शतरंज की बिसात-सी ज़िंदगी

शतरंज की बिसात-सी ज़िंदगी

ज़िंदगी को कई बार शतरंज की बिसात कहा जाता है, पर भला ऐसा क्यों कहा जाता है? दरअसल शतरंज का खेल फ़ौरी तौर पर दो लोगों के बीच खेला जाता है और ज़िंदगी भी हमारे साथ ऐसे ही कुछ दाँव खेलती है, जिसमें कभी शह तो कभी मात दे देती है।

मूलतः भारत का

चतुरंग नाम के बुद्धि-शिरोमणि ब्राह्मण ने पाँचवीं-छठी सदी में यह खेल संसार के बुद्धिजीवियों को भेंट में दिया। यह खेल मूलतः भारत का है, जिसका प्राचीन नाम चतुरंग था। यह एक बौद्धिक खेल है। यह हमें मूर्ख बने रहना नहीं बल्कि अपनी आज़ादी के लिए खुलकर जीना सिखाता है। इसके दाँव-पेंच समझते हुए आपका दिमाग दसों दिशाओं में चलने लगता है। यह खेल खोजने, विस्मित करने, उत्सुकता जगाने और आज़ाद ख्याल होने का भाव जगाता है।

शतरंज के खिलाड़ियों को देखिएगा, देखिएगा वे कितनी तल्लीनता से उसमें डूब जाते हैं। कितना विचार, मंथन कर हर चाल चलते हैं। एक-एक चाल में कितनी गुंजाइश हो सकती है, कितनी तात्कालिकता से विचार करना पड़ता है और हर चाल को अवसर में बदलने के लिए कितनी रचनाशीलता का उपयोग करना पड़ता है, यह सब काले-सफ़ेद 64 खानों का यह खेल आपको सिखला देता है।

शतरंज के खिलाड़ी

जिन्हें इसे खेल के राजा, वजीर, ऊँट, हाथी-घोड़े, प्यादे समझ नहीं आते, उनके लिए यह उबाऊ हो सकता है,लेकिन इसे खेलने वाले इससे कभी उकताते नहीं हैं। वे हर चाल को विस्तार से समझा सकते हैं। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इसे खेलते हुए हर चाल को लिखा जाता है, इतनी ईमानदारी से खेला जाता है। दो दृष्टांत याद हो आते हैं। प्रेमचंद की कहानी ‘शतरंज के खिलाड़ी’, जिसमें दो खिलाड़ी शतरंज में इतना रमे कि दीन-दुनिया भूल बैठे और दूसरा दृष्टांत है मराठी लेखक पु.ल.देशपांडे का नाटक ‘तुझं आहे तुजपाशी’, जिसने पूरा जीवन दर्शन समझा दिया

विश्लेषण

यह खेल बताता है कि पुराने ढर्रों पर नहीं चला जा सकता, नित नवीन सोचना होता है। कुछ देर इस खेल के लिए बैठकर देखिए, तुरंत आपकी तार्किकता काम करने लगेगी। आप छोटी से छोटी बात का विश्लेषण करना सीख जाएँगे। किसी कदम को उठाने के सुदूर परिणाम क्या होंगे, यह सब आप जानने लग जाएँगे।

‘बोर्ड’ पर ‘बोर्ड गेम’

पहले कभी इसे चार लोग खेलते थे। कथाएँ तो यह भी बताती हैं कि राजा-महाराजा बड़े-बड़े पाट रच असली सैनिकों को खड़ा कर इसे सैनिक अभ्यास की तरह खेला करते थे। हम राजा-महाराजा न सही, लेकिन ‘बोर्ड गेम’ को ‘बोर्ड’ पर तो खेल ही सकते हैं। अपने खेल के खुद कर्ता-धर्ता होने की आज़ादी को महसूस कर सकते हैं। शांत हो जाइए और इसे खेलिए। पूरी प्रक्रिया का आनंद लीजिए।

देखिए डर, चिंता, परेशानी के पीछे आपने खुद को ही छिपा लिया है। अपने आपको बाहर निकालिए। आपका दिमाग काम करना बंद हो गया हो तो इसकी बिसात बिछाइए, नई संभावनाओं और नए अवसरों को तलाशने के लिए इसे खेलना शुरू कीजिए और साथ ही परिणाम पर विश्वास भी रखिए। यह खेल आपको कहाँ ले जाएगा, आप भी नहीं जानते। बस विश्वास की डोर को थामे रखिए और बढ़ चलिए।

सकारात्मकता का जामा

यह दो लोगों का खेल है। दूसरे की जगह पर खुद को रखकर सोचिए। सोचिए कि आप उसकी जगह होते तो क्या करते? उसके बाद तय कीजिए कि आपका भावी कदम क्या होना चाहिए। आपके भावी जीवन को सुकूनदायक बना सकता है, यह खेल। देखिए दुनिया बहुत अच्छी जगह है, जिंदगी को शतरंज की बिसात कहने वाले उसे नकारात्मक रूप से कहते हैं, आप उसे सकारात्मकता का जामा पहना दीजिए।

हो सकता है आपको यह एकदम असंभव-सा लगे। लेकिन विश्वास रखिए, जो भी आपको रोके हुए हैं, उसे छोड़ने का समय आ गया है। आपको अपने आपसे कोई अलग नहीं कर सकता। अपने विश्वास को आज़माना हो तो आज़मा लीजिए। देख लीजिए आप किस तरह से यह खेल खेलते हैं और कैसे जीवन को खेल सकते हैं, जीत सकते हैं।

और अंत में...

संयुक्त राष्ट्र द्वारा हर साल 20 जुलाई को विश्व शतरंज दिवस के रूप में मनाया जाता है। पेरिस में वर्ष 1924 में अंतर्राष्ट्रीय शतरंज महासंघ की स्थापना को चिह्नित करने के लिए इसे मनाने की परंपरा शुरू हुई।