‘ऐ’ पर कर लें ऐतबार

‘ऐ’ पर कर लें ऐतबार

ऐंटीबायोटिक दवा की बातों में, कभी बच्चों की ऐक्ज़ाम से या चुनावी एजेंडा और ऐक्ज़िट पोल की बात से। कभी ऐहतियातन कहीं इन बातों से कि एसी में न बैठा जाए और सेहत पर ध्यान देने के लिए ऐरोबिक्स किया जाए। ऐक्यूप्रेशर का सहारा लिया गया। यूँ ‘ऐ’ कई बार आया

कइयों ने समाचारों में ऐक्शन-रिप्ले कर बार-बार देखा कि क्या यह ऐटम बम है! पर जो होना था, हुआ, ऐस्पिरिन लेने से भी कुछ नहीं हुआ तो ऐक्स-रे निकलवाए गए। लोगों ने बाज़ार से ऐडवांस में पैसा उठाया, इन सबका ऐडवांटेज तो किसी को नहीं दिखा बस जुगत थी कि किसी तरह वे ऐंटीक होने से बच जाए। आइए ऐल्युमीनियम के पुराने डिब्बे खंगालें और देखें ऐसी अवस्था में थोड़े में भी कैसे ऐशो-आराम से रहा जा सकता है।

‘ऐ’ का हर ऐंगल

जिंदगी को ऐसिड की तरह जलजला नहीं बनाना है न ऐश-ट्रे में झाड़ देना है। जैसे ही यह समझ आया कुछ घर पर ऐक्वेरियम ले आए। कुछ ने अपने तरीकों को ऐक्सक्लूसिव रखा लेकिन कुछ लोग तब भी धरती पर ऐक्स्ट्रा कलाकार की तरह हो गए जिन्हें दुनिया के रंगमंच से ऐक्ज़िट लेनी पड़ी।

ईश्वर के यहाँ कोई ऐक्सचेंज ऑफ़र नहीं होता, जिसकी जब बारी आती है उसे तब जाना पड़ता है फिर आपका क्रमांक इकतीसवाँ हो या इक्यावन, कोई ऐक्सपर्ट आपको बचा नहीं सकता, ऐक्सपेरिमेंट करने की कोई गुजांइश नहीं रहती। आपका कच्चा-चिट्ठा उसके दरबार में ऐक्सपोज़ हो चुका होता है। आप कुछ ऐक्सप्रेस करने की हालत में भी नहीं होते और सारे ऐक्सप्रेशंस एक सेकंड में बंद पड़ जाते हैं इसलिए किसी चीज़ की ऐक्सेस न करें।

जिंदगी ऐक्सप्रेस हाईवे की तरह है, दनदनाते हुए गुज़रे तो जाने कब ऐक्सीडेंट हो जाए। ख़ैर हम तो ‘ऐ’ के हर ऐंगल को परखने की बात कर रहे थे उसमें यह ऐंग्लो-इंडियन जैसी बातें कहाँ से आ गईं!

ऐ फ़ॉर ऐप्पल

दिमाग के ऐंटीना को थोड़ा ऐडजस्ट करते ही ध्यान आता है अपने ऐब्स दिखाता यह ‘ऐ’ ऐडहाक पर नहीं है। जब बच्चे ‘ऐ फ़ॉर ऐप्पल’ याद करते हैं तो यह अपनी ऐप्लीकिशन पीछे कर देता है। इसका होना ही ऐफ़िडेविट की तरह है। यह ऐबदार नहीं है इसलिए इसे न किसी ऐडवर्टिज़मेंट की ज़रूरत है न किसी ऐडवाइज़र की न ऐडवाइज़री बोर्ड की।

इसके साथ चलना अपने आपमें ऐडवेंचर टूर पर निकल पड़ने जैसा है। इस पर ऐतबार किया जा सकता है। यह ठेठ ऐतरेय उपनिषद की याद दिलाता है, जिसमें ऐतरेयी का भी जिक्र है। ऐन मौके पर यदि ऐंद्रिय बोध जाग जाए तो उस ऐंद्रजाल से निकलने के लिए ऐन उसी वक्त ऐनक चढ़ा कुछ अच्छी किताबें पढ़ लेनी चाहिए। किताबें पढ़ने से भला किसे ऐलर्जी हो सकती है, कौन ऐसा ऐलान कर सकता है कि बिना किताबें पढ़े ही ऐलोपैथी सीख गए हो।

ऐई का बात है

‘ऐई’..हाँ, हाँ जब यह कहना होता है तो कई बार ‘ऐई का बात है’, भी कह देते हैं। ऐसे तो कई ऐतिहासिक ऐकारांत हैं, जो ऐंठकर चलते हैं, जिन्हें ऐच्छिक तौर पर याद किया जा सकता है। ऐंठा ‘ऐ’ ऐंठन देने लगे तो रीतिकाल के कवि घनानंद की पंक्तियाँ याद आ जाती हैं- ‘वारियै कोरिक प्रान सुजान हौं ऐ परि मरियैगो मसोसनि’, मतलब ‘ऐ परि’ यानी इतने पर भी आप ऐतराज़ कर रहे हैं तो ऐसी भी क्या बात, ‘ऐ’ की ही बात कर लेते हैं।

यह कोई ऐरा-ग़ैरा नहीं बल्कि देवनागरी वर्णमाला का नवाँ स्वर है। भाषाविज्ञान की दृष्टि से यह दीर्घ, अग्र, अवृत्तमुखी, अर्धसंवृत स्वर है और घोष ध्वनि है। इसके उच्चारण स्थान कंठ और तालु होने से कंठ्य तालव्य है। ऐ का अनुनासिक रूप ऐँ है जिसे मुद्रण की सुविधा के लिए ऐं लिखा जाता है। आप इसे ऐड लगाना या ऐड मारना कह सकते हैं पर इससे वह ऐंडा-बैंडा तो नहीं हो जाता न।