नज़रें मिलाइए, चुराइए नहीं

नज़रें मिलाइए, चुराइए नहीं

ईमानदार बने रहिए। एक छोटा-सा सूत्र है, ईमानदारी लेकिन यह आपको समाज में बड़ी प्रतिष्ठा दिलाता है। जो भी काम आप ईमानदारी से करते हैं उसे करते समय आपका सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है। बेईमानी आकर्षित कर सकती है लेकिन आपका झुकाव ईमानदारी की ओर ही होना चाहिए।

जब आप कुछ ग़लत करते हैं तो आप लोगों से नज़रें नहीं मिला सकते और आप नज़रें चुराने लगते हैं। आप लोगों से दूर भागते हैं, इस डर से कि कहीं आपकी चोरी पकड़ी न जाए। आपको खुद को पता होता है कि आप वह बनने की कोशिश कर रहे हैं, जो आप वास्तव में नहीं हैं या आप दूसरों की आँखों में धूल झोंकने के लिए खुद को वैसा दिखा रहे हैं, जैसे आप नहीं हैं। यह भी तो एक तरह की धोखाधड़ी ही हुई न!

ईमानदारी एकमात्र शर्त

हमारे शास्त्रों में कर्म की जो बात कही गई है, वह सत्य है। कर्म आपकी ओर लौटकर आता है। जैसा आप करते हैं, वैसा ही आप पाते हैं। झूठ के अँधेरे में आप ज़्यादा समय तक नहीं रह सकते। ज़्यादा समय तक आप दूसरों को बेवकूफ़ नहीं बना सकते। जब झूठ का भाँडा फोड़ होता है तो वह बहुत दुःखद और उससे कहीं अधिक दर्दनाक होता है जितना आप लोगों को मूर्ख बनाकर आनंद ले रहे थे। झूठ की चमक ज़्यादा लंबे समय तक नहीं टिक सकती। बेईमानी या झूठ-फ़रेब से आप छोटे लक्ष्यों को प्राप्त कर सकते हैं लेकिन लंबी रेस का घोड़ा बनना हो तो ईमानदारी ही एकमात्र आवश्यक शर्त है।

असली रंग पहचानिए

जब फ़रेब का परदा उठता है तो सच की जो दीवार दिखती है वह अधिक कठोर और अधिक खुरदुरी नज़र आती है, बजाय इसके कि आप पहले से ही सपाट दीवार देखने के आदी बने रहें। पहले ही अपना सच बता देना उतनी पीड़ा नहीं देता जितना झूठ के मृगजाल में फँसकर फिर सच को उजागर करना। यदि आप ऐसे व्यक्ति हैं, जो नकली जीवन जीने में खुश होते हैं, तो सावधान हो जाइए और तुरंत असली रंग को पहचानिए, अपने भी और दुनिया के भी।

अपने आपको टटोलिए

यदि समय रहते आप सचेत न हुए तो बड़ी मुश्किल में फँस सकते हैं। उसके बाद जो हालात होंगे वे न केवल आपको शर्मसार करेंगे बल्कि कई विपदाओं को भी लेकर आएँगे। बनावट के जाल में किसी को फाँसकर आप जो भी हासिल करेंगे वो स्थायी नहीं होगा। गहरी लँबी साँस लीजिए, लिखना शुरू कीजिए और अपने आपको टटोलिए कि आप कहाँ-कहाँ, किन-किन स्थितियों में झूठ का सहारा लेते आ रहे हैं और तब आपको ऐसा क्यों लगा था कि झूठ बोलना चाहिए?

सच की सलाह

यदि आप किसी ऐसे को जानते हैं जो झूठ बोलता है तो उसे भी सच कहने की सलाह दीजिए। लेकिन सलाह ऐसे किसी को दीजिए, जो वह सलाह सुनना और अमल में ला सकता हो। जब सच की राह पर चलने लगेंगे तो आप खुद को ही एकदम नया पाएँगे। आपको लगेगा कि अब तक तो आप अपने आपको इस तरह जानते ही नहीं थे। अपनी ऊर्जा को केंद्रित कीजिए और परावर्तित करने के लिए तैयार हो जाइए। आपके लिए जो योग्य नहीं है उसे खुद से मुक्त करने के लिए तैयार रहिए।

झूठ आपके लिए योग्य नहीं है, झूठ किसी के लिए भी योग्य नहीं हो सकता है। धर्मराज युधिष्ठिर, सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र जैसी कहानियाँ हमें केवल महानायकों के बारे में नहीं बतातीं बल्कि सत्य की राह पर चलने के लिए प्रेरित करती है।

नीतियों पर अमल

एक सरल उपाय करके देखिए, बचपन की वे सारी कहानियाँ पंचतंत्र, हितोपदेश,जातक कथाएँ, अमर चित्र कथाएँ, लोक कथाएँ, ईसप नीति आदि-आदि फिर से पढ़िए। उनके अर्थों को टटोलिए, बचपन में उन कथाओं ने कुछ नीति और बहुत रंजकता दी थी, अबके कुछ उल्टा कीजिए। इन कहानियों से रंजकता को कुछ कम लेते हुए उन नीतियों पर अमल करने की कोशिश कीजिए। देखिए क्या साध्य होता है!