याद रहे तो याद आता है ‘य’

याद रहे तो याद आता है ‘य’

या तो किसी की याद आती है, या याद्दाश्त इतनी कमज़ोर हो जाती है कि कुछ भी याद नहीं रहता। किसी यामिनी यमन राग छिड़ जाने पर लगता है लड़ाई केवल शत्रुओं से ही नहीं, यमनों से नहीं, अपनों से भी लड़नी पड़ती है। यक़ीनन यों कह पाना मुश्किल होता है कि योद्धा की तरह फिर संग्राम के लिए खड़ा हुआ जाए या यज्ञोपवीत (जनेऊ) पहनकर बैठा जाए और यज्ञ वेदी में सब आहूत कर दिया जाए

हिंदी में ‘य’

बात करते हैं योगी से ‘य’ की और यशोगान गाते हैं। संस्कृत भाषा से जब हिंदी में ‘य’ से जुड़े शब्द आते हैं तो कई बार वे तद्भव रूप में आते हैं, तद्भव यानी उससे बने, यथा यमुना का जमुना हो जाना, युवा का जवान, यश का जस और योगी का जोगी हो जाना। यदि उनका रूप न बदलता तो वे तत्सम कहलाते..लेकिन यदि वैसा होता, यद्यपि यहाँ वैसा न होने से वे तद्भव बन गए।

यह ‘य’ यम को भी लेता है जैसे इस युग के कोविड काल में लगा था यत्र-तत्र-सर्वत्र सब अंतिम यात्रा पर ही निकल पड़े हो। तब कोई यंत्र काम नहीं कर पा रहा था और येन-केन प्रकारेण युवक-युवती भी उसकी चपेट में आने लगे थे। वह तो योग्य समय पर योग्य योजना से दवा बन गई और युनीक बीमारी से कुछ निज़ात मिली वरना यासिर हो या यादव, सब इतनी यातनाएँ झेल रहे थे कि सबका कलेजा मुँह को और यकृत बाहर निकल आया था। राशन के येलोकार्ड धारकों की तो स्थिति और भी ख़राब थी। कितने बच्चे यतीम हो गए थे उफ़!

यक्ष प्रश्न

कोविड ने यलगार बोला था लेकिन अब भी युद्ध विराम नहीं है। यह यकायक नहीं हुआ। सबका योगदान है। यूज़र फ्रैंडली बने मोबाइल से सबका योग हुआ, लेकिन यकबारगी (एकबारगी) लोग इस युटिलिटी से भी उकता गए। यक्ष प्रश्न खड़ा हो गया तो युवराज हो या युजवेंद्र सबने तय किया वे युद्धिष्ठिर की तरह धर्म का साथ देंगे और योगेश्वर कृष्ण की तरह सबने यकमुश्त (एकमुश्त) इसे ख़त्म करने के लिए शंखनाद फूँक दिया

रुका यातायात फिर दौड़ पड़ा और सबको यकीन हुआ कि यूनियन में कितनी ताकत होती है। इसने बता दिया कि यदा-कदा यत्किंचित मुश्किल आ भी जाए तो उसे यथावत् न रखते हुए यथोचित यत्नशील होकर, यथानुरूप यथायोग्य यथाशक्ति युक्ति लगाकर यथार्थ में यथावश्यक यथासाध्य योग्य हल निकालकर यथेच्छ यश पाया जा सकता है। ‘य’ की पुनरुक्ति से यह तो अनुप्रास अलंकार हो गया तो फिर यमक अलंकार कब होता है, जब समान शब्द की अलग-अलग अर्थों में आवृत्ति हो जैसे ‘कनक-कनक ते सौ गुनी मादकता अधिकाय’...पहला कनक सोना, दूसरे का अर्थ धतूरा। यूँकि विषयांतर न हो जाए...विराम लेते हैं।