एतदनुसार एक ‘ए’ की कथा

एतदनुसार एक ‘ए’ की कथा

यूँ तो ये कुछ अंग्रेज़ी शब्द हैं लेकिन पिछले कुछ दिनों येन-केन प्रकारेण इनका बड़ा बोलबाला रहा और उस वजह से ‘ए का बोले’ तो बड़ा एका दिखा कभी किसी ने पुलिस में एफआईआर दर्ज करवाई, कभी वह डॉक्टरों के एप्रैन में आया, कभी एंबुलेंस में, कहा गया कि एयर कंडीशनर में बैठने से सबसे ज़्यादा ख़तरा है

न्यूज़ एजेंसी से ख़बरें आईं। एलसीडी टीवी पर एनीमेशन ही नहीं कइयों ने समाचारों में देखा कि एकीकृत डेटा प्रोसेसिंग से यह बात निकलकर सामने आई कि यह एचवाईवी से भी ख़तरनाक सिद्ध हुआ है। यह केवल एशियाई देशों तक फैली बात नहीं रह गई थी, समूचा विश्व इसकी चपेट में आ गया था। कई लोगों ने एनॉलॉग का सहारा लिया पर तब भी उन्हें अपनी एफडी तुड़वानी पड़ी, एक एकड़ ज़मीन तक बेचनी पड़ गई।

एक तो ‘ए’ खुश

तनाव से बचने के लिए कुछ लोगों ने एक्रेलिक पैंटिंग करने का सोचा। पर पल भर में लोग एकदम बेजान हो गए, फिर एकदंत गणपति से की याचना हो या एकादशी का व्रत ही कुछ काम नहीं आया।

वैसे हम जिस ‘ए’ की बात कर रहे हैं वह देवनागरी वर्णमाला का आठवाँ स्वर है। भाषाविज्ञान की दृष्टि से यह दीर्घ और संयुक्त स्वर है तथा घोष ध्वनि है। इसे एकाग्रता से एकाग्र दृष्टि रख एकचित्त होकर बाँचने के लिए ‘एड़ी-चोटी का ज़ोर लगाना’ पड़ जाता है।

आप ऐसा नहीं कर सकते कि ‘एक कान से सुना, दूसरे से निकाल दिया’। ऐसा करना इस ‘ए’ को ‘एक आँख नहीं भाता’ और वह ‘एक की दो कह’ देता है। लेकिन यदि उसे ‘एकटक देखते रहे’ तो ‘एक तीर से दो शिकार करने’ की तरह काम सध जाता है। एक तो ‘ए’ खुश हो जाता है दूसरा आप पर एतबार कर लेता है कि आप ही एकमात्र हैं जो एक्स/वाई गुणसूत्रों का वह अनूठा संयोग है जिसके आगे किसी और की ‘एक नहीं चल’ सकती।

‘ए’ कभी नहीं चाहता कि सबको ‘एक लाठी से हाँका’ जाएँ। वह किसी का ‘एहसान नहीं रखता’, वह नहीं चाहता कि कोई भी ‘एक मुट्ठी अन्न’ तक को तरस जाए। यदि वह देख ले कि सब ‘एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हैं’ तो तुरंत गुस्सा हो जाता है।

एक साधे सब सधे

इसका पाठ पढ़ने किसी एकेडमी में जाना नहीं पड़ता, कहीं एकत्र नहीं होना होता। एकतरफ़ा ज्ञान इतिहास में एकदा आए एकलव्य की तरह हासिल किया जा सकता है। यह एकतरफ़ा प्यार के एकदम एकतरफ़ा अनुबंध की तरह होता है जो एकतरफ़ा गली से होकर गुज़रता है। तब रहीम याद आते हैं कि ‘एक साधे सब सधे, सब साधे, सब जाए’।

एकाश्रित रहना होगा। अपने हुनर का एकीकरण करना होगा। एकनिष्ठ हो जाने से एकल गायन, वादन, नर्तन, अभिनय सब एकांगी, एकांकी सध जाता है लेकिन यह एकदिवसीय बात नहीं होती, सतत अभ्यास ज़रूरी होता है।

एकांतवास में एकांत प्रिय होना इससे जुड़ी एक बात है। यदि ऐसा एकालाप कर लिया तो आपका अपने क्षेत्र पर एकाधिकार हो जाता है। इससे अलहदा एकेश्वरवाद क्या है, एकोन्मुख होना ही ‘सबका मालिक एक है’, को जानना है। एतदनुसार यह एक ‘ए’ की कथा है।