‘ब’ की बतरस का बरकरार आनंद

‘ब’ की बतरस का बरकरार आनंद

‘बड़े बड़ाई ना करैं, बड़ो न बोलैं बोल। रहिमन हीरा कब कहै, लाख टका मेरो मोल॥’ रहीमदास जी का यह दोहा कह लें या कबीरदास जी का ‘बड़ा हुआ सो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर। पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर॥’ या बकौल कबीर ही ‘बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय। जो दिल खोजा आपना,मुझसे बुरा न कोय॥’

बड़ा बख़ान

‘ब’ का बड़प्पन इन दोहों में बड़े बख़ान के साथ दिखता है। ‘ब’ के साथ ‘बोया पेड़ बबूल का’ वाला बयान है पर वह किसी का बुरा नहीं चाहता वह तो नारियल के बूरे की तरह आपके पोहे-सब्जी पर छिटककर उसका स्वाद बढ़ाना चाहता है ताकि आपको बदहज़मी न हो। ‘ब’ की बकबक से कभी लग सकता है कि समय बर्बाद न करो, हमें बख़्श दो लेकिन इसका बादल राग जब गूँजने लगता है तो कहीं से भी इसकी बड़बड़ व्यर्थ की बकौलपंती या बोल बच्चन नहीं लगती बल्कि जमी बर्फ़ को पिघलाने का बारूद भी इसके बख़्तर में दिख जाता है।

इसके बाजुओं में कभी बाजूबंद भी सज जाता है तो कभी भुजाओं का बल भी इसके पास से ही आता है। किसी को उड़ा देने वाली बरछी, बम-गोला-बारूद इसके पास है तो तार देने वाले बरगद की छाँह तले शिवजी का ‘बोल बम’ का मंत्र भी। इसके साथ बह चलने का बाल हठ करके तो देखिए फिर क्या मजाल कि कोई आपका ‘बाल भी बाँका’ कर दे?

भीतरी बढ़त

बाँकपन युवावस्था की निशानी होती है, बलम की याद में ‘बाँके छोरे’ का गीत ‘बरसो रे मेघा’ के दिनों में याद आ जाए तो ‘बीती ताहि बिसारने’ के बजाय बस बदरा वाली बयार याद करते चलिए, बढ़े चलिए। बात बाहरी बढ़त की नहीं, भीतरी बढ़त की है। यदि कोरा ज्ञान बाँटते फिरें और ‘बिल्ली के रास्ता काट देने’ पर बैठक स्थगित कर दें तो यह तो बकलौती को बेहद बढ़ावा देना हुआ। उससे बेहतर है पहले सही ज्ञान हासिल करे। बुकिंग कराते समय बीमा सुविधा भी मिलने लगी है या तो बुलेट लेकर बिहार या बंगाल तक बेखौफ़ हो आइए।

बेचैन मन से कोई काम मत कीजिए, काम ऐसे कीजिए जैसे बाबुल साथ हैं और आप बंदगी कर रहे हैं। ‘बगुला भगत’ जैसे बहुतेरे आपको बधाई देने ऐसे आ जाएँगे जैसे ‘बारात में नाचने’ आ गए हों। उनकी बैटरी डाउन होते ही वे बैठ जाएँगे, आप उनके लिए बॉर्डर सैट कर दीजिए। उनसे बचिए ताकि वे अपनी बघार न लगा पाएँ। एक बटन दबाते ही उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दीजिए। बादाम खाइए ताकि ‘अंधों के बाज़ार में आईना बेचने’ का आप पर चढ़ा बुखार उतर जाए।

बंपर लाभ

बकरी की तरह ‘मैं-मैं’ की हिनहिनाहट करने का बचपना छोड़ दीजिए। आप बच्चे नहीं हैं। बाधाएँ आ रही हों तो बेहाल मत हो जाइए, सावधानी बरतिए। बल्लेबाजी करनी हो या बेडमिंटन खेलना हो, बुद्धिमानी इसमें होती है कि बैड्स से उतरिए और बंपर लाभ की दिशा में काम में जुट जाइए। आपको कोई बोतल में उतारने की कोशिश कर रहा हो तो ऐसे बहत्तर बहुरुपियों पर बुद्धिमानी का बुलडोज़र चला दीजिए। बायोटेक के ज़माने में बपौती स्वीकार मत कीजिए, बदलावों का स्वागत कीजिए। याद रखिएगा ‘जो गरजते हैं, वे बरसते नहीं’।

बग्घी में आईं बख़्शीशें

सच्चे बादशाह केवल बाजीगरी नहीं करते, ख़्याली पुलाव-बिरयानी नहीं बनाते बल्कि ‘बनिया बुद्धि’ नहीं, ब्राह्मण की तरह सोच-समझकर काम करते हैं, बातचीत में बेरोज़गारी का रोना नहीं रोते। बजाय इसके वे लोग बिल्डिंग बनाएँ, बढ़ईगिरी करें या बागवानी करें, बनवारी हो, अपने किसी बिज़नेस में कुछ भी बाधाकारी नहीं मानते। वे तो परिस्थिति को अपने अनुरूप होने के लिए बाध्य कर देते हैं। वे बक-झक नहीं करते इसलिए वे केवल बकते नहीं, बकवास नहीं करते। बचा-खुचा नहीं स्वीकारते बल्कि बकाया हिसाब सँभालते हैं, बटुआ देख बहीखाते में बजट बनाते हैं और बग्घी में आईं समय की बख़्शीशों को नेमत की तरह बटोरते हैं। किसी पर बट्टा नहीं लगाते। वे बदकिस्मती का रोना नहीं रोते। उन्हें बदगुमान भी नहीं होता।

बहुत्व का बल

उनके लिए हर दिन बड़ा दिन होता है और वे बड़े-बूढ़ों के साथ मिलकर बड़ा काम करते हैं। उनका बढ़िया काम बनावटी नहीं होता इसलिए उन्हें बढ़ती मिलती है। बदनाम, बदनीयत, बदमाश, बदनज़र, बदनुमा, बदचलन, बदज़ायका, बददिमाग, बदज़ात, बदतमीज़, बदमिज़ाज, बदरंग, बदशक्ल, बदसूरत, बदहाल, बदहवास, बदसलूक, बदतहज़ीब, बर्बट, बर्बर वे नहीं होते तो उन्हें बद्दुआ भी नहीं मिलती। कोई बरगलाए तो वे उस पर बरजते हैं। वे बहनोई के भी बहकावे में नहीं आते। उनकी बत्ती गुल नहीं होती। दो बर्तन होंगे तो आवाज़ तो होगी ही लेकिन उनका बर्ताव शालीन होता है, ऐसा नहीं कि कोई बर्दाश्त ही नहीं कर पाए।

किसी की बर्बादी में वे संवेदनहीन बहरापन लिए बधिर नहीं होते। उनका बहिरंग बहानेबाजी की बहस कर बहादुरी दिखाना नहीं। वे बलिदान पर विश्वास रखते हैं, पर किसी को ‘बलि का बकरा’ नहीं बनाते। बवाल-बवंडर से दूर उनकी बतकही बदबूदार नहीं होती और उनके बसंती बनने-सँवरने, बनाव-सिंगार के बने-बनाए बतरस की बरकत का आनंद हर बर्थ डे पर बरकरार रहता है। ‘ब’ बहेलिया नहीं है बल्कि बहुअर्थता का बहुकोणीय, बहुकालिक, बहुआयामी बहुगुना बहुचर्चित ‘ब’ बहुतायत में बहुधा बहुत्व का बल लिए बहुलता में बहुदर्शी बहुद्देशीय दिखता है