खुद को दीजिए अपने अपग्रेडेड वर्ज़न का उपहार

खुद को दीजिए अपने अपग्रेडेड वर्ज़न का उपहार

हम अपने लिए नया मोबाइल खरीदते हैं, कभी नई कार या नया फ़्रिज, कुछ नहीं तो नए कपड़े ही, अपने लिए नहीं खरीदते तो किसी को उपहार में देते हैं, मतलब हम हर चीज़ का लेटेस्ट वर्ज़न चाहते हैं। बेजान वस्तुओं के लिए तो हम नया अपग्रेडेड वर्ज़न चाहते हैं, फ़िर हम अपने आपको खुद का लैटेस्ट, अपग्रेडेड वर्ज़न उपहार में क्यों नहीं देते?

सवाल पूछिए

खुद का अपग्रेडेशन कैसे होगा? पूछिए, यह सवाल अपने आपसे पूछिए। यदि सवाल ही नहीं पूछेंगे, तो उसका जवाब कैसे मिलेगा? अपने आपको अपग्रेडेड करना है तो पहले कुछ सवालों को मन में कुलबुलाने दीजिए। यदि आपने सोच लिया कि ‘अब क्या रखा है ज़िंदगी में’, तो ज़िंदगी की आपकी तश्तरी में कुछ नहीं रहेगा। यदि आप अपने कंफ़र्ट ज़ोन से बाहर निकलने की इच्छा तक न रख पाएँ तो आपकी ज़िंदगी बस कट जाएगी, टाइम पास की तरह। पहले तो इच्छा जगाइए, हिम्मत, साहस, ये तो इच्छा के बाद आते हैं। कहते हैं न ‘जहाँ चाह, वहाँ राह’। पर यदि चाह ही न रखी तो राह कैसे उमगेगी?

कतार से बाहर निकलिए

अपग्रेडेड होने से ही जुड़ा है अबंडंस, खुशहाली- संपन्नता का भाव। संपन्नता और कृपणता मन से आती है। कितने ही अमीर, दिल के बड़े ग़रीब होते हैं, जबकि कई ग़रीब,दिल के अमीर होते हैं। दिल की अमीरी से आपमें देने का भाव आ जाता है। देने का भाव जगता है तो आप लेने वालों की कतार से बाहर निकल जाते हैं। लेने की चाह, पाने की लालसा आपको लंबी कतार में खड़ा कर देती है। कुछ चाहिए ही नहीं, यह भाव संतुष्टि दिलाता है। हमारे देश में धन की देवी लक्ष्मी माता की उपासना कई लोग करते हैं लेकिन सब अपनी ज़रूरतें माँगने लगते हैं, जबकि धन की देवी से तो ऐश्वर्य, संपन्नता और संतुष्टि माँगी जानी चाहिए, पर हम लॉटरी के टिकट माँगने लग जाते हैं।

मन से फल बाग में

अपने आपको ऊँचा उठाइए, कल जहाँ थे, वहाँ से एक कदम आगे बढ़िए। हम चेतन मन से जितना कार्य करते हैं वह महज़ दो प्रतिशत होता है, 98 प्रतिशत हमारा अवचेतन हमसे कार्य करवाता है। अवचेतन से भय और चिंता की परतों को हटा दीजिए। चिंता मत कीजिए। चिंता करने वाले संतोष नहीं पाते। इसे ऐसा समझिए, जैसे इलाहबाद में रहने वाले अमरूदों के लिए नहीं तरसते, नागपुर में रहने वाले कभी संतरों की चिंता नहीं करते रत्नागिरी में रहने वाले रसीले आमों की लालसा नहीं रखते क्योंकि उनके पास अल्फ़ान्ज़ों की बहार होती है।

मतलब साफ़ है जो आपके पास होता है, आप उसकी कामना नहीं करते। किसी चीज़ की कामना आपकी ज़रूरत को दिखाता है। ज़रूरतमंद कभी खुश नहीं होता, वह हमेशा ज़रूरतमंद ही रहता है। सोचिए आप यदि फलों के बाग में हैं तो क्या तो संतरा, क्या तो आम, क्या तो अमरूद, सब आपके पास होगा। मन से फलों के बाग में रहने का आनंद लीजिए।

शुक्रिया कीजिए

स्वर्ग की कल्पना यही है न कि वहाँ किसी चीज़ की कोई कमी नहीं होती। मरकर स्वर्ग जाने की राह क्यों देख रहे हैं। इसी वक्त मान लीजिए कि आपके पास सब कुछ है। यह ‘गिलास आधा खाली या आधा भरा है’, की फिलॉसफ़ी या दर्शन नहीं है बल्कि यह सोचिए कि कम से कम आपके पास गिलास तो है, उस गिलास में कुछ तो है, जिसे लेकर आप आधा खाली, आधा भरा का सोच पा रहे हैं। सोचिए यदि आपके पास गिलास ही नहीं होता तो? इसलिए आपके पास जो है उसका शुक्रिया कीजिए। शुक्रिया कहना अपने आपको झुकाना, विनम्र बनाना ही खुद को ऊँचा उठाना होता है।

ताज, ताज होता है

इसका तात्पर्य झूठी शेखी बघारना नहीं है। अपने प्रति ईमानदार रहिए। संतुलन बनाइए, धैर्य रखिए। आपके सामने जो भी परिस्थिति है, उसका सामना कीजिए, उससे भागिए नहीं। नेतृत्व संभालिए और ज़िम्मेदारी स्वीकारिए। ताज, हो सकता है कि काँटों का हो लेकिन ताज, ताज होता है। जो काँटों से डरते हैं, उनके सिर पर ताज भी नहीं होता। और यदि ताज मिल जाएँ तो उसका घमंड न कीजिए। घमंड चूर-चूर हो जाता है, इसलिए विनम्र बनिए।

ब्रांड न्यू

एक दिन यह सब सोचकर सोइए और दूसरे दिन उठिए तो ऐसे उठिए जैसे आप ब्रांड न्यू हैं। हर काली रात के हवाले खुद को महान् या हीन समझने की भावना और अभिमान कर दीजिए। अगली सुबह खुद को अधिक हल्का और अधिक सुकून और शांति से भरा महसूस कीजिए।