‘घ’ से घनिष्ठता

‘घ’ से घनिष्ठता

आपने वह गीत तो सुना ही होगा, ‘घनन घनन घन घिर आए बदरा, घन घनघोर कारे छाए बदरा’, कितने सुंदर तरीके से जावेद अख़्तर ने इसमें ‘घ’ की पुनरक्ति की है। कोई घनचक्कर भी हुआ तो भी बिना ‘घाट-घाट का पानी’ पिए, घर बैठे इस तरह ‘घ’ को समझ सकता है।

बात फ़िल्म की चल पड़ी है तो निर्देशक हैं सुभाष घई लेकिन यदि आ की मात्रा लग जाए तो मराठी भाषा का शब्द हो जाएगा ‘घाई’, मतलब जल्दी। देश की भौगोलिक विशेषता को भी यह ‘घ’ समझता है, जैसे घाट कहते ही काशी के घाट याद आ जाते हैं और घाटी कहने पर कश्मीर घाटी, जैसे ‘घ’ में वह घोर देशप्रेम है जो घुसपैठियों से घमासान युद्ध में घायल सैनिकों के घटते बल को फिर जगा देता है। वह जानता है कि पूरे घटनाक्रम पर सबकी निगाह है इसलिए वह अपने घर-बार को छोड़ सीमा पर डटा रहता है।

‘घ’ का घटाटोप

‘घ’ के घटाटोप को देखें। यह घरवापसी का घर है, पर बेवजह किसी के घर में मत घुसिए। इससे घरवाला और घरवाली है, इसका अर्थ पति-पत्नी होता है तो घरवाले मतलब परिवार के सदस्य, तो बताइए घरेलू मतलब क्या? मतलब आपके घरौंदे से जुड़े काम।

ज़रा मात्रा घटा-बढ़ा दी जाए तो ‘घ’ का अर्थ बदल जाता है, घरजँवाई और घरजाया का अर्थ समझिए। ‘घ’ के घनत्व के घनाकार घनफल को देखिए, उसे किस रूप में लिया जाता है वह भी बहुत महत्वपूर्ण है, जैसे उपरोक्त गीत की पंक्ति में ‘घटा’ मतलब घनश्याम की बदली है और उक्त वाक्य प्रयोग में ‘घटना’ मतलब कम होना होता है, जबकि ‘घटना’ मतलब आयोजन से भी इसका तात्पर्य है।

घाघरे की तरह इसके रंगबिरंगे गोल-गोल घूमते अर्थ हैं, जबकि घागर, गागर का अपभ्रंश है। घड़ियाल की तरह पड़े-पड़े घोषणाएँ देते रहने से इसके अर्थों को नहीं समझा जा सकता। घट स्थापना की तरह इसका अर्थ बहुत गंभीर है और ‘घट-घट’ में व्याप्त है, इतना कि किसी का अंतिम समय आ जाए तो उसे भी आखिरी घटका कह संबोधित किया जाता है

आप सोचेंगे कि यह क्या घटिया बात कह दी। घिघौना लगे तब भी, यह तो सत्य है। पाँच घटकों से बने हम कभी न कभी इस घरबार छोड़ जाने ही वाले हैं और इस घटनाचक्र को कोई नहीं रोक सकता, फिर इसे पढ़ने भर से काहे आपकी घिग्घी बँध रही है?

‘घ’ का घटनाक्रम

‘घ’ का घटनाक्रम घटित होता है, उसका यह घेरा है। जीवन चक्र की घिरनी घाम बहा-बहाकर घिस जाती है तो अंतिम क्रिया में घड़ा फोड़ा जाता है। यह घिसाई है, जीवनभर कितना भी घी पिया हो, सबका घमंड टूटता है, हर घुन इसमें पिसता है। हम घोंघे की तरह तो जी नहीं सकते, यही घट नव संचार का घटपल्लव भी देता है। घट से जुड़ा घटवादन भी है।

दक्षिण भारतीय शास्त्रीय संगीत में आपने भी सुना होगा, घड़े को उल्टा रख बजाते हैं, उस घनीभूत आवाज़ को घटवादन कहते हैं। देखिए घुँघरू की तरह कितना मधुर है यह ‘घ’, जो घृणा की घंटी नहीं चाहता। अब यदि आप कहेंगे ‘मेरा घोड़ा यहीं अड़ा’ तो आपको ‘खून के घूँट’ पीने पड़ सकते हैं।

घुलनशील ‘घ’

यह घुलनशील ‘घ’ है। घूँघट में कोई नार हो तो उसे घूरिए मत, घूस न लीजिए, कोई घपला मत कीजिए फिर देखिए आपको कभी घुटने चलने की नौबत नहीं आएगी और घुमावदार रास्तों की घेराबंदी में भी बिना घबराहट आपकी घुड़सवारी शानदार हो जाएगी, आराम से घुमकड़ी कीजिए।

‘घ’ से घनिष्ठता बढ़ा लीजिए क्योंकि इसी ‘घ’ से घड़ी है, जिसका एक अर्थ समय सूचक यंत्र है तो दूसरा ‘घड़ी-घड़ी’ समय बितना मतलब समय की तेज़ रफ्तार है, यदि जीवन का मोल हमने धड़ी भर न समझा तो क्या होगा देखिए इस गीत से

#AMelodiousLyricalJourney | Swaraangi Sane| The Everlasting| सार्वकालिक

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