फ का हर फ़रमान, अरमान हो जाएगा

फ का हर फ़रमान, अरमान हो जाएगा

‘फिर तुम्हारी याद आई ऐ सनम...फिर छिड़ी रात बात फूलों की, वो भूली दास्ताँ लो फिर याद आ गई...लो आ गई फिर उनकी याद’...फिर की फिरकी हिंदी फ़िल्मों ने इतनी बार दोहराई कि ऐसा लगा ‘फ’ से फ़क्त यही एक शब्द बनता है। लेकिन इसके फ़ंडे में फ़ंड से लेकर फड़फड़ाहट तक है और लकीर का फ़कीर होना भी इसमें बदा है।

‘फ’ के फैलाव को समझने की यह फटाफट कोशिश है। इसके क्या फायदे हैं तो जनाब यह कोई फैक्ट्री थोड़े है कि निन्यानवे के फेरे में फँस जाओगे। फ़िफ्टी- फ़िफ्टी का फ़र्क जान फ़ुटपाथ पर आ जाने की भी कोई आशंका नहीं है। अपने फेफड़ों में ‘फ’ की फूँक भरिए और फ़र्ज़ निभाने वाले फ़ौज़ी की तरह फ़ाइनली फ़ौलाद से फ़ोटो शूट कराने के लिए खड़े हो जाइए।

फ़र्ज़ी नहीं होना है। ज़िंदगी में फ़ोकट में फ़ीका रहना है या फ़ेनिल की तरह उठना है, फ़र्क पहचानिए और हींग लगे न फ़िटकरी, रंग चोखा के फ़ैक्ट को जी लीजिए। यह फाँसी का फंदा तो है नहीं कि फ़ालतू गले पड़ जाएगा।

न, न इतने फ़ूल कर कुप्पा भी मत हो जाइए कि फ़िसल ही जाएँ। एक फ़र्लांग की दूरी पर फ़र्शी पर फ़िनाइल का फ़टका लगा हो तो यहाँ फ़िसलने में क्या तुक है और उसकी फ़रियाद करने से भी क्या हासिल। इसकी लंबी फ़ेक को फ़ोन से मत फ़ेंकिए, नहीं तो सुनने वाले के कान फट जाएँगे। न फ़रेब कीजिए, न फ़साद। बात-बात पर फन मत निकालिए। अहसान फ़रामोश न बनिएगा। किसी भी तरह फाड़ने-फोड़ने की बात मत कीजिए। अपनी फ़ील्डिंग जमाइए और फ़िक्र न करते हुए फूलों की सुगंध की मानिंद इसके फलों का स्वाद अपने हर फ़ूड में चखिए।

फ़र्ज़ कीजिए कि ‘फ’ का फ़ीवर चढ़ गया है। सौ फ़ीसदी फ़र्मली इसके फ़ेम को लूटिए फ़िर क्या तो फ़िलीपींस और क्या तो फ़्रांस और क्या तो फ़तेहपुर, सारी दुनिया आपको अपने लिए फ़िट लगेगी और दो फ़ुट की दूरी से फ़ुटबॉल का गोल मारने जैसा फट से आसान हो जाएगा सब। बस फ़ोकस बनाए रखिए। फ़िटनेस रखिए और फ़ेमस हो जाइए।

आनंद का फव्वारा छूटेगा तो कामों की फ़ेहरिस्त भी फ़रिश्ता लगेगी और हर फ़रमान, अरमान हो जाएगा। तुरंत फ़ाइलों में दबे कामों को निकालिए और बड़े फ़ैशनेबल तरीके से करते चलिए। फ़ैसला लीजिए, फिर तो ऐन फ़रवरी में भी फ़िरोजी रंग नीले आसमान से छिटककर आपके जीवन में आ जाएगा, वह आप पर खूब फबेगा, यकीन रखिए।

उसके बाद फ़ागुन में फ़गुआ भी खेलिए, फक्कड़ हो जाइए बस। न फटकार से डरिए न फ़जीहत हो जाने का भय रखिए। मन की फ़टन को अपने पास फ़टकने भी न दीजिए। फटफटी पर बैठिए और फटाक से फटा-पुराना सब छोड़, फटेहाल फटीचर ज़िंदगी से मुँह मोड़ने का संकल्प ले लीजिए। फ़रार नहीं होना है बल्कि अपनी ज़िंदगी का फ़नकार बनना है। फफूँद और फफोलों को हटा दीजिए।

कोई फब्ती कस रहा हो तो फ़ना हो जाने की ज़रूरत नहीं है। अपने फ़रमाँबरदारों को भी आगाह कीजिए। फ़र्टाइल होते रहिए। फ़र्राटेदार अंग्रेज़ी नहीं आती तो भी कोई बात नहीं फ़र्श से फ़लक तक हर वह जा सकता है जो फलता-फूलता है। फलतः फलदायी बनिए। फलस्वरूप फ़िलासफ़ी का फ़लसफ़ा कहता है कि फलसिद्धि फलित होती है, धीरज रखिए। फसल के पकने का इंतज़ार कीजिए। यही ‘फ’ का फ़साना है।