धार सी धारा

धार सी धारा

एक तरफ़ ‘ध’ में इतनी विनम्रता है कि धन्य-धन्य हो जाने का मन करता है, जब वह धन्यवाद कहता है, लेकिन दूसरी तरफ़ इस ‘ध’ में पौरुष की धधक भी है। बादलों की ‘ताs धाs’ जैसे ध्रुपद के साथ बजते धमार ताल की याद दिला देती है और लगता है ‘ध’ की धार सी धारा बह निकली हो। आप ध्वजा थामे बहुत ऊँचे उड़ने लगो तो यह सपनों की दुनिया से धड़ाम से धरा के धरातल के इस धाम में ले आता है और आपको धर्म-कर्म सिखाते हुए धूप-दीप से धान की फसल या धनिया-मिर्ची की याद हो आती है और आप धंधे-पानी की चिंता में धूप में पसीना बहाने खड़े हो जाते हैं।

बड़े-बड़े धमाके

यह धरने पर बैठ जाए तो ऐसे बैठ जाता है जैसे धतूरा खाकर धूनी जमा ली हो। धन्ना सेठ की धमकी को भी यह धिक्कारने का दम रखता है- जैसे कहता हो तुम्हारे धन से हमें क्या काम। ऐसे बड़े-बड़े धमाके यह चुटकियों में कर देता है। अब आप धाए (धाड़ा) मारकर रोएँ या ध्यान से इसकी बात सुनें आप पर निर्भर है। इसकी धमाकेदार बातें धमाल भी करती हैं। इसके पास धड़कनें बढ़ाता धानी रंग है तो सौम्य ध्वनि की अनुगूँज सा धवल रंग भी। इसके धागे को धैर्य से धरिए, धावन की बात मत कीजिए वरना यह आपको ‘धोनी’ बना देगा।

धाकड़ है

इसे पता है धरोहर को कैसे सँभालना और धूल में भी कैसे मिला देना। यह धनंजय भी बना देगा और धन का लालच रखा तो धनकुबेर से सीधे धनहीन कर देगा। इसके पास धड़क है इसलिए तो यह धाकड़ है। लेकिन किसी धोबी की बात में आने का धोखा मत खा जाना, वरना आप कितने भी बड़े धनुर्धर हुए हों या आपके धनुष से कितने भी तीर छूटें लेकिन बात हाथ से निकल जाएगी और सीता धरणी या धरती में समा जाएगी। फिर एक धब्बा-सा लग जाएगा कि रावण का सिर, धड़ से अलग करने का साहस जिसमें था उसने एक धोबी की बात मान ली!

धावक को यदि तेज़ दौड़ना हो तो उसे धुँधला दिख रहा हो तो नहीं चलेगा वैसा ही है छवि धीरे-धीरे बनती है लेकिन धूमिल एक क्षण में हो जाती है। इसे आप ध की धाँधली नहीं कह सकते, ध कोई धक्का नहीं देता आपको ही अपना ध्यान रखना होता है। वरना धक्-धक् करते दिल की धड़धड़ाहट कब धकधकाहट करने लग जाए कह नहीं सकते।

धत्!

धकधकी, धकापेल और धक्कम-धक्का या धक्का-मुक्की में आप धकियाते हुए जीवन नहीं गुज़ार सकते वरना कब धज्जियाँ उड़ जाएँगी पता भी नहीं चलेगा। आप कहेंग धत्! ऐसे नहीं होता यह तुरंत धर-पकड़ करवा देगा। इसके धनांक को कम आँक लिया है। इसके पास धनाढ्य बनाने का धनादेश है, जीवन की धनात्मकता इसके पास है। धर्मात्मा होते हुए भी इसने धर्मशाला नहीं खोल रखी। यह धमनी के रक्त में जोश देता है जो धमाचौकड़ी की धमाल दिलवाता है फिर आपसे कहता है कि आपके जीवन के कर्ता-धर्ता आप ही हैं,कोई और नहीं।

न न यह धर्म भीरू नहीं बनाता बल्कि धर्म युद्ध में धर्मोपदेशक सा आपको गीता का ज्ञान देता है। ध के धर्म आधारित शब्दों की ही धारावाहिक श्रृंखला हो सकती है कैसे- ऐसे- धर्मभ्रष्ट भी इससे हैं तो धर्मभ्राता,धर्म पिता, धर्म भगिनी, धर्मपत्नी जैसे सारे रिश्ते भी..आपको धर्मसंकट में नहीं डालते आप स्वयं धर्म संगत करते हुए धर्म सम्मत शब्दों की खोज में निकल पड़िए।