अंजुमन में ‘अं’ का अंबार

अंजुमन में ‘अं’ का अंबार

अंजु, अंश, अंबर, अंबुज और अंकिता बैठे थे और सामने अंगद खेल रहा था। वह अंगूर खा रहा था। इतने में उसके दिमाग में कुछ अंकित हुआ और पास ही खेल रहे बड़े भाई अंकुर की ओर भागता गया और उसके अंक (गोदी) पर चढ़ गया, भाई ने भी उसे अंग लगा अंकवार (गले लगाना) लिया। उसने खट्टे अंगूर की कहानी सुनने की फरमाइश की तो अंकुर ने कहा पहले एक से दस तक अंक (संख्या) गिने, तो ही सुनाएगा। उसके दोस्त अंकुश ने पूछ लिया- हिंदी में या अंग्रेज़ी में? बड़ी दीदी अंतिमा ने तुरंत कहा- जिस भी भाषा में अंगीकार हो, उस भाषा में सुना सकता है।

थोड़ी देर के लिए जैसे वह अंक-कार (अम्पायर) की भूमिका में आ गई और फिर वह अपनी अंक गणित की पढ़ाई में लग गई। अंगद ने अंकटा (कंकड़), अंकटी (छोटी कंकड़ी, अंकरी) फेंकते हुए अंक गिनना शुरू किया। अंशुल उठा और अंधकार होने से पहले अंकड़ी (हुक- मछली फँसानेवाला हुक) लेकर पास के तालाब की मछली पकड़ने निकल पड़ा। अंजलि ने याद दिलाया यह तो फल तोड़ने वाला बाँस है, जिसके सिरे पर एक छोटी लकड़ी बँधी है तो फल भी तोड़ लाना।

अंदाज़ा और अंदाज़

जी, हाँ, आपका अंदाज़ा सही है, यह अंदाज़ है देवनागरी लिपि के बारहवें स्वर ‘अं’ के अंजुमन का। इस अक्षर के अंतर्गत आने वाले अंधाधुंध शब्दों को आप अपनी ‘अंटिया में ठीक से बाँध लीजिए’, देखिए अंबार लग जाएगा। नहीं तो ‘परीक्षा में अंडा’ आने वाली बात हो जाएगी। क्या आप अंडे और ‘परीक्षा में अंडा’ आने के अंतर को समझ गए? यह ‘अं’ ही तो ‘अंधे की लाठी’ होता है। ऐसे ही जैसे ‘अंगूर खट्टे’ की कहावत है वैसे ही मुहावरा है, ‘फूले अंग न समाना’।

अंग-तरंग

जब किसी से कसम ली जाती है तो कहते हैं ‘अंग छूकर’ (शरीर पर हाथ रखकर) शपथ लो तो ‘अंग लगाना’ मतलब गले लगना, ‘अंग उभरना’ याने यौवन आना और ‘अंग एड़ा करना’ मतलब शेखी दिखाना तो ‘अंग चुराना’ याने शरमा जाना और ‘अंग टूटना’ कहने का तात्पर्य है थकावट या शरीर के विभिन्न अंगों में पीड़ा होना। जब ‘अंग ढीले’ पड़ जाते हैं या कि थक जाते हैं तो थकान उतारने के लिए अंगड़ाई भी ली जाती है। इस अंगड़ाई को कई लोग ‘अंग तोड़ना’ भी कहते हैं लेकिन उसका अर्थ तो छटपटाना होता है।

जब ‘अंग देते’ हैं या थोड़ा आराम करते हैं तो ‘अंग-तरंग’ की खुशी ‘अंग में नहीं समाती’ और ‘अंग-अंग मुस्कुरा उठता’ है और आप ‘फूले अंग न समाते’ हैं। कुछ लोग ‘अंग-भंग’ से डरते हैं तो कुछ मरणोपरांत अंग दान करते हैं तो श्रीमद्भगवत गीता में शरीर के नौ अंग द्वार बताए गए हैं। महाभारत में अंगराज कर्ण हैं, अंबा और अंबालिका हैं, तो रामायण में अंबरीष राजा।

और भी कुछ अर्थ

सूरदास जी ने कितना मनोरम लिखा है- ‘फूले फिरत अंक नहिं मावत’ तो तुलसीदास कहते हैं ‘एकहु अंकन हरि भजे रे सठ मूर गँवार’ और वे लिखते हैं ‘हाकिम होई की खाई अंकोर (कलेवा)’ और जायसी के यहाँ यह ‘काँट गड़े न गड़े अकरीरी’ से आता है जिसमें ‘अं’ के अंक-रौरी को उन्होंने अकरीरी कहा है।

अंक के और भी कुछ अर्थ होते हैं, जो उसके संदर्भों से समझ में आते हैं जैसे नाटक या किताब का कोई भाग या खंड या पत्र-पत्रिकाओं के प्रकाशन की संख्या, किसी पत्रिका का कौन-सा अंक है मतलब निश्चित समय या समय विशेष पर होने वाला उसका प्रकाशन। इस अंक से ही बना है अंकक, अंकों की गिनती करने वाला या छाप या निशान लगाने वाला और अँकवाना मतलब मूल्य या दर निश्चित करना

अंग भाव

कई बार यह अंकेक्षक (ऑडिटर) भी होता है, जो अंकेक्षण (ऑडिट) करता है। वह भारी अंग यष्टि के अंग रक्षक (बॉडी गार्ड) के साथ नहीं आता और ज़रूरी नहीं कि उसने सूट-बूट ही पहना हो, हो सकता है अंगोछा लेकर उसने अंगरखा ही पहन रखा हो। वैसे सुंदर अंगों वाली जिसे अंगना कहना है, जैसे देवांगना या नृत्यांगना वे कई बार अंगरखा पहनती हैं। नृत्यांगना आँखों में अंजन के साथ अन्य अंग-राग (उबटन, केसर, मेंहदी, सुगंधित बुकनी या पाउडर) और अंग लेप लगाकर अंग संचालन, अंग-न्यास करती हैं और अंग-भंगी या हाव-भाव दिखाती हैं। कई बार नृत्य में अंग-हार शब्द भी आता है। नृत्य या संगीत में शरीर के विभिन्न अंगों से मनोभाव प्रकट करने को अंग भाव कहते हैं और अंग-विक्षेप अच्छे नहीं माने जाते।

कुछ अंटसंट

कभी महिलाएँ अंतःपुर में रहती थीं। आज भी उन्हें बाबुल का अंगना याद आता हो, तो बता देते हैं कि कई बार उसे अंगनाई, अंगनैया या अँगनाई या आँगन भी कहते हैं और अशोक वृक्ष का एक नाम अंगना प्रिय है। शायद इसलिए उससे महिलाओं का अंग-सख्य (गहरी दोस्ती) हो जाता है, वे उससे अंतरंग बातें करती हैं।

दुनियादारी में कभी ‘अंगारों पर चलना’ पड़ जाए तो ‘अंबाड़ा (जूड़ा) बाँध’ वे बिना ‘अंगार उगले’, ‘अंगारे बरसाए’ चल पड़ती हैं। वे कभी अंगीठी में खाना पकाती हैं तो कभी अंगारी (अंगारों पर पकाई छोटी रोटी) बनाने लगती हैं। उनकी रसोई से कई लोगों ने ‘अंतड़ियों के बल खोलें’ (बहुत दिन बाद भोजन मिलने पर तृप्त होकर खाना)।

वे अपनी अंगुरिया (अंगुली) पर गिनती हैं कि अंगारक (मंगल ग्रह या मंगलवार को आने वाली) चतुर्थी कब है और व्रत करने लगती हैं। वे अथर्ववेद के मंत्र द्रष्टा अंगिरा ऋषि को याद करने लगती हैं। वे अंगूठा छाप, अंध-विश्वास और अंध-श्रद्धा की दुनिया से निकल थम्सअप करने वाली होती जाती है और अपने अंचल से निकल कभी अंतर-पट रख अंतर-जातीय विवाह कर लेती हैं तो अंतर्राष्ट्रीय हो जाती हैं, अंतर-देशीय व्यवहार करने लगती हैं और जो उसे नीचा देखते थे, उन्हें अँगूठा दिखा देती हैं। वह अंचित (जिसकी पूजा की गई हो) बन जाती है।

बलशाली हनुमान को जन्म देने वाली वही है तभी तो उन्हें अंजनीसुत कहा जाता है। हनुमान चालीसा हर अंतरे को याद करने वालों को पता होगा कि माना जाता है कि इन्हें अंजस (ईमानदारी) से याद कर लेने पर ‘अंजर-पंजर ढीले’ नहीं होते। ग्रहों की अंतर्दशा उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकती। याद है न इन्होंने लाल-लाल सोने के गोले अंजिष्णु (सूर्य) को फल समझकर निगल लिया था। अंतरिक्ष तक उड़ान भरने के लिए वे ज़रूर अंजीर खाते होंगे, नहीं क्या? यह कुछ अंटसंट कहना हो गया क्या?

अंतरात्मा का अंतर्घट

बचपन में कभी आपने ‘अंटा बेली,शेर का पंजा’ किया है? नहीं किया, तो अपने से बड़ों से पूछिए, कैसा खेल होता था वह? जी, जी बिलियर्ड को भी अंटा कहते हैं, तो बेईमानी से अंगुलियों में कौड़ी छिपाने को ‘अंटी मारना’ जबकि कुश्ती में प्रतिद्वंद्वी को गिराना या हराना, ‘अंटी देना’ होता है और कोई नशे में बेसुध हो जाए तो उसे ‘अंटा चित’ कह देते हैं।

पर यदि अंतःकरण साफ़ हो तो सारी अंतःकलहों और अंतर्दाह, अंतर्द्वंद्व से बच सकते हैं। अंतरात्मा के अंतर्घट में अंतर्नाद के राम में अंतर्लीन हो जाते हैं, उन्हें अंतर्बोध हो जाता है। वे अंतस् से आत्मज्ञानी होने लगते हैं और एक अंतराल के बाद लोग उन्हें अंतःप्रज्ञ कहने लगते हैं लेकिन उसके लिए अंतरात्मा का अंतःप्रवाह और अंतःप्रेरणा होना आवश्यक है तभी अंतःस्थ अंतःशुद्धि हो सकती है। बस हममें अंहकार न आ जाए।

अंततः

चलिए अंतिम पंक्तियों में अंतर्हृदय से अंतर्मुख होकर अंततः अंततोगत्वा पर अंत करते हैं। हमें अंताक्षरी तो खेलनी नहीं, न ही अंत-हीन चर्चा चलानी है। वरना अंदेशा है, ‘अं’ अंतर्धान न हो जाए और हमें तो अंत-वेला या अंत-समय से पहले अंतर्यामी बनना है। भले ही देर हो जाए पर भगवान् के घर अंधेर नहीं है, न अंधेर नगरी का चौपट है।