हसरतों की हिलोर का हितकारी ‘ह’

हसरतों की हिलोर का हितकारी ‘ह’

आज हम हज़ार बुद्धि वाले हवाई जहाज के ह को हैलो कहते हैं। यह हलवा बनाने जैसा बिल्कुल नहीं है। इसे आड़े हाथों या हलके में लिया और हंगामा मचाया तो कहे देते हैं हाँ, यह हटने का नाम भी नहीं लेगा। हसरतों की हिलोर मारता हीरे-सा हसीन हितकारी ह, हिमालय जितनी हार्दिक शुभकामनाएँ ही देगा, उसमें कैसी हानि! कोई जग हँसाई तो होगी नहीं, फिर इतना हंगामा है क्यों बरपा?

हिंदी की देवनागरी वर्णमाला का अंतिम व्यंजन ह अपनी हवेली में आपको बुला रहा है, तो हकलाइए नहीं। भाषाविज्ञान की दृष्टि से कंठ्य, घोष, संघर्षी और ऊष्म अघोष रूपी ह की विसर्ग ध्वनि को बोलकर तो देखिए, कोई ह्रास नहीं होगा। कई तत्सम शब्दों के तद्भव रूपों में स ध्वनि का ह में परिवर्तन पाया गया है जैसे स्नान का नहान या नहाना हो जाना।

बिंदु और चंद्रबिंदु का अंतर सफ़ेद हंस के हँसने पर देख सकते हैं। यदि आप भी हँसोड़ या हँसमुख हुए तो आप भी इसे समझ सकते हैं। भले ही हट्टा-कट्टा हो पर यह हिंसक नहीं, कुछ हड़पेगा नहीं। हालाँकि हथौड़ा, हँसिया, हँसुली या हंटर देख तो सबकी हवाइयाँ उड़ने लगती हैं। अब हड़बड़ाकर हड़ताल पर न बैठ जाइए, यह हत्या नहीं करता। यह तो स्वयं हलाहल पी लेने वाले हर (शिव) और हरि (विष्णु) का ह है।

हतप्रभ रह जाना तो ठीक है लेकिन हतभागी होने से बचने के लिए हिचकोले लेते हुए सही पर हक़ीकत में सोचिए हुज़ूरों के हुजूम से भरी इस दुनिया में हमारी हस्ती ही क्या है, कितना हमारे हक़ का है चाहे जितने हाथ-पैर मार लो लेकिन कोई हाथ न बढ़ाए तो हाथों के तोते उड़ जाते हैं और हासिल क्या होता है कि हाथी तो निकल गया, पूँछ रह गई।

फिर कितने भी हाथ मल लो, या हाथों पर हाथ धरे बैठे रहने के बजाय हाथों पर सरसों जमाने लगे और हवा के घोड़े पर सवार होकर, हवाई किले बनाने लगो हाथ कुछ नहीं आता। हाथ भर का कलेजा लेकर आप अपना हेतु बता भी दें और कहें कि हालत खस्ता हो गई और बात हज़म नहीं हुई, पर हँसी-खेल समझ लेने से ज़िंदगी दो पल में हिरण हो जाती है, मतलब हाथों से निकल जाती है।

हथेली पर जान लिये फिरने वाले हाथों में चूड़ियाँ पहनने को कमज़ोरी समझते हैं लेकिन होड़ लगाकर हंडी पकाने वाली इन चूड़ी पहनने वालियों के हत्थे चढ़ जाने वाले हक्का-बक्का रह जाते हैं। जो माँ के दूध का हक अदा नहीं कर पाते, हताश माँ का हृदय पत्थर का हो जाता है, फिर उसका हृदय नहीं पसीज पाता। जिसने आपको होश सँभालना सिखाया, जिसने आपका हौसला बढ़ाया उसका हौसला पस्त होने लगे तो आपके भी हाथ-पैर फूलने लगते हैं, आप हाथों-हाथ बिक जाते हैं।

आप कितना भी हृदय उछालकर दे दें पर हरी झंडी न मिले तो आपके होश उड़ सकते हैं। हवा बदलने से हवाइयाँ उड़ने लगें तो आपकी हेकड़ी निकल जाती है। जहाँ हाथ को हाथ न सूझता हो, वहाँ हरियाली क्या सूझेगी। फिर आप कितनी भी हाँ में हाँ मिलाएँ, हवा हो जाने में ही खैरियत होती है।

कुछ लोग हाथ साफ़ करने में लगे रहते हैं, उनका हुक्का-पानी बंद हो जाए तो वे हथकड़ी लगने तक वे हाथापाई करते हैं। वे हजामत बनाने में हवा में उड़ते हुए से निकलते हैं। उन्हें लगता है वे किसी के हाथ नहीं लग सकते। उनकी भलाई करने वालों का वे हनन करते हैं और कोई अपना हाथ खींच ले तो वे जुमला मार देते हैं कि हरिश्चंद्र बन रहे हो क्या?

अब आप हाथ ही जोड़ लीजिए या यही कह दीजिए कि पैसा तो हाथ का मैल है और अपने हाथ तक काटकर दे दीजिए पर वे आपका हाथ थामने या हाथ चूमने नहीं आएँगे। आपकी हेटी हो जाए पर आप हाय-हाय करते रहिए, आपकी हिचकी तक बँधने लगे, आपका हुलिया बिगड़ जाए उनके होश ठिकाने नहीं आएँगे, उनके होश की कोई दवा नहीं हो सकती। आप हर तरह से कितनी भी हाय-तौबा कर लें वे आपकी बात हँसी में उड़ा देंगे। आप उन पर हाथ उठाएँ या उनके सामने हाथ फैलाएँ या हथेली वे हाथ से निकल जाएँगे तो हाथ में हाथ डालने साथ नहीं आएँगे।

आपके बुलंद हौसले को देख हँसते-हँसते उनके पेट में बल पड़ जाएँगे पर वे दूर खड़े रहेंगे आपकी चोट पर हल्दी लगाने नहीं आएँगे। उनके सामने हथियार डाल हमेशा के लिए हाथों में हल्दी लग जाने की बात कहने पर वे हमारी हड्डी-पसली ज़रूर एक कर देंगे। हड़कंप मच जाने पर हठ में हठात् नीम-हक़ीम के पास जाना खतरा-ए-जान होगा। यह इसका हस्तलिखित हाज़िरजवाब है। किसी के हमदर्द बनिए, हमख़्याली, हमजोली और हमशक्ल भी तो देखिए हरसिंगार हरित क्रांति करता-सा हर्षित हो खिल उठेगा, होली का त्योहार आने पर हारमोनियम पर गा उठेगा।

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इस हद से आगे…