चैट जीपीटी वरदान या अभिशाप

चैट जीपीटी वरदान या अभिशाप

कई बार लगता है कि आर्टिफ़िशियल इंटैलिजेंस (एआई- AI) मानवीय बुद्धि की टक्कर का है। उसके कई नमूने आप देख सकते हैं और हाल में आया करिश्मा है चैट जीपीटी- Chat GPT- जनरेटिव प्रीट्रेन्ड ट्रांसफ़ॉरमर् – Generative Pretrained Transformer, एकदम सरल चैट में आप वह सारी जानकारी इससे प्राप्त कर सकते हैं, जो आप पाना चाहते हैं।

माना जा रहा है कि यह कई मामलों में इंसानों की जगह ले लेगा। आपको किसी भी विषय पर कोई भी जानकारी चाहिए, वह यहाँ मिल जाएगी, बिल्कुल गूगल की तरह लेकिन उससे भी बढ़-चढ़कर। यह आपके ई-मेल का सिंथेटिक जवाब दे सकता है। किसी भी विषय का ट्यूटोरियल यहाँ मिल जाएगा, एमबीए (MBA) और कानून जैसे विषयों की पढ़ाई भी इसके ज़रिए हो जाएगी और आप कोई भी विषय इसे देंगे तो उस पर यह आपको लेख तैयार करके दे देगा, फिर न अध्यापकों की ज़रूरत रहेगी, न लेखकों की।

सामान्य ज्ञान की बात करें तो इसमें वर्ष 2021 के पहले तक का डेटा फ़ीड है और इसे लगातार अपडेट किया जा रहा है। छात्र इसके ज़रिए आसानी से पढ़ाई कर सकते हैं, हो सकता है वे इसकी मदद से नकल करने में भी महारत हासिल कर लें इसलिए भारत जैसे कुछ देशों ने स्कूल-कॉलेज स्तर के छात्रों के लिए इसे निषिद्ध किया गया है।

स्कूल के ज़माने में कभी निबंध का विषय हुआ करता था ‘विज्ञान के लाभ या नुक्सान’ या ‘विज्ञान वरदान या अभिशाप’, उसी तर्ज़ पर अब मुद्दा-ए-बहस यह बन गया है कि ‘चैट जीपीटी वरदान या अभिशाप’। इस आर्टिफ़िशियल इंटैलिजेंस टूल को आप वेबसाइट से निःशुल्क उपयोग में ला सकते हैं। इसे डाउनलोड करने की भी कोई ज़रूरत नहीं है। इसके सर्च बॉक्स में आप कोई भी शब्द लिखेंगे तो यह उसके अर्थ को अपने स्तर पर समझकर लेख, टेबल, समाचार-लेख, कविता जैसे किसी फ़ार्मेट में आपके लिए जवाब पेश कर देगा।

हालाँकि यह भाषायी व्याकरण और जानकारी के सत्यापित होने की गारंटी नहीं देता है। वर्ष 2018 में ओपन एआई –Open AI द्वारा विकसित हुआ था। यह सबके सामने आया था लेकिन तब यह केवल प्‌रश्न-उत्तर, भाषा अनुवाद और पैराग्राफ़ निर्माण तक सीमित था। वैसे तो सैम अल्टमैन और ऐलन मस्क ने वर्ष 2015 से ही इस पर काम करना शुरू कर दिया था। दो साल पहले वैनटैग ने इसमें 1.7 बिलियन डॉलर का निवेश किया था। हाल में नवंबर 2022 को इसे प्रोटोटाइप के रूप में लॉन्च किया गया है।

अभी केवल 2 प्रतिशत कंपनियों में एआई जनरेटेड संदेशों का उपयोग होता है लेकिन माना जा रहा है वर्ष 2025 तक यह बढ़कर 30 प्रतिशत हो जाएगा। माना तो यह भी जा रहा है कि वर्ष 2030 तक 90 प्रतिशत ब्लॉकबस्टर फ़िल्में आर्टिफ़िशियल जनरेटेड कंटेन्ट पर बनी होंगी, भले ही अभी तक इसके ज़रिए कोई मूवी न बनी हो। यह तकनीकी क्रांति आने के दस्तक की तरह है।

अब बात उस आशंका की कि कहीं यह लोगों की नौकरियाँ तो नहीं छीन लेगा। मनुष्यों-सी समझ और रचनात्मकता किसी भी आर्टिफ़िशियल टूल के पास नहीं हो सकती। यह महज़ लर्निंग टूल है, जो उतने ही जवाब दे सकता है, जितने उसमें फ़ीड हैं या जिस डेटा पर इसमें काम हुआ है। लेकिन अभी इसका क्रेज़ चल रहा है। हर कोई इसके बारे में बात कर रहा है।