जब बच्चों को होने लगे बड़े होने का अहसास

जब बच्चों को होने लगे बड़े होने का अहसास

बच्चे जब टीनएज में आने लगते हैं तो उनमें खुद को बड़़ा समझने का भी एक नजरिया विकसित होता है। अक्सर पेरेंट्स इस स्थिति में असमंजस में होते हैं कि वे किशोर होते बच्चों की समस्या से कैसे डील करें। दूसरी ओर बच्चे अपने हॉर्मोंस की बदलाव की वजह से खुद को बेहद समझदार इंसान मानते हैं। यह उनकी उम्र का वह दौर है जहां आपको उनकी हर बात पर नजर रखनी है लेकिन उनकी जासूसी नहीं करनी। ऐसा न हो कि वह अपने ही घर में खुद को घुटा हुआ महसूस करने लगें।

एक दायरा बनाना होगा

बहुत से लोगों को लगता है कि बच्चों का दोस्त बनकर रहना समझदारी है। बच्चों को रिश्तों की अहमियत आपको ही समझानी है। बेशक अब सख्ती की जमाना नहीं है। लेकिन ऐसा भी न हो कि कूल डैड या मॉम बनने के चक्कर में बच्चे आपके साथ तहजीब का दायरा ही भूल जाएं। जैसे अगर बच्चा मां के मेकअप सेंस पर कुछ कमेंट करने लगे। या फिर पिता की बाहर आते पेट पर कुछ कहे उस समय ही उसे टोकें। उसे समझाएं कि अपने साथी के साथ बात करने और बड़ों के साथ बात करने में फर्क होता है।

बच्चों को शामिल करें

टीनएजर्स को अक्सर यह शिकायत होती है कि उनसे लोग उम्मीद करते हैं कि वे समझदार बनें लेकिन उनके साथ जो व्यवहार किया जाता है वह बचकाना होता है। अगर आप ऐसा कर रहे हैं तो अपनी इस आदत को बदल लें। घर में अगर किसी बात को डिसकशन किया जा रहा है तो उनकी सलाह को भी तरजीह दें। जैसे अगर आप नया घर लेने का प्लान कर रहे हैं, अगर कोई मेहमान आपके घर आने वाला हो तो कमरे का इंतजाम, मैन्यू क्या रहेगा आदी पर उनके साथ भी चर्चा करें। इन छोटी बातों से ही सही वह भी आपके साथ शामिल होंगे।

उनकी प्राइवेसी का भी रखें ध्यान

बच्चों पर ध्यान देना बहुत अच्छी बात हैं। लेकिन कुछ चीजों में उन्हें अकेला भी छोड़ें। जैसे अगर वे अपने कमरे में दोस्तों के साथ हैं तो बार- बार बीच में जाकर उनकी बातें सुनने की कोशिश न करेें। आपको जैसे अपनी प्राइवेसी प्यारी है उनको भी होगी। अपने संस्कारों पर भरोसा रखें। पसंद का करिअर चुनना, पसंद के कपड़े पहनना उनका हक है।

एक बात याद रखें जब बच्चा गुस्से में आकर चिल्लाने लगे उस वक्त उसे डराएं-धमकाएं नहीं। न ही उसे संस्कारों की दुहाई दें। आप शांत रहकर उससे कहें तुम्हारी बात सही है या गलत सुनी तभी जाएगी जब तुम शांति से बिना आवाज ऊंची किए बात करोगे। आप देखेंगे कि इससे समस्याएं धीरे-धीरे ही सही कम होने लगेंगी। बच्चे को जब ये लगेगा कि उसे सुना जा रहा है, समझा जा रहा है वे भी खुद को अभिव्यक्त कर पाएगा।