कैसे बना इंदौर स्वच्छता में नंबर-1?

कैसे बना इंदौर स्वच्छता में नंबर-1?

भोत सई जा रिए हो भियाओ

नॉस्टेलजिया...सबसे प्रिय शगल है इंसान का...अपने पुराने शहर को याद करना, पुराने दिनों को याद करना और पुरानी यादों में खोए रहना...अपने शहर के बारे में कुछ याद आता है तो कुछ ऐसा क्षण चित्र भी याद आता है कि कोई ‘भिया’ (स्थानीय मालवी बोली में भिया मतलब भैया) सड़क पर पान-गुटके की पीक थूक देता था और आगे यह भी जोड़ता ‘लेडिजोन के सामने कायदे से रेते हैं, फोरेन कंट्रियों में ऐसा नई चलता’। विदेशों में नहीं चलता कहते हुए कहीं भी थूक देने वाले उस शहर में एक दौर में जगह-जगह गंदगी और सुअर, और गड्ढेदार सड़कें और धूल-धुआँ हुआ करता था

आज उस शहर के बाशिंदों को बधाई देने का मन कर रहा है। उस शहर की नॉस्टेलजिक याद से अच्छा यह लग रहा है कि केंद्रीय आवास एवं शहरी मामलों के मंत्रालय द्वारा पहली बार जारी नगर निगम के प्रदर्शन की हालिया रैंकिंग सूची में इंदौर नगर निगम अव्वल रहा है। इससे पहले केंद्रीय शहरी विकास मंत्रालय की स्वच्छता सिटी सर्वे रिपोर्ट में इंदौर वर्ष 2017, वर्ष 2018, वर्ष 2019 में स्वच्छता के शीर्ष स्थान पर रहा है और फिर वर्ष 2020 में स्वच्छता के नवाचारों और जनभागीदारी की अनूठी मिसाल बन चुका है। जनभागीदारी इसलिए कि जिस शहर में कचरे के लदे-फदे कूड़ेदान देखना आम बात होती थी आज उस शहर का हर नागरिक जैसे सबसे कह रहा है, आइए हमसे सीखिए, शहर को कैसे सुंदर रखा जाता है? और उस शहर को जिसे वहाँ के लोग ‘इंदौर’ नहीं ‘इंदोर’ कहते हैं, कहने का मन कर रहा है- ‘भोत सई जा रिए हो भियाओ!’

मैं शहर को सुंदर देखना चाहती हूँ- श्रीमती जैन

सर्वेसंपन्न नगर में रहने वाली सौंदर्य सलाहकार रानू जैन कहती हैं- सौंदर्य केवल व्यक्ति का बाहरी नहीं होता, सौंदर्य भीतर से आता है। जो सुंदरता चाहता है वह अपने शहर को भी सुंदर देखना चाहता है। मैंने इंदौर को स्वच्छ रखने के लिए अपनी और अपने परिवार वालों की आदतों में सुधार लाया है। हम कभी भी कचरा सड़क पर या सड़क किनारे नहीं डालते। सूखा और गीला कचरा अलग करना तो आम बात है। दूसरे शहर जाने पर भी हम अपनी आदतें वहाँ के लोगों को भी सिखाते हैं। पानी की हर बूँद बचाते हैं, पौधे लगाते हैं।

नागरिकों ने झाड़ू थामी

श्रीमती जैन उस शहर का एक प्रतिनिधि चेहरा है। शहर से गीला और सूखा कचरा अलग-अलग इकट्ठा किया जाता है. हर घर में गीले और सूखे कचरे के लिए अलग डस्टबिन होता है। हर घर में कचरा इकट्ठा करने के लिए गाड़ियाँ आती हैं, इन गाड़ियों में अलग-अलग तरह के कचरे को डालने के लिए अलग-अलग चैंबर बने होते हैं। इसके बाद इन्हें प्रोसेसिंग के लिए अलग-अलग यूनिट में ले जाया जाता है,गीला और सूखा कचरा अलग-अलग मशीनों में प्रोसेस किया जाता है।

सूखा कचरा प्रोसेस करने के लिए शहर में आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस तकनीक वाली एक मशीन भी लगाई गई है। ये मशीन बिना इंसानी मदद के प्लास्टिक, काग़ज़ और दूसरी तरह के कूड़े को अलग कर देती है, इस अलग हुए कचरे को रिसाइकल होने के लिए भेज दिया जाता है। शहर का लगभग 1150 मैट्रिक टन कचरा प्रोसेस होता है। ये पूरे देश के लिए रोल मॉडल है।

कचरा प्रोसेस करना तभी मुमकिन होता है जब घरों से निकलने वाला कचरा अलग-अलग कर दिया जाए। इंदौर के रहने वाले लोगों का इसमें बहुत बड़ा योगदान रहा है। इस शहर के नगर निगम सफाईकर्मी वाल्मीकि जयंती के अगले दिन छुट्टी पर रहते हैं। पिछले तीन सालों से चली आ रही परंपरा को कायम रखते हुए 14 अगस्त 2020 को भी वाल्मीकि जयंती पर फिर शहर के नागरिकों ने झाड़ू थामी। बच्चे, बुजुर्ग, महिलाएँ और युवा, सभी आयु वर्ग के 6 हज़ार से ज़्यादा लोग जुटे और 3 घंटे में शहर के 150 से ज्यादा स्थानों को साफ़ कर दिया। इनमें जनप्रतिनिधि, सरकारी अधिकारी, रहवासी संघ, व्यापारी एसोसिएशन, निजी कंपनियों के कर्मी भी शामिल रहे।

लॉकडाउन में भी सफ़ाई

स्वच्छता के लिए नगर निगम के अधिकारियों और सफाईमित्रों ने कोरोना लॉकडाउन की भी परवाह नहीं की। मार्च में लॉकडाउन लागू होने से जून में अनलॉक-1 तक इंदौर शहर में लगातार सड़कों की सफाई हुई, रात में प्रमुख सड़कें रोज धुलीं, घर-घर से रोज कचरा लिया जाता रहा और सड़क किनारे लगे लिटरबिन भी खंगाले गए। शहर में लगभग 5 लाख आवासीय और व्यावसायिक इकाइयाँ हैं जहाँ से निगम रोज़ कचरा उठाता है। निगम के लगभग 9 हजार सफाईकर्मियों ने पूरे शहर की सफाई व्यवस्था बनाए रखी।

कचरा पहले की तरह सेग्रिगेट होता रहा। जिन लोगों को सफ़ाई कार्य में लगाया गया, उन्हें दस्ताने, मास्क, सैनिटाइजर जैसे सुरक्षा संसाधन दिए गए। शुरुआत में सफाईकर्मियों की हिम्मत बढ़ाने के लिए खुद आयुक्त और स्वास्थ्य अधिकारी उनके साथ फ़ील्ड पर रहते थे। इस दौरान शहर में बने 10 कचरा ट्रांसफ़र स्टेशन चालू रहे। लॉकडाउन में 450 गाड़ियाँ घर-घर जाकर कचरा लेती रहीं। अधिकारी रोज़ समय पर सफ़ाई का निरीक्षण कर अधीनस्थों को दिशानिर्देश देते रहे।

शानदार काम

  • इंदौर के हर घर और दुकान से गीला और सूखा कचरा अलग-अलग कर लिया जाताहै।
  • इसके अलावा नगर निगम की गाड़ी में लगे तीसरे लिटरबिन में डाइपर, नैपकिन जैसे जैविक अपशिष्ट अलग से लिए जाते हैं।
  • शहर की 16 हजार इमारतों में रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम है।
  • इंदौर कचरा कम करने के लिए कदम बढ़ाने वाला पहला शहर है। यहाँ थ्री-आर फ़ॉर्मूले (रिड्यूस, रीसाइकिल और रीयूज़) के तहत बर्तन बैंक, झोला बैंक और डिस्पोज़ल फ्री मार्केट बनाए गए हैं।
  • घरों से निकलने वाले गीले कचरे को घरों में ही खाद में बदलकर कचरा उत्सर्जन में कमी करने की दिशा में काम हो रहा है।
  • शहर ने उपचारित पानी का 10 प्रतिशत हिस्सा फिर से इस्तेमाल करने में सफ़लता पाई है।
  • 575 गारबेज कलेक्शन वैन से कचरा परिवहन होता है।
  • 23 रोड क्लीनिंग मशीन रात में मुख्य सड़कों की सफ़ाई करती है।
  • 3053 लिटरबिन सड़क किनारे लगे हैं, जिनसे रोज कचरा उठाया जाता है।
  • 10 ट्रांसफ़र स्टेशन के ज़रिए शहरभर का गीला-सूखा कचरा ट्रेंचिंग ग्राउंड तक पहुँचता है।
  • इंदौर में कचरे के सात प्रोसेसिंग प्लांट हैं।
  • लगभग नौ हजार सफाईकर्मी रोज दिन-रात सफाई करते हैं।
  • इंदौर में जलाशयों, पुल-पुलियाओं और चौराहों पर सौंदर्यीकरण का काम हुआ है और नदी-नालों की सफ़ाई कर स्वच्छता को अगले मुकाम पर पहुँचाया है।

देश का एकमात्र प्लांट

इंदौर शहर के बाहर देवगुरड़िया इलाक़े में एक बड़ा ट्रेंचिंग ग्राउंड था जहाँ शहर का पूरा कचरा फेंका जाता था। इंदौर नगर निगम का दावा है कि पूरे कचरे का निपटारा कर दिया गया और अब वहाँ पर ट्रेंचिंग ग्राउंड की जगह एक मैदान है जिसपर पेड़ पौधे लगाए गए हैं। ट्रेंचिंग ग्राउंड में 300 टन सूखा कचरा प्रोसेस करने का प्लांट लगाया गया है। यहाँ कचरे को 12 अलग-अलग तरह के मशीनों से छाँटा जाता है। यह देश का एकमात्र प्लांट है। ट्रेंचिंग ग्राउंड में 15 लाख टन पुराना कचरा हटाकर 60 हजार से ज्यादा पौधे लगाए गए हैं और सिटी फ़ॉरेस्ट बनाया गया है

कचरे के पहाड़ वाली इस जगह पर हमेशा आग लगी रहती थी। आसपास रहने वाले लोगों के लिए साँस लेना भी मुश्किल था। लेकिन पिछले साल कुछ ही महीनों के अंदर इसे एक मैदान में तब्दील कर दिया गया। शहर के अलग-अलग इलाक़े जैसे रिहायशी इलाक़ों व्यावसायिक इलाक़ों और फल और सब्जी मंडियों की सफ़ाई हवा की क्वालिटी सुधारने के प्रयास पर भी नंबर दिए जाते हैं। ये काम डायरेक्ट ऑब्ज़र्वेशन के तहत आते हैं। इसमें भी इंदौर को पूरे यानी 1500 में से 1500 अंक मिले हैं। शहर से अतिक्रमण हटाने के मामले में भी इंदौर को पूरे नंबर मिले हैं। सूखे नाले में क्रिकेट, दंगल और शादी समारोह के आयोजन कर इंदौर ने बता दिया है कि वेस्ट से भी बैस्ट निकाला जा सकता है।

देश का सबसे बेहतर शहर

देशभर में स्वच्छता के मामले में डंका बजाने के बाद इंदौर ने एक और अहम मोर्चे पर परचम लहरा दिया है। इंदौर को 10 लाख से ज्यादा आबादी वाले नगर निगम में काम के आधार पर देश का सबसे बेहतर शहर माना है। इस फ़ेहरिस्त में मध्यप्रदेश का ही एक और जिला भोपाल तीसरे पायदान पर काबिज हुआ है। ये सूची गुरुवार को जारी की गई है। केंद्रीय मंत्री हरदीपपुरी ने गुरुवार को दिल्ली से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए 111 शहरों का लिविंग इंडेक्स जारी किया। मंत्रालय के सचिव दुर्गाशंकर मिश्र ने नतीजे जारी करते समय कहा कि इंदौर में जिन नालों के पास कोई जाना पसंद नहीं करता था आज वहीं कई तरह के खेल आयोजित किए जा रहे हैं। इंदौर नगर निगम की मेहनत का ही कमाल है कि उन नालों में लोग मैरिज एनिवर्सरी तक मना रहे हैं।

प्रदर्शन की रैंकिंग

शहरों की रैंकिग तय करने के लिए भारत सरकार ने कई तरह के मापदंड तय किए थे। जैसे- जीवन की गुणवत्ता, आर्थिक क्षमता व स्थिरता, किसी शहर की आबोहवा कैसी है, वहाँ व्यापार की कितनी संभावनाएँ हैं, नागरिक कितने जागरूक हैं और सड़क पर कनेक्टिविटी कितनी है सहित कई मानकों पर परखा जाता है। साथ ही इसमें प्रशासन की ओर से उपलब्ध कराई गई योजनाओं पर शहरवासियों के फ़ीडबैक भी अहम माने जाते हैं।

गौरतलब है कि भारत सरकार ने 'ईज़ ऑफ़ लिविंग' यानी जीवन की सुगमता के आधार पर पहली बार 2018 में शहरों की रैंकिंग जारी की थी। तब पुणे शीर्ष पर रहा था। ईज़ ऑफ़ लिविंग (जीवन जीने की सुगमता) इंडेक्स रैंकिंग की दस लाख से ज्यादा आबादी वाले शहरों की सूची में बंगलूरू पहले स्थान पर, पुणे दूसरे स्थान पर जबकि अहमदाबाद तीसरे स्थान पर है। मंत्रालय की ओर से इस बार नगर निगम के प्रदर्शन की रैंकिंग भी जारी की गई है। जिसका आकलन नगर निगम की योजनाएँ, वित्त, नीति, तकनीक और प्रशासन के आधार पर किया गया है।

केंद्रीय टीम ने सराहा

नगर निगम प्रदर्शन सूचकांक में इंदौर नगर निगम का काम देश में पहले नंबर पर है। यह कैसे हुआ? लॉकडाउन के दौरान घर-घर फल, सब्जी और राशन पहुँचाने की बात आई तो व्यवस्था बनाने को लेकर मंथन होता रहा। इसमें भी निगम की कचरा गाड़ियों ने प्रशासन की राह आसान कर दी। कलेक्टर मनीष सिंह ने घर-घर ज़रूरी सामान की सप्लाई के लिए निगम द्वारा स्थापित डोर टु डोर कचरा कलेक्शन करने वाली गाड़ियों के रूट को चुना। ये गाड़ियाँ पूरे शहर को कवर करती हैं इसलिए हर नागरिक के पास फल, सब्जी और राशन पहुंचाना आसान हो गया

निगम की गाड़ियों के साथ इन वस्तुओं के ऑर्डर लेने के लिए एनजीओ कर्मी भेजे गए। शुरुआती चार-पाँच दिन माँग और आपूर्ति की व्यवस्था गड़बड़ाई, लेकिन धीरे-धीरे सब सामान्य हो गया। लोगों को घर बैठे ज़रूरी सामान की आपूर्ति होने लगी। देश में अपनी तरह का यह प्रयोग था जिसे केंद्रीय टीम ने भी सराहा था।