपका उस काम को करने का नज़रिया भी बदल जाता है।
ज़िम्मेदारी का अहसास
यदि यह पूरी दुनिया एक बड़ा यंत्र है और उसके हम सभी छोटे-छोटे कलपुर्जे, तब भी हर छोटे कलपुर्जे का महत्व होता है। एक भी कलपुर्जा ख़राब होने से पूरी मशीन ख़राब हो सकती है जैसे ‘एक गंदी मछली पूरे तालाब को गंदा कर देती है’, तो क्या हम इतना भी नहीं समझते?
जिस पल यह बात समझ आ जाए उस क्षण से अपने हर कार्य को पूरी ज़िम्मेदारी से करने लेंगे, हर काम की ज़िम्मेदारी स्वीकारेंगे। स्वीकारेंगे कि आपके साथ, आपके आस-पास, घर-परिवार, देश-दुनिया में जो भी हो रहा है, उसके लिए कहीं न कहीं आप भी ज़िम्मेदार हैं या कि आप ही जिम्मेदार हैं। यह ज़िम्मेदारी का अहसास आते ही जीने का आपका पूरा दृष्टिकोण ही बदल जाएगा।
जीने का महत्व
कई लोग समझ नहीं पाते कि वे जी क्यों रहे हैं? वे जीवन को इतने ‘टाइमपास’ तरीके से गुज़ारते हैं गोया मौत नहीं आ रही, इसलिए जी रहे हैं। लेकिन इन दिनों जब लगातार मौत की ख़बरें दस्तक दे रही हैं, तो लोगों को जीने का महत्व समझ आ रहा है, लोगों को उनके अपने जीने का महत्व समझ आ रहा है।
एक दिन में यदि चलाचली की बेला आ गई तो क्या आप तैयार हैं, इस दुनिया से जाने के लिए? क्या आपने अपने हिस्से के सारे काम कर लिए हैं? क्या आप अपने हिस्से का पूरा जी लिए हैं? क्या आपने जिंदगी का वैसा स्वाद लिया है, जैसा आप लेना चाहते थे? यदि नहीं, तो अभी इसी समय से तैयार हो जाइए जीने के लिए। तैयार हो जाइए पूरे विश्वास से अपने जीवन को बेहतर बनाने के लिए। तैयार हो जाइए हर काम को पूरी निष्ठा और लगन से करने के लिए।
शुक्रगुज़ार हो जाइए
यदि आपका ईश्वरीय ताकत में विश्वास है, तब भी और नहीं है तब भी, सत्य यह है कि जो जीवन आपको मिला है, वो फिर नहीं मिलेगा। आपको इसी जीवन में ‘द बेस्ट’ देना है, ‘द बेस्ट’ जीना है, यदि कर सकते हैं तो अभी इसी पल से बेवजह जीने की आदत को सुधार लीजिए। आपके पास जो है उसके प्रति शुक्रिया अदा कीजिए क्योंकि बहुतों के पास वह भी नहीं है, जो आपके पास है। सूची बनाएँगे तो देखेंगे कि आपके पास ऐसा बहुत कुछ है जिस पर आप गर्व कर सकते हैं, जिसके प्रति आप शुक्रगुज़ार हो सकते हैं।
तो देर किस बात की है? किस बात की प्रतीक्षा कर रहे हैं? उन्हें धन्यवाद दीजिए, जिन्हें धन्यवाद देना रह गया है, उन्हें प्यार दीजिए, जिन्हें प्यार देना रह गया है, उनके प्रति सहृदय हो जाइए, जिनके प्रति पहले कभी सदाशयता नहीं दिखाई है। आज, अभी, इस समय जो आपके पास है, वह है, कल हो सकता है आपके पास इनमें से कुछ भी नहीं रहे और उस पर मलाल करने का समय भी आपके पास न रहे। पूरी शिद्दत से जीकर देख लीजिए क्योंकि आप भी जानते हैं- ‘ये जिंदगी न मिलेगी दुबारा!’
राकेश खंडेलवाल
ज़िंदगी के मूल्य को समझना और उसे सहजता से दूसरों के साथ प्रेरणापूर्ण ढंग से साझा करने में आपकी लेखनी ने सुचारु कार्य किया है. आपकी कलम को सादर नमन
swaraangi.sane
राकेश जी, यह आपकी सदाशयता है, नतमस्तक हूं।
नीरज
अद्भुत ढंग से आसान शब्दों में आपने जीवन का मर्म समझा दिया है..आपकी लेखनी को नमन
swaraangi.sane
नीरज जी आपकी ह्रदय से आभारी हूं, लिखते - लिखते ही लिखा जा सकेगा
Akshat Joshi
Amazingly insightful and positivity filled post ! Always great to read your thoughts Swaraangi !
swaraangi.sane
अक्षत जी, आपके हमेशा उत्साह वर्धन करते रहने से लिखने का बल मिलता है। बहुत-बहुत धन्यवाद
भुवेन्द्र त्यागी
यह सब बहुत जरूरी है आज के माहौल में। शिद्दत से जीना ही असली जीना है। बहुत सुंदर आलेख।
swaraangi.sane
धन्यवाद त्यागी जी, जैसा थोड़ा-बहुत जी पाई, वैसा थोड़ा-बहुत लिख पाई, पुनश्च धन्यवाद