कोई नहीं चाहता अब दस मिनट में होम डिलीवरी

कोई नहीं चाहता अब दस मिनट में होम डिलीवरी

भारतीय बाज़ार में अब आठ-दस मिनट में होम डिलीवरी का कॉन्सेप्ट उतना मायने नहीं रख रहा है बल्कि उसकी गुणवत्ता पर ज़ोर दिया जा रहा है

ऑनलाइन किराना दुकानदारों ने उस फैड को उतार फेंका है जिसमें ऑनलाइन डिलीवरी बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती थी। उपभोक्ताओं को भी इसमें अधिक रुचि नहीं है कि उनका सामान कितनी जल्दी उन तक पहुँचता है, वे उसकी गुणवत्ता को प्राथमिकता दे रहे हैं।

पैन-इंडिया के सर्वे ने इस बात की पुष्टि की है। पैन इंडिया PAN-presence across nation का मतलब है भारतवर्ष में मौजूद होना। भारत के सबसे तेज़ी से उभरते ऑनलाइन किराना प्लेटफ़ॉर्म के कई बड़े नाम ग्राहक के दरवाज़े तक किराना और रोज़मर्रा की ज़रूरी चीज़ों को तत्काल पहुँचाने पर ध्यान केंद्रित करते हैं। दस मिनट से भी कम समय में डिलीवरी का मॉडल लोकप्रिय होता दिखता है लेकिन वास्तव में वैसा नहीं है।

कई कंपनियों ने भी कहना शुरू किया है कि आपके ऑर्डर देने के बाद वह आप तक 24 से 72 घंटों या चार से दस दिनों में पहुँचेगा और लोगों का इस पर ऐतराज भी नहीं है। आपने भी महसूस किया होगा कि बड़ी ऑनलाइन कंपनियों ने अपने मिनटों के दावों को सोशल मीडिया पर प्रसारित करना लगभग बंद कर दिया है।

मैदानी हकीकत भी यह है कि दस मिनट में सामान पहुँचने का कितना भी दावा किया जाए, सामान पहुँचने में कम से कम आधे घंटे का समय लगता ही है। उपभोक्ता भी जानने लगा है कि यह केवल लुभावने विज्ञापन का मायाजाल है। एक बड़ी कंपनी ने ‘किराना 15 से 30 मिनट में’ कहने के बजाय केवल ‘किराना मिनटों में’ कहना शुरू कर दिया है, जो 45 मिनट भी हो सकते हैं और 60 मिनट भी।

डिलीवरी पहुँचाने वाले लोगों की कमी भी इसका एक कारण है, जो प्रतीक्षा के समय को बढ़ाता है। इस बीच कुछ ऑन लाइन स्टोर अस्थायी तौर पर बंद भी हो चुके हैं, इसका असर भी उनकी शीघ्र कार्य प्रणाली पर पड़ा है।

पश्चिम बंगाल की सांसद महुआ मित्रा ने भी दस मिनट में डिलीवरी के मॉडल पर आक्षेप जताया है कि कोई भी सभ्य समाज दस मिनट में डिलीवरी का दावा करते हुए ट्रैफ़िक के नियमों को धता बताकर अपनी और दूसरों की जान जोखिम में डालता हो तो उसे प्रशंसनीय नहीं कहा जा सकता।

तेज़ी से सामान पहुँचाना कई बार कंपनी के लिए उतना लाभदायी भी नहीं होता इसलिए भी वे एक घंटे की समयावधि लेकर चलते हैं ताकि एक इलाके के उस समयावधि में प्राप्त अधिकतम ऑर्डरों को इकट्ठा पहुँचाया जा सके, जिससे लागत कम लगे और मुनाफ़ा अधिक हो जाए।

दस मिनट के आदर्श डिलीवरी मॉडल का अर्थ है दो मिनट का समय उसे पैक करने में और सात से आठ मिनट का समय पहुँचाने में। पर यदि कोई कंपनी अगले 20 मिनट तक रुक पाती है तो वह पहले ऑर्डर के साथ दूसरे को जोड़कर अधिक मुनाफ़ा कमा लेती है। कंपनी को ड्राइवरों को प्रति किलोमीटर के हिसाब से भुगतान करना पड़ता है यदि उस दायरे में दो ऑर्डर आ जाते हैं तो कंपनी की लागत कम हो जाती है, जैसे एक तीर से दो निशाने सध जाते हैं।