‘और’, ‘और’ की ‘औ’ टेक

‘और’, ‘और’ की ‘औ’ टेक

‘और क्या हालचाल’, कई लोग किसी से बातचीत की शुरुआत इसी अंदाज़ में करते हैं या बीच बातचीत जब कुछ और समझ नहीं आता तब भी ‘और’, ‘और’ की टेक लगाते हैं। यह ‘औ’ का और ऐसा ही है। उर्दू वाले तो कई बार पूरा और लिखने से बचते हुए केवल औ’ लिखकर भी काम चला लेते हैं, जिसके माने और ही होता है लेकिन आज हम उस औ’ के माने नहीं ‘औ’ को ही समझेंगे। यह ‘औ’ का औषध है, जिसे चखेंगे।

औ- औरत का

औसतन बात इतनी है कि हम उस ‘औ’ को जानेंगे, जो हिंदी वर्णमाला का ग्यारहवाँ वर्ण है और कंठोष्‌ठय है। अर्थात् इसके उच्चारण में कंठ और ओष्ठ याने होंठ दोनों का इस्तेमाल होता है। बाल वाटिका में ‘औ’ को पढ़ाते हुए ‘औ- औरत’ का बताया गया था, बाद के वर्षों में कैफ़ी आज़मी की रचना सामने आई थी- ‘औरत’, जिसकी पहली पंक्ति, ‘उठ मेरी जान मेरे साथ ही चलना है तुझे’, से आख़री पंक्ति तक बड़ा जोश भर गया था और औरत की औकात दिखाने वालों को इस औकारांत के औकारादि शब्दों ने औचक कर दिया था।

आपने औरत के पर्यायवाची भी पढ़े होंगे- स्त्री, जोरू, घरनी, घरवाली। कभी इस तरह अभ्यास भी करके देखिए। औचक किन्हीं शब्दों के पर्यायवाची खोजने निकल जाइए। देखिए आपकी भाषा कितनी समृद्ध हो जाएगी, जैसे औचक का पर्यायवाची है अचानक, यकायक सहसा।

औतारी औलिया

जब उन्हें देख लें तो ‘औ’ से कुछ विशेषणों की खोज में निकल पड़िए जैसे औढरदानी विशेषण का अर्थ है बहुत अधिक देने वाला। शिव स्तुति में ‘औढरदानी शिव योगी’ बन यह ‘औ’ आता है। भगवान् दत्त का प्रिय वृक्ष औदुंबर भी तो इसी ‘औ’ से है, जिसमें कहते हैं ब्रह्मा, विष्णु, महेश तीनों देवों का वास है। यह तो औपन्यासिक विषय हो सकता है। यदि यह औघड़ बाबा बना तो औघड़पंथी हो गया।

कभी यह जटिल हुआ तो कभी बालों को औछने की तरह इसे औछा तो एकदम सरल भी हो गया। आपने इसे औंडा-बौंडा कहा तो यह अवतार होते हुए भी एकदम देशज भाषा में औतार हो गया और लोगों ने कह दिया ‘औ’ तो ‘औतारी पुरुस’ (पुरुष) है। अवतारी न हुआ तो क्या औद्दालक या और्व ऋषि जैसे महान् व्यक्ति भी इसी ‘औ’ से ही तो हुए था। कोई औलिया फ़कीर हुआ तो किसी की औलाद में ये गुण दिखे।

औद्योगिकी से जुड़े शब्द

आपको भी ‘औ’ के बारे में और अधिक जानने की उत्सुकता हो गई होगी तो वही औत्सुक्य बन जाता है। इसी तरह जब कोई उदारमना हो जाता है तो उसका औदार्य दिख आता है। जब भी इसका औचित्य पूछा गया, इसने अपने औजार दिखाए और बड़ों-बड़ों की घिग्गी बँध गई। औजारों से याद आया इसी ‘औ’ ने तो औद्योगिक क्रांति लाई है। देखिए कितने ही शब्द जुड़ गए इसी औद्योगिकी से। उन औद्योगिक अन्वेषणों का अपना अलग स्थान है। इंजीनियरिंग के क्षेत्र में औद्योगिक इंजीनियरिंग एक स्ट्रीम है तो औद्योगिक उद्यमों को बढ़ावा देने के लिए औद्योगिक बैंक और औद्योगिक ऋण कंपनियाँ भी हैं।

औद्योगिक क्रांति तो हुई लेकिन औद्योगीकरण के चलते कई बार श्रम का मूल्य औने-पौने दामों पर बिका। उसके लिए अलग से औद्योगिक न्यायालय स्थापित करने पड़े। औद्योगिक बस्तियाँ बसीं तो शहरीकरण हुआ और औपचारिक संबंधों की औपचारिकता आ गई। जैसे औरंगाबाद या औरैया शहर है वैसे ही पुणे में प्रसिद्ध बसावट है औंध। तो कई लोगों को याद आ जाता है औंधे मुँह गिरना। औद्योगीकरण से औंधे मुँह गिरने के ही हालात बने। कह नहीं सकते कि औद्योगीकरण से औपनिवेशीकरण हुआ या औपनिवेशीकरण से औद्योगीकरण का प्रसार हुआ।

औंधा गिलास

आपको लग रहा होगा कि यह बात लंबी हो गई तो अपना गिलास या कटोरी औंधी रख दीजिए फिर उसमें कुछ नहीं डल सकेगा, कभी करके देखा है ऐसा? यदि आप पढ़ने-पढ़ते थक गए हैं तो औपचारिक रूप से इसे यहाँ समाप्त भी कर सकते हैं, नहीं तो बताते हैं आगे और...वैसे और स्पष्टीकरण की आवश्यकता तो अब नहीं है। और इस तरह से जब किसी का रस,औरस नहीं, रस खत्म होने लगता है तो उसे औरंगजेब भी कहते हैं, और क्यों कहते हैं इसे और अधिक आप खोजिएगा।