दिमाग की सत्ता को अस्वीकार कर दीजिए

दिमाग की सत्ता को अस्वीकार कर दीजिए

हॉरर मूवी देखते हुए का अनुभव याद कीजिए। आपको पता होता है कि जो भी कुछ चल रहा है, वह स्क्रीन पर है, वास्तव में आपके साथ वैसा कुछ नहीं हो रहा लेकिन तब भी आप बेतहाशा डर जाते हैं। यह डर कहाँ से आता है? यह डर आपके दिमाग की उपज होता है। दिमाग आपके लिए ऐसा माहौल बना देता है कि आपको लगने लगता है कि जो आप देख रहे हैं, वो ही सच है, जबकि आप तब भी जान रहे होते हैं कि जो दिख रहा है, दिखाया जा रहा है, वो झूठ है

दुनियावी स्क्रीन

यही तो दुनिया का भी सच है। दुनियावी स्क्रीन पर जो दिखता है, आपका मस्तिष्क आपसे कहता है कि वही सच है। वह कई तर्क देता है और तर्कों के आधार पर कैसे किसी बात को झुठलाया जा सकता है? आप दिमाग की बातों में आ जाते हैं। जबकि आप सत्य, शिव और सुंदर को तलाशना चाह रहे थे लेकिन आप टॉक्सिक एनर्जी से भर गए। अपने सारे प्रश्नों के जवाब बाहरी दुनिया में ढूँढने निकल पड़े जबकि कितने ही मनीषी कहकर गए हैं कि सारे सवालों के जवाब भीतर ही हैं

रास्ते के उस पार

आपने कहा कि आपके पास भीतर झाँकने की फुर्सत नहीं है। बाहरी दुनिया में उलझना अधिक आसान है बजाय भीतरी शांति की तलाश में निकल पड़ने के। खुद का आत्मविश्वास कैसे कम किया जाए, आपके माहिर दिमाग ने आपको यह भी सिखा दिया। उसने याद दिलाया कि पिछले कितने ही अवसरों पर आप चूक गए थे, कैसे विफल हुए थे। जो अवरोध थे, वे जा चुके हैं..असफलताओं से सीखिए और आगे बढ़िए, यदि आप उन्हीं परेशानियों को पकड़े बैठे रहेंगे तो कभी रास्ते के उस पार के आनंद को न पा सकेंगे। उन चीज़ों, बातों पर अपना लक्ष्य केंद्रित मत कीजिए, जो आपको रोके हैं।

छोटा-सा सवाल

जो आप चाहते हैं वो इस दुनिया में पहले से मौजूद है। ज़रूरत केवल उस ओर ध्यान देने की है। जितना भी ज्ञान है, वह पहले से आपके भीतर मौजूद है। आपको कुछ सीखना नहीं है केवल रिकॉल करना है, पुनर्स्मरण करना है। जिसका लक्ष्य जितना केंद्रित होता है वह उसे जल्दी रिकॉल कर पाता है और हमें लगता है वह जल्दी सीख गया।

मछली के बच्चे को जैसे तैरना सिखाना नहीं पड़ता तो मनुष्य को कुछ सीखने-सिखाने की क्यों ज़रूरत है? क्या आपका दिमाग इतने छोटे-से सवाल का जवाब नहीं दे सकता? दरअसल वह चाहता ही नहीं है कि आपको जवाब मिल जाए। एक बार आपको जवाब मिल गया तो आप ‘निन्यानवे के फेर’ से निकल जाएँगे और आपका दिमाग यही नहीं चाहता। वह आपको इसी खेल में उलझाए रखना चाहता है। आप उलझे रहेंगे तो उसका काम आसान हो जाता है।

ऐसे में दिमाग की श्रेष्ठता बनी रहेगी लेकिन जैसे ही आप समझ जाएँगे कि दिमाग आपको ‘दो और दो के जोड़’ में उलझा मूर्ख बना रहा है आप सबसे पहले दिमाग की सत्ता को अस्वीकार कर देंगे।

मन की सुनिए

अब दिमाग को अपने ऊपर हावी मत होने दीजिए। आप दिमाग के ऊपर अपनी सत्ता काबिज कीजिए। आपके गट फ़ीलिंग्स, इंट्यूशंस क्या कहते हैं, उसे सुनिए लेकिन आपके मन की सुनने के लिए आपको मन के साथ अकेले बैठना होगा। जितना अधिक समय आप खुद के साथ बिताएँगे, उतना आपका मन आपको राह दिखाता चलेगा

कई बार आप कहीं जाने की पूरी योजना बना लेते हैं लेकिन उसी वक्त आपका मन रोकने लग जाता है। आपके तर्क बताते हैं कि आपका जाना कितना ज़रूरी है और आप मन की अनसुनी कर देते हैं। फिर कभी ऐसा भी होता है कि आप सुन लेते हैं और कहते हैं ज़रा भी मन नहीं हो रहा, आज नहीं जाते। उसी दिन पता चलता है कि जिस जहाज से आप जाने वाले थे, वो पलट गया।

कई दुर्घटनाओं के बाद आपको कई किस्से सुनने में आते हैं कि किसी का उसी दिन का रिज़र्वेशन था और वो इंसान उसके बावजूद नहीं गया, दुर्घटना हुई, कई लोग हताहत हुए, कुछ चोटिल हुए, कुछ मृत्यु को प्राप्त हुए लेकिन वह बच गया क्योंकि वह गया नहीं।

अनसुलझे रहस्य

प्रकृति के उन अनसुलझे रहस्यों के बारे में सोचिए जिनके बारे में दिमाग, तर्क, विज्ञान कोई भी कुछ हल नहीं दे पाया है। कुछ अनहोनी होने वाली हो तो सबसे पहले पशु-पक्षियों को पता चलता है, उनके व्यवहार में अंतर आ जाता है। पर वे तो हमारी तरह समझदार नहीं। मानव मस्तिष्क सर्वाधिक विकसित माना जाता है फिर हम क्यों नहीं समझ पाते

हम विज्ञान का सहारा लेकर तूफान आने की आशंका जताते हैं, पक्षी बिना किसी सहारे के जान जाते हैं और उस स्थान को छोड़ देते हैं। जहाज डूबने वाला होता है तो सबसे पहले चूहे पलायन करते हैं। चूहे इतने पिद्दी-से, लेकिन वे जान जाते हैं, हम तथाकथित बुद्धिमान ज्ञान-गणित में उलझकर रह जाते हैं।

नए सिरे से

बहुत हो गया दिमाग का सुनना, आइए दिल की सुनते हैं। दिल की दुनिया बहुत सुंदर है, बहुत मोहक है, चलिए फिर नए सिरे से जीवन की शुरुआत करते हैं।